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Results Briefs27 अक्तूबर, 2022

भारत में एचआईवी कार्यक्रमों का विस्तार: संवेदनशील और अत्यधिक जोख़िम वाले समुदायों तक पहुंचने से जुड़ी चुनौती

The World Bank

दिल्ली स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी/दिल्ली टेक्निकल सपोर्ट यूनिट(अनुमति के साथ प्रयोग में)| दुबारा प्रयोग के लिए दुबारा अनुमति की आवश्यकता|

भूमिका

भारत का एचआईवी कार्यक्रम पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण की तरह है कि किस तरह से आबादी के सबसे कमज़ोर तबके तक अपनी पहुंच बनाई जाए| भारत की रोकथाम आधारित रणनीति का मूल आधार था कि आम लोगों के नेतृत्व में कुछ ख़ास तबकों जैसे समलैंगिक पुरुष यौन कर्मियों, महिला यौनकर्मियों और इंजेक्शन के ज़रिए नशीली दवाओं को लेने वाले लोगों के बीच एक व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम चलाया जाए जिसके कुछ निश्चित लक्ष्य हों| 2018 में भारत ने इस कार्यक्रम में थोड़े बदलाव के साथ फिर से लागू किया ताकि अत्यधिक जोख़िम वाले नए समुदायों तक वे पहुंच सकें| इसका परिणाम ये हुआ कि व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम को उल्लेखनीय सफ़लता प्राप्त हुई और बहुत से नए लोगों को एचआईवी के परीक्षण के बाद उसके निदान कार्यक्रमों से जोड़ा जा सका|

चुनौती

1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) की शुरुआत के बाद से एचआईवी-एड्स से पीड़ित लोगों की संख्या में आई भर गिरावट के बावजूद भारत अभी भी दुनिया में सबसे बड़ी एचआईवी महामारी में से एक था| भारत में एचआईवी महामारी कुछ ख़ास तबकों के बीच ज्यादा फैली हुई थी| एचआईवी जैसी ख़तरनाक और जटिल बीमारी विशेष रूप से यौन कर्मियों, समलैंगिक पुरुषों के बीच असुरक्षित यौन संबंधों और नशीली दवाओं के इंजेक्शन के कारण फैल रही थी| भारत का बचाव कार्यक्रम कुछ लक्षित पहलों और जनता की सहभागिता के साथ उनके बीच व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने पर आधारित था| भारत ने अपने लक्षित हस्तक्षेपों के ज़रिए यूएनएड्स (एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम) के 90-90-90 लक्ष्यों (90 प्रतिशत एचआईवी संक्रमितों का आधिकारिक परीक्षण, एचआईवी संक्रमण के 90 प्रतिशत असंदिग्ध मामलों में एंटी-रेट्रोवायरल थैरेपी (आर्ट) अपनाना , और उपचार के बाद 90 प्रतिशत लोगों के भीतर वायरस के लक्षणों का लगातार शमन करना) को प्राप्त करने और 2030 तक एड्स का सफ़ाया करने पर ध्यान केंद्रित किया| भारत के एचआईवी नियंत्रण कार्यक्रमों की ये विशेषता है कि वह लक्षित आबादी के कुछ लोगों की सहभागिता के ज़रिए अपने कार्यक्रमों के लक्ष्यों को प्राप्त करने पर आधारित है| हालांकि, इन कार्यक्रमों को काफ़ी सारे अवरोधों का सामना करना पड़ा| इन लक्षित कार्यक्रमों से जुड़ी सबसे बड़ी कमी यह रही कि वह एक ऐसे पुराने मॉडल पर आधारित था, जो कम जोख़िम और न्यूनतम संक्रमण के ख़तरे वाली एक स्थिर आबादी पर केंद्रित था| जिसके कारण अधिक जोखिमवाले नए समूहों, जिन तक पहुंचना काफ़ी कठिन था, के बीच कार्यक्रम का विस्तार नहीं हो पाया| इसके अतिरिक्त, एंटी-रेट्रोवायरल थैरेपी की पहुंच तक विस्तार बेहद सीमित था और इसलिए उपचार से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने में भारत असफ़ल रहा|

The World Bank

दिल्ली स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी/दिल्ली टेक्निकल सपोर्ट यूनिट(अनुमति के साथ प्रयोग में)| दुबारा प्रयोग के लिए दुबारा अनुमति की आवश्यकता|

