वाशिंगटन, 29 जून, 2023 — विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मंडल ने भारत के निम्न कार्बन ऊर्जा के विकास को तेज करने के लिए 1.5 बिलियन डॉलर के वित्तपोषण को मंजूरी दी है। यह वित्तपोषण अक्षय ऊर्जा को बढ़ा कर, हरित हाइड्रोजन का विकास करके, और निम्न कार्बन ऊर्जा निवेशों के लिए जलवायु वित्त को उत्प्रेरित करके निम्न-कार्बन ऊर्जा को प्रोत्साहित करने में भारत की मदद करेगा।
भारत दुनिया में सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है। हालांकि देश के प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत विश्व औसत के महज एक तिहाई के बराबर है, परंतु भारत की ऊर्जा मांग, अर्थव्यवस्था के बढ़ने के कारण तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। जीवाश्म आधारित ऊर्जा स्रोतों को चरणबद्ध तरीके से कम करने का आह्वान 2070 तक नेट-जीरो हासिल करने के भारत के लक्ष्य के अनुरूप है। औद्योगिक क्षेत्र भविष्य में ऊर्जा मांग एवं उत्सर्जन में वृद्धि का मुख्य चालक है। शुरुआत में उर्वरक एवं रिफाइनरी उद्योगों जैसे असंभव प्रतीत होने वाले औद्योगिक क्षेत्रों और बाद में लौह एवं इस्पात समेत भारी उद्योगों को डिकार्बनाइज करने में हरित हाइड्रोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत ने अक्षय ऊर्जा की क्षमता स्थापित करने और लागत में कमी करने में प्रभावी प्रगति हासिल की है। अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने से निम्न-कार्बन की ओर जाने की रफ्तार बढ़ेगी और हरित हाइड्रोजन क्षेत्र के उभरने एवं विस्तार में मदद मिलेगी।
दो परिकल्पित संचालनों की श्रृंखला में पहला - प्रथम निम्न-कार्बन प्रोग्रामेटिक डेवलपमेंट पालिसी ऑपरेशन – हरित हाइड्रोजन विकसित करने में भारत की मदद करेगा। निम्न कार्बन ऊर्जा अक्षय ऊर्जा द्वारा समर्थित जल के इलेक्ट्रोलिसिस से उत्पादित होती है। भारत के ऊर्जा कायाकल्प को लागू करने के लिए वित्तपोषण की आवश्यकता इतना ज्यादा है कि अकेले सार्वजनिक क्षेत्र की फंडिंग पर्याप्त नहीं होगी। हाल की सफलताओं के आधार पर, यह ऑपरेशन व्यवहार्यता फंडिंग अंतरालों का समाधान करके, ऑफ-टेकर जोखिमों को घटाकर, अक्षय ऊर्जा के ग्रिड एकीकरण को बढ़ाकर अक्षय ऊर्जा के लिए मांग को उत्प्रेरित कर निजी वित्तपोषण एवं अन्य सहायताओं को प्रोत्साहित करेगा।
भारत के लिए विश्व बैंक के कंट्री निदेशक अगस्त तानो कुआमे ने कहा कि “यह कार्यक्रम राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के सफल कार्यान्वयन में मदद करेगा जिसका उद्देश्य 2030 तक निजी क्षेत्र में 100 बिलियन डॉलर के निवेश को प्रोत्साहित करना है।” उन्होंने कहा कि "विश्व बैंक सार्वजनिक वित्तपोषण को पूरा करके और निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करके भारत के निम्न-कार्बन कायाकल्प को समर्थन के लिए प्रतिबद्ध है।”
कार्यक्रम का लक्ष्य अक्षय ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ाना और लागत घटाना एवं ग्रिड एकीकरण में सुधार करना है। यह भारत को 2030 तक 500 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा क्षमता तक पहुंचने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में मदद करेगा। सरकार की योजना वित्त वर्ष 2023-24 से वित्त वर्ष 2027-28 तक हर वर्ष 50 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लिए बोली प्रक्रिया जारी करने की है जिससे 2026 तक प्रति वर्ष 4 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन से बचा जा सकेगा।
निम्न-कार्बन ऊर्जा एवं जीवाश्म ईंधन के बीच समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए एक राष्ट्रीय कार्बन बाजार अनिवार्य है। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय कार्बन बाजार शुरू करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्बान क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम के लिए नीतियों का समर्थन करेगा। जनवरी, 2023 में भारत ने अपना पहला सोवरेन हरित बॉन्ड जारी किया था। कार्यक्रम 2026 तक 6 बिलियन डॉलर के सोवरेन हरित बॉन्ड जारी करने के लिए नीतिगत कार्रवाइयों का समर्थन करेगा।
परियोजना के लिए टीम लीडर जियाओडोंग वांग, ध्रुव शर्मा और सुरभि गोयल ने कहा कि “भारत उन्नत ऊर्जा दक्षता एवं स्वच्छ ऊर्जा को अपना कर विकास से उत्सर्जन को अलग कर सकता है।” उन्होंने कहा कि “टिकाऊ नीतिगत सुधारों के जरिए भारत निजी क्षेत्र से निवेश जुटा सकता है, रोजगार सृजन कर सकता है और नेट-जीरो लक्ष्य हासिल कर सकता है।”
यह ऑपरेशन विश्व बैंक के भारत को ऊर्जा कायाकल्प के व्यापक समर्थन का एक टुकड़ा भर है। यह भारत सरकार की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति के अनुरूप है। यह ऑपरेशन कॉप 27 में लॉन्च की गई विश्व बैंक की हाइड्रोजन फॉर डेवलपमेंट (एच4डी) पार्टनरशिप के अनुरूप भी है।
1.44 बिलियन डॉलर का ऋण अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (आईबीआरडी) से है और भारत को विश्व बैंक के पर्यावरण परिवर्तन वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लक्ष्य से इसे युनाइटेड किंगडम के 1 अरब डॉलर के बैकस्टॉप से सुगम बनाया गया है। इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) से 5.657 करोड़ डॉलर का क्रेडिट कैसिल्ड आईडीए क्रेडिट बैलेंस की पुनर्प्रतिबद्धता से है।