परियोजना से कर्णाटक के सात ज़िलों में 4,65,000 हेक्टेयर क्षेत्र पर 930 माइक्रो-जलसंभरों पर
सरकारी जलसंभरों के परिचालन में सुधार होगा
वाशिंगटन, 6 सितम्बर, 2012: आज विश्व बैंक ने परियोजना के क्षेत्रों में जलसंभर नियोजन तथा प्रबंधन में और सुधार करने के लिए कर्णाटक जलसंभर विकास परियोजना-II (केडब्ल्यूडीपी II) के लिए 6 करोड़ अमरीकी डॉलर के क्रेडिट को स्वीकृति प्रदान की।
यह परियोजना, जिसे सुजला के नाम से भी जाना जाता है, बैंक द्वारा इसके पहले वित्त-पोषित कर्णाटक जलसंभर विकास परियोजना-I के सफल अनुभव पर बनाई गई है, जिससे फ़सलों की पैदावार में लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 2,30,000 किसानों के जीवन में सुधार और लघु तथा मार्जिनल किसानों की पारिवारिक आमदनी में 40 प्रतिशत की वृद्धि करने में मदद मिली है।
आज भी कणार्टक के सूखे क्षेत्र राज्य के सबसे अनुपजाऊ क्षेत्र हैं, जिनकी कृषि उत्पादकता कम है और जो सूखा-संभावित, गहरे पर्यावरणीय स्ट्रेस और डिग्रेडेशन वाले क्षेत्र हैं। परियोजना के क्षेत्र में 39,400 भूमिहीन परिवार रहते हैं। वार्षिक सामान्य वृष्टिपात 600 से 800 मिमी होता है और वर्ष में 43 दिन बारिश होती है। परियोजना के 278,000 हेक्टेयर वर्षा-पोषित क्षेत्र को पांच वर्षों के चक्र में जल-रहित दो वर्षों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि फ़सल के सीज़न में सूखे का दौर लंबा हो जाता है और/या मानसून के पहुंचने में देरी हो जाती है।
इस प्रकार इंटेग्रेटेड वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्रैम (आईडब्ल्यूएमपी) के सुदृढ़ीकरण के जरिए जलसंभर विकास और कृषि कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से एकीकृत करने की आवश्यकता है। उक्त कार्यक्रम जलसंभर विकास को भारत सरकार के समर्थन का आधार है। आईडब्ल्यूएमपी और रोज़गार पर आधारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी एक्ट योजना (न्रेग्स) द्वारा वित्त-पोषित मृदा तथा जल-संरक्षण कार्यक्रमों के बीच और अधिक कारगर समरूपता का होना ज़रूरी है।
आज स्वीकृत केडब्ल्यूडीपी II में एकीकृत जलसंभर नियोजन के नए तरीकों और दृष्टिकोणों को तथा नियोजन की प्रक्रिया में जल-संसाधनों के बारे में अधिक जानकारी शामिल करते हुए, आईडब्ल्यूएमपी तथा न्रेग्स जैसे सरकार के अन्य कार्यक्रमों के बीच बेहतर समरूपता लाते हुए और कृषि-उत्पादकता बढ़ाने में किसानों की मदद करते हुए आईडब्ल्यूएमपी के कार्य-प्रदर्शन और परिणामों में सुधार करने पर ध्यान दिया जाएगा। इस परियोजना के अंतर्गत सात ज़िलों में लगभग 4,65,000 हेक्टेयर ज़मीन और 1,60,000 किसान परिवारों को कवर किया जाएगा।
भारत में विश्व बैंक के कंट्री डाइरेक्टर ओन्नो रुह्ल ने कहा, “यह परियोजना बैंक द्वारा पहले समर्थित केडब्ल्यूडीपी II पर आधारित होगी और इसके अंतर्गत नई प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू की जाएंगी, जिनसे वर्षा-पोषित क्षेत्रों में कृषि-उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।” उन्होंने आगे कहा, “हमें आशा है कि इंटेग्रेटेड वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्रैम (आईडब्ल्यूएमपी) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी एक्ट योजना (न्रेग्स) कार्यक्रमों के बीच बेहतर समरूपता की दिशा में मार्गप्रशस्त होगा और इस तरह सार्वजनिक धन का समझदारी के साथ उपयोग परिलक्षित होगा।”
