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मुख्य कहानी 20 अप्रैल, 2020

केरल की महिला इंजीनियरों की कहानी

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Women engineers at Malankara Dam, Kerala


केरल में ऐसे जिम्मेदार पदों पर महिलाओं को नियुक्त किया जाना असामान्य नहीं है, जो परंपरागत रूप से पुरुषों के कार्यक्षेत्र के रूप में पहचाने जाते रहे हैं। यहां सिंचाई विभाग की महिला इंजीनियर बांधों का प्रबंधन करने के साथ-साथ सिंचाई और घरेलू इस्तेमाल के लिए बनाए जा रहे paani ki नहरों के निर्माण-कार्य और उनकी देख-रेख का जिम्मा संभाल रही हैं।

2018 में, मानसून के कारण भारत के दक्षिणी राज्य केरल में भारी तबाही आई थी। राज्य में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश के कारण केवल दस दिनों में साल भर की बरसात जितना पानी इकट्ठा हो गया। सभी बांध और जलाशय तेजी से भर गए और खतरे के निशान को छूने लगे।

एलिजाबेथ कोराथ, पेरियार नदी पर बने भुथथंकेट्टू बांध की प्रभारी इंजीनियर थीं। पेरियार नदी राज्य की सबसे बड़ी नदी है, और कई मायनों में इसकी जीवनरेखा है। वह बताती हैं कि किस तरह से वह और उनकी सहकर्मी सुजाता एवं अन्य लोग त्रिवेंद्रम में सिंचाई विभाग के मुख्यालय को लगातार हर घंटे बढ़ते जलते स्तर की सूचना दे रहे थे। लगातार हो रही बारिश के कारण हमने अतिरिक्त पानी छोड़ने के लिए बांध के सभी फाटक खोल दिए थे।

वह याद करते हुए बताती हैं, "जलाशय का पानी खतरे के निशान से काफ़ी अधिक बढ़ गया था, और बारिश नहीं थम रही थी। हम कई दिनों तक वहीं उसी जगह पर रुके रहे ताकि हर घंटे की रिपोर्ट जारी कर सकें। हमें चिंता थी कि कहीं जलाशय के पानी से पास के गांवों में बाढ़ न आ जाए। सौभाग्य से, ऐसा नहीं हुआ. बाढ़ के आने से पहले हमने बांध की मरम्मत का सारा काम पूरा कर लिया।"

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केरल की सबसे लंबी नदी पर बना हुआ भुथथंकेट्टू बांध। सिंचाई नहरों के लिए जलस्तर को बनाए रखने एक लिए सभी फाटक खोल दिए गए हैं।.

पास ही, मलंकारा बांध का प्रबंधन करने वाली महिला इंजीनियर, उन तनावपूर्ण दिनों के बारे में बताती हैं, जब उन्हें जलाशय में बढ़ते जल स्तर की निगरानी के लिए वहीं बांध के पास शिविर बनाकर ठहरना पड़ा था। "पहली बार ऐसा नज़ारा देखने को मिला था कि बांध के दोनों किनारों पर पानी का स्तर खतरे के निशान को छू रहा था।"

मंजू, जिन्हें हाल ही में मलंकरा बांध के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, अपने रोजमर्रा के काम के बारे में बताती हैं कि किस तरह से स्थानीय किसानों, पंचायतों (ग्राम परिषदों) की परस्पर विरोधी मांगों को पूरा करना आसान नहीं है। "सिंचाई और पेयजल की आपूर्ति जैसी परस्पर विरोधी मांगों के liye बांध से पानी छोड़ने को कहा जाता है। जबकि उसी समय, मुझे ये देखना पड़ता है कि भविष्य की ज़रूरतों के लिए भी जलाशय में पानी का स्तर बना रहे।"

बांध सुरक्षा विभाग के साथ काम करते हुए S. मंजू अक्सर वरिष्ठ इंजीनियरों के साथ राज्य भर में चल रहे मरम्मत-कार्यों का निरीक्षण करने के लिए बांध स्थलों का दौरा करने जाती रहती हैं। वह अन्य महिला सहयोगियों के साथ काम करके बेहद गर्व महसूस करती हैं। "राज्य में बांध परियोजनाओं पर काम कर रही महिला सहयोगियों के साथ बातचीत करके खुशी मिलती है। हमें इस बात का गर्व होता है कि हमारा काम प्रदेश में रहने वाले लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।"

भुथथंकेट्टू और मलंकारा बांध दोनों ही केरल के उन 16 बांधों में से हैं, जिनकी मरम्मत विश्व बैंक समर्थित बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डैम रिहैबिलिटेशन एंड इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट: ड्रिप) के तहत की जा रही है।