दृष्टिकोण

विश्व बैंक की सहायता से, 2018 में एनएसीपी (राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम) की रणनीतियों, विशेष रूप से संवेदनशील आबादी की पहचान संबंधी नीतियों में बदलाव के ज़रिए कार्यक्रम से जुड़े हस्तक्षेपों को और भी ज्यादा प्रभावी बनाया गया| इनमें से एक महत्त्वपूर्ण बदलाव था: डिफरेंटिएटेड प्रिवेंशन मॉडल (डीपीएम), जो प्रभावित समुदायों को पांच भिन्न-भिन्न श्रेणियों या जोख़िम समूहों में बांटता था| उसके बाद जोख़िम और संवेदनशीलता के स्तर को देखते हुए इन समूहों के बीच उपचार सुविधाएं पहुंचाई गईं, जिनसे नए समूहों तक पहुंचने में सफ़लता हासिल हुई| एचआईवी की रोकथाम और उपचार से जुड़ी सुविधताओं तक पहुंचने में इन समुदायों के सामने आने वाली बाधाओं की पहचान करके एक नई पहल की शुरुआत की गई, जो समुदाय के आपसी सहयोग पर आधारित था| इस पहल का मकसद था कि समुदाय के कुछ लोग नेतृत्व लेते हुए लोगों को एचआईवी परीक्षण से लेकर उपचार और देखभाल तक सभी चरणों में सहायता प्रदान करेंगे| इसके अलावा, डिफरेंटिएटेड केयर मॉडल (डीसीए) एक ऐसा नवाचार था, जो मरीज़ों की सहूलियत के अनुसार उपचार सुविधाओं को श्रेणीबद्ध करने पर आधारित था, जिससे उन्हें अस्पताल में बार-बार जाने और अनावश्यक इंतज़ार से बचाया जा सके|

परिणाम

लक्षित हस्तक्षेपों में सुधार की रणनीति के कारण एचआईवी संक्रमण से पीड़ित ऐसे नए समुदायों तक पहुंचने में सफ़लता हासिल हुई, जिनकी पहले पहचान नहीं हो पा रही थी| एनएसीएसपी अपने प्रारंभिक लक्ष्यों को पाने में काफी हद तक सफ़ल रहा और रणनीतियों में बदलाव के परिणामस्वरूप समुदायों के बीच महत्वपूर्ण व्यवहार परिवर्तन भी हुआ|

एनएसीएसपी की सफ़लता के संकेत इन आंकड़ों से स्पष्ट हो जाते हैं कि 2013 (बेसलाइन वर्ष) से लेकर 2020 (लक्षित वर्ष) तक कंडोम का उपयोग महिला यौन कर्मियों के बीच 80 प्रतिशत से बढ़कर 96 प्रतिशत और समलैंगिक पुरुष यौन कर्मियों के बीच 45 प्रतिशत से बढ़कर 85 प्रतिशत हो गया|

नशीली दवाओं का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों में सुरक्षित दवा इंजेक्शन 45 प्रतिशत से बढ़कर 88 प्रतिशत हो गया| नई रणनीति ने एचआईवी से पीड़ित लोगों को उपचार हासिल करने में भी सहयोग प्रदान किया और भारत में एचआईवी उपचार प्राप्त करने वालों की संख्या 2017 में 10 लाख से बढ़कर 2020 में लगभग 14 लाख हो गई| इसने एचआईवी मामलों के नियंत्रण के लिए लोगों की सहभागिता और उनके नेतृत्व आधारित मॉडल को विश्व स्तर पर अपनाने संबंधी प्रयासों की मज़बूत पैरवी की|

विश्व बैंक की सहभागिता

विश्व बैंक ने पिछले तीन दशकों में अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन) के माध्यम से भारत के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) में कुल 80.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है| भारत में एचआईवी महामारी की संकेंद्रित प्रवृत्ति को देखते हुए, विश्व बैंक ने प्रभावित समूहों के बीच ऐसे हस्तक्षेपों को लागू करने पर ज़ोर दिया है, जो साक्ष्य-आधारित हों|   विश्व बैंक ने वैश्विक अनुभवों को कार्यक्रम से जोड़ा और दुनिया भर के अन्य देशों के साथ भारतीय कार्यक्रम से जुड़े बेहतर अभ्यासों को साझा करने में सहायता प्रदान की|

सहयोगी संगठन

एनएसीएसपी के विकास उद्देश्यों की उपलब्धि दरअसल विश्व बैंक और अन्य प्रमुख विकास भागीदारों जैसे डबल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन), यूएनएड्स (ज्वाइंट यूनाइटेड नेशंस प्रोग्राम ऑन एचआईवी/एड्स), यूएसएड (यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपेंट) और सीडीसी (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के बीच असाधारण सहयोग का परिणाम है| संयुक्त कार्यान्वयन समीक्षा मिशन (ज्वाइंट इंप्लीमेंटेशन रिव्यू मिशन) का उभरना इस सहयोग का बेहतरीन उदाहरण है|

आगे की राह

उम्मीद है कि 2022-2027 के बीच एनएसीपी के पांचवें चरण में नए विचारों और नए दृष्टिकोणों का परीक्षण का अवसर मिलेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत 2030 तक अपने 90-90-90 लक्ष्य को प्राप्त कर सके|