परिणामस्वरूप, परियोजना का प्राथमिक फ़ोकस बेहतर नियोजन, क्षमता के गठन, मॉनिटरिंग तथा मूल्यांकन और फ़सल की कटाई के बाद मूल्यवर्धन के जरिए कर्णाटक में सात चुने हुए ज़िलों में आईडब्ल्यूएमपी पर क्रियान्वयन का समर्थन करने पर होगा। स्थानीय आवश्यकताओं को समझने पर भी ध्यान दिया जाएगा, जैसे स्थान विशेष पर मिट्टी-फ़सल-जल के बीच अंतर्संबंध, वर्षाजल की हार्वेस्टिंग और भौमजल के रिचार्ज की संभावनाओं का विस्तार, आईडब्ल्यूएमपी और न्रेग्स के बीच समरूपता तथा कृषि-जलवायु क्षेत्र विशेष के लिए प्रौद्योगिकी का विकास करना, ताकि ग्रामीण समुदाय जलवायु-परिवर्तन के परिणामों के साथ बेहतर तालमेल बिठला सकें।
विश्व बैंक के वरिष्ठ प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विशेषज्ञ तथा परियोजना की टॉस्क टीम के प्रमुख ग्रांट मिल्ने ने कहा, “इस परियोजना के माध्यम से हमें आशा है कि छोटे किसानों का कामकाज सुदृढ़ होगा और उनके लिए नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने के अवसरों में बढ़ोतरी होगी। इस परियोजना से आईडब्ल्यूएमपी और न्रेग्स के बीच अधिक एकीकृत जल-प्रबंधन नियोजन और मॉनिटरिंग तथा नए-नए उपस्करों के विकास और सब एवं सूक्ष्म-जलसंभरों में कार्य-प्रक्रियाओं के जरिए वित्तीय तथा तकनीकी समरूपता भी सुदृढ़ होगी।” उन्होंने आगे कहा, “कार्यक्रमों के बीच बेहतर समरूपता का परिणाम विज्ञान पर अधिक आधारित जलसंभर प्रबंधन तथा मिट्टी और जल-संरक्षण संबंधी कार्यों की अधिक ऊंची क्वालिटी के रूप में निकलेगा।”
परियोजना के अन्य घटकों (कंपोनेंट्स) के बीच उद्यानविज्ञान (हॉर्टिकल्चर) से सूखे इलाकों में भी किसानों की आमदनी बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाने की आशा की जाती है। परियोजना द्वारा वार्षिक और बारहमासी फ़सलों के लिए सूखी ज़मीन पर उत्पादन को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों और फ़सल के विविधीकरण; टेस्टिंग, प्रशिक्षण तथा डिमास्ट्रेशंस के लिए सुविधाएं जुटाने; पोषक तत्वों की कमी की पहचान करने के लिए मिट्टी, जल और पत्तियों का विश्लेषण करने; अच्छी क्वालिटी के बीज और रोपण-सामग्री जुटाने; तथा अन्य चीजों के साथ-साथ फ़सल कटाई के बाद उत्पादन की मार्केटिंग में भी किसानों की मदद की जाएगी।
उक्त परियोजना का वित्त-पोषण इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) द्वारा किया जाएगा। विश्व बैंक का ऋण देने वाला यह निकाय ब्याज-मुक्त ऋण मुहैया कराता है, जो 25 वर्ष में देय होता है और जिसका पुनर्भुगतान पांच वर्ष बाद शुरू होता है।
कर्णाटक जल-संभर विकास परियोजना-I
या सुजला 2001-2009
परियोजना के लाभः
· वर्षा-पोषित इलाकों में पैदावार में 25 प्रति वर्ष तक की वृद्धि।
· भू-कटाव में 21 घन मीटर प्रति हेक्टेयर की कमी।
· सिंचित क्षेत्र में 6 प्रतिशत से 14 प्रतिशत तक की वृद्धि।
· दूध के औसत उत्पादन में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि।
· भौमजल काफी लंबी अवधियों तक उपलब्ध था।
· नियंत्रित समूहों की तुलना में छोटे और मार्जिनल किसानों (2 हेक्टेयर से कम ज़मीन) की पारिवारिक आय में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि, भूमिहीन परिवारों की आय में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि, और बड़े किसानों (2 हेक्टेयर से अधिक ज़मीन) की पारिवारिक आय में लगभग 80 प्रतिशत की वृद्धि।
· परियोजना से कुल मिलाकर 2,30,000 प्रत्यक्ष लाभार्थियों के रहन-सहन में सुधार, जिसकी वजह से बाहर जाने (माइग्रेट करने) वालों की संख्या में 70 प्रतिशत की कमी।