पहाड़ों की स्वच्छ, तीखी ठंडी हवा वाला, उत्तर भारत का हिमाचल प्रदेश राज्य देश का “ऐप्पल स्टेट” कहलाता है ।
सेब की बागबानी में जुटे एक नौजवान दक्ष चौहान विस्तार से बताते हैं, “सेब की खेती ही हमारी जीविका का साधन है।” वो कहते हैं, “मेरे दादा के समय में इस पूरे क्षेत्र के लोग बहुत ग़रीब थे । सेब की खेती ने हमारा जीवन सुधार दिया।”
लगभग सौ साल पहले, जब से हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती शुरू की गई, तब से राज्य की अर्थव्यवस्था सेब पर निर्भर है। राज्य में खेती की कुल ज़मीन 6.15 लाख हेक्टेयर है और उसमें से लगभग दो लाख में फल के बागान हैं । इसमें से लगभग 1.15 हेक्टेयर ज़मीन में सेब की खेती होती है ।
लेकिन समय के साथ सेब की फ़सल को कई चनौतियों का सामना करना पड़ा । ये चुनौतियां थीं मौसम का पूर्वानुमान के मुताबिक न होना, कम फ़सल देने वाले पुराने बाग, खेती के पारंपरिक तरीके और उचित सिंचाई सुविधाओं का अभाव जिनके कारण कृषि से होने वाली कमाई कम थी, ख़ास तौर पर कम ज़मीन पर खेती करने वाले छोटे किसानों के लिए । ग्राहक की पसंद भी बदल रही है और उसका झुकाव आयात किए जाने वाली किस्मों की तरफ़ है जिससे छोटे किसान साल दर साल नुकसान के चक्कर में फंस गए हैं ।
वर्ष 2016 में हिमाचल प्रदेश में फिर से उस पथ-प्रदर्शक वाली ऊर्जा सुलगी जिससे सेब पहली बार हरे-भरे पहाड़ों में आए थे । उसी उर्जा ने राज्य को असल में भारत में सेब की खेती में अग्रणी बना दिया था ।
विश्व बैंक की हिमाचल प्रदेश बागबानी विकास प्रॉजेक्ट की मदद से राज्य ने किसानों के फल उगाने के तरीके को पूरी तरह बदलने का काम किया है । इसमें कृषि की पुरानी और नई परंपराओं का मिश्रण, पौध लगाने के नए पदार्थ, कृषि में आधुनिक विधि और तकनीक के साथ-साथ भंडारण, प्रसेसिंग और मार्कीटिंग की सुविधाओं को विकसित करना शामिल था, जिससे किसान अपनी फ़सल की बेहतर कीमत वसूल सके।
छह साल बाद इसके नतीजे सामने आने लगे हैं।