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राय30 जनवरी, 2024

भारत के तेज शहरी रूपांतरण के लिए तैयारी

भारत तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है। 2011 के 31% प्रतिशत की तुलना में, 2036 तक भारत के शहर और कस्बे 60 करोड़ लोगों या 40% आबादी के लिए रहने लायक होंगे और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में शहरी क्षेत्रों का लगभग 70% योगदान होगा। भारत इस शहरी बदलाव का कितनी अच्छी तरह से प्रबंधन करता है, यह 2047 तक, यानी आजादी के 100 साल पूरे होने पर विकसित देश बनने की उसकी महत्वाकांक्षा को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

निश्चित ही भारत के शहरीकरण को सफल बनाने के लिए, हमें ऐसी बुनियादी सुविधाएं बनाने की ज़रूरत है जो रहने लायक हों, पर्यावरण के अनुकूल हों और समावेशी हो जोकि अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाए।

चूँकि 2047 तक आवश्यक शहरी बुनियादी ढाँचे का लगभग 70% निर्माण अभी बाकी है, इसलिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होगी। 2036 तक, भारत को बुनियादी ढांचे में $840 बिलियन- औसतन $55 बिलियन या प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का 1.2%-का निवेश करने की आवश्यकता होगी। हालाँकि, अनुमान बताते हैं कि 2011 और 2018 के बीच, शहरी बुनियादी ढांचे पर देश का कुल पूंजी व्यय औसतन सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6% था, जो निवेश की आवश्यक मात्रा का सिर्फ आधा है।

साफतौर पर, निजी वित्तीय सहायता को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। ऐसे में जबकि 160 से अधिक भारतीय शहरों को निवेश ग्रेड के रूप में वर्गीकृत (क्लासीफाइड) किया गया है, सरकारी फंडिंग पर निर्भरता अधिक बनी हुई है। केंद्र और राज्य सरकारें शहरी बुनियादी ढांचे का 72% धन उपलब्ध कराती हैं, जबकि व्यवसायों से केवल 5% धन प्राप्त होता है। इन चुनौतियों को पहचानते हुए, सरकार ने व्यवसायों से धन प्राप्त करने के लिए उपाय किए हैं, लेकिन आर्थिक रूप से मजबूत शहरों में भी इसका उपयोग बेहद सीमित है। निजी पूंजी का लाभ उठाने के लिए, शहरी स्थानीय निकायों (अर्बन लोकल बॉडीज-यूएलबी) को व्यापक रूप से अपनी क्षमता का निर्माण करने और बैंक सक्षम परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी। देश के लिए नगर पालिका बांड बाजार को विकसित करना और वित्त जुटाने के नवीन साधन प्रस्तुत  करना भी महत्वपूर्ण होगा।

नागरिकों की उत्पादक क्षमता बढ़ाने के लिए, शहरों को उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए सार्वजनिक सेवाओं में भी निवेश करने की आवश्यकता होगी। स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में सुधार और कौशल को उन्नत करके मानव पूंजी का निर्माण करना - जिसमें निजी क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है - भारत के शहरी परिवर्तन एजेंडे का एक महत्वपूर्ण घटक है।

कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रदान करना एक और पक्ष है जो लोगों की उत्पादक क्षमता को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, परिवहन क्षेत्र में संस्थागत विभाजन को दूर करने के लिए चेन्नई एक व्यापक दृष्टिकोण अपना रहा है और एक नोडल निकाय की स्थापना करके शहर में यातायात और परिवहन की निगरानी, समन्वय और नियंत्रण कर रहा है।

यह सुनिश्चित करना कि महिलाओं के लिए परिवहन सुरक्षित और सुलभ है, अधिक महिलाओं को कार्यबल में लाने में भी मदद कर सकता है, जो विकास का एक महत्वपूर्ण अवसर है। विश्व बैंक की गणना से पता चलता है कि अगले 10 वर्षों में, यदि महिला श्रम बल की भागीदारी धीरे-धीरे मौजूदा 31.6% से बढ़कर 50% से अधिक हो जाए, तो भारत संभावित विकास में संभवतः 1.2 प्रतिशत अंक प्रति वर्ष जोड़ सकता है।

यह देखते हुए कि भारत एक जल संकटग्रस्त देश है, जल सुरक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा तैयार करना उतना ही आवश्यक है। उदाहरण के लिए, सूरत बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल (वेस्ट वाटर) का रिसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) करने वाले पहले शहरों में से एक बन गया है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के एक छोटे से शहर धारमपुरी ने जल आपूर्ति के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करके, हर घर को सीवरेज सिस्टम से जोड़कर और अपशिष्ट जल (वेस्ट वाटर) को रिसाइकिल (पुनर्चक्रित) करके पानी के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है।

विश्व बैंक सभी के लिए रहने योग्य शहरों के अपने दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए भारत सरकार, शहरी स्थानीय निकायों और नागरिकों के साथ काम करने के लिए तैयार है।

ऑगस्टे तानो कौमे, भारत में विश्व बैंक के कंट्री निदेशक हैं।

यह लेख सबसे पहले 26 जनवरी, 2024 को द इकोनॉमिक्स टाइम्स (The Economic Times) अखबार में प्रकाशित हुआ था।

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