"औरत होने के नाते, हमें घर और काम दोनों को एक साथ संभालने की पैदाइशी क्षमता hai । हम एक टीम के रूप में एक साथ काम करते हैं और एक-दूसरे की परेशानियों और चिंताओं को समझते हैं, और एक-दूसरे का साथ भी देते हैं। शायद इसीलिए हम अपना काम इतने शानदार ढंग से करते हैं क्योंकि हम जो काम करते हैं, उससे बहुत खुश हैं।"
जया पी. नायर
अधीक्षक, मुवत्तुपुझा घाटी सिंचाई परियोजना (एमवीआईपी)

नहर-तंत्र का प्रबंधन

जया पी. नायर 25 सालों से भी लंबे समय से सिंचाई विभाग में सिविल इंजीनियर के तौर पर कार्यरत हैं। वह मुवत्तुपुझा घाटी सिंचाई परियोजना (एमवीआईपी) का प्रबंधन करती हैं, जिसके अधीन मलंकारा बांध की देखरेख और उस क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल आपूर्ति की जिम्मा भी शामिल है।

जया के कार्यालय में, इस परियोजना के साथ काम कर रहे 32 कर्मचारियों में से महिला इंजीनियरों की संख्या दो तिहाई से ज्यादा है। जया कहती हैं कि इस नगरपालिका में महिला इंजीनियरों की संख्या सबसे ज्यादा है। उनका कहना है, "यह जानबूझकर उठाया गया कदम नहीं है। बस ऐसा हो गया!"

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जया पी. नायर अपनी टीम के साथ मलंकारा दामी में संचालन की देखरेख करती हुईं।

वे निविदा प्रक्रियाओं के क्रियान्वन्य के साथ-साथ ठेकेदारों के साथ मिलकर काम करती हैं, जो उनके अनुसार उनके काम से जुड़ी सबसे कठिन चुनौती है। इन महिला इंजीनियरों ने अपनी निगरानी में भूथथनकेट्टू बांध पर एक बांध का निर्माण करवाया है, जिससे बांध पर यातायात के दबाव को कम किया जा सकेगा। मलंकारा बांध के मरम्मत का काम बेहद कम समय में पूरा किया गया। इतना ही नहीं इस प्रक्रिया में पैसों की भी बचत हुई, जिसके निवेश से वे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और उसी क्रम में राजस्व बढ़ाने के लिए बांधों का सुंदरीकरण का काम आगे बढ़ाना चाहती हैं।

केरल, जो भारत के उच्च साक्षरता दर वाले राज्यों में से है, वहां के सरकारी कॉलेजों द्वारा संचालित सिविल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए लड़कियां भी समान रूप से लड़कों की तरह कठिन प्रवेश परीक्षा में हिस्सा लेती हैं।

जया कहती हैं, ''आम तौर पर बहुत सी लड़कियां इंजीनियरिंग कोर्स में अच्छे अंकों के साथ क्वालिफ़ाई करती हैं। नौकरी के लिए होने वाले इंटरव्यू के समय भी, हम लड़कियों को एकाग्रता और उत्साह के साथ शामिल होते देखते हैं। पुरुष अभ्यर्थी भी समान रूप से योग्य और अच्छे होते हैं, लेकिन कहीं न कहीं इस मामले में महिलाओं को बढ़त हासिल है।” वह आगे कहती हैं, "महिला होने के नाते, हमें काम और घर, दोनों को संभालने की जन्मजात क्षमता मिली हुई है।" वह मुतमइन होकर कहती हैं, "हम एक टीम के रूप में काम करते हैं और एक-दूसरे की परेशानियों व चिंताओं को समझते हैं और साथ खड़े होते हैं। शायद इसीलिए हम अच्छा काम कर पाते हैं, क्योंकि हम जो करते हैं उससे खुश हैं।"

राज्य में बांध पुनर्वास और नहरों से जुड़े अधिकांश कामों की पूर्ति के साथ, जया युवा इंजीनियरों के लिए उपयोगी सलाह देती हैं। "आगे चलकर, इन युवा इंजीनियरों को नदी बेसिन प्रबंधन, जल बंटवारे आदि से जुड़े नए प्रस्ताव और परियोजनाएं तैयार करनी चाहिए और इन्हें सरकार के समक्ष पेश करने के अवसरों की तलाश करनी चाहिए। इस तरह, वे अपने साथ-साथ राज्य के विकास में भी योगदान कर पाएंगे।"

उनसे प्रेरित होकर, इंजीनियरिंग की दुनिया की एक नई प्रवेशी रीबा जोसेफ़, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के क्षेत्र में नई पहलकदमी की इच्छुक हैं।

दिलचस्प बात यह है कि महिला इंजीनियर सिर्फ़ केरल में बांधों और नहरों का प्रबंधन ही नहीं संभाल रही हैं। महिलाओं की एक 27-सदस्यीय टीम, कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर फिर से 3,400 मीटर लंबा रनवे बिछाने में जुटी हुई है। केरल की महिला इंजीनियरों के लिए यह एक और बड़ी उपलब्धि है।



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