चेन्नई, 8 दिसंबर 2022 - विश्व बैंक ने आज "भारत में जेंडर उत्तरदायी शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक स्थानों को सक्षम करने पर टूलकिट" लॉन्च किया। इसका उद्देश्य महिलाओं की यात्रा आवश्यकताओं के लिए अधिक समावेशी सार्वजनिक परिवहन को डिजाइन करने के तरीके के बारे में भारतीय शहरों का मार्गदर्शन करना है। परंपरागत रूप से सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को महिलाओं की सुरक्षा और उनकी विशिष्ट यात्रा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन नहीं किया गया है। यह कार्य, शिक्षा और जीवन चयन तक उनकी पहुंच को गंभीर रूप से सीमित कर देता है। भारत में वैश्विक स्तर पर सबसे कम महिला श्रम बल भागीदारी दर है, यह 2019-20 में 22.8 प्रतिशत थी।
भारतीय शहरों के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया विश्व बैंक टूलकिट, नई और मौजूदा परिवहन नीतियों और योजनाओं में जेंडर दृष्टि को एकीकृत करने की सिफारिश करता है। यह शहरी स्थानीय निकायों और सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरणों जैसे प्रमुख संस्थानों में निर्णय लेने में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए भी कहता है। विशेष रूप से वरिष्ठ नेतृत्व और निर्णय लेने के स्तर पर ऐसा करना, महिलाओं को अधिक ध्यान रखा जाना महसूस करा सकता है। सार्वजनिक परिवहन में अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों के रूप में महिलाओं का निरंतर खराब प्रतिनिधित्व एक ऐसे दुष्चक्र को प्रोत्साहित करता है जिसमें महिलाएं सार्वजनिक परिवहन में असुरक्षित महसूस करती हैं।
रिपोर्ट पर्याप्त सड़क प्रकाश व्यवस्था, बेहतर पैदल एवं साइकिल ट्रैक समेत परिवहन और सार्वजनिक स्थानों पर कई हस्तक्षेपों की भी सिफारिश करती है जो विशेष रूप से उन महिलाओं को लाभान्वित करते हैं जो गैर-मोटर चालित परिवहन का ज्यादा उपयोग करती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कम किराये की नीतियां बनाने से महिलाओं एवं अन्य जेंडर के लोगों की यात्राएं बढ़ सकती हैं। एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करने से यौन उत्पीड़न शिकायतों का तेजी से निवारण करने में मदद मिल सकती है।
विश्व बैंक के प्रमुख परिवहन विशेषज्ञ और टूल-किट के सह-लेखक गेराल्ड पॉल ओलिवियर ने कहा कि, "शहरी गतिशीलता प्रणाली का विस्तार होने के साथ-साथ, कार्यान्वयन एजेंसियां विभिन्न जेंडर की चिंताओं का निवारण करने और महिलाओं के लिए सुरक्षित एवं समावेशी सार्वजनिक स्थान और सार्वजनिक परिवहन सुनिश्चित करने की आवश्यकता महसूस कर रही हैं।" उन्होंने कहा कि, "टूलकिट भारत और शेष विश्व की 50 मामलों के अध्ययन के अध्ययन की एक श्रृंखला के जरिए 'क्या' और 'कैसे' पर सीखे गए पाठों को एक साथ लाता है, जो उपयोगी साबित हुए हस्तक्षेपों पर प्रकाश डालते हैं।"
समस्त भारतीय शहरों में महिलाएं सार्वजनिक परिवहन के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं में से एक हैं। उनकी 84 प्रतिशत यात्राएं सार्वजनिक परिवहन के जरिए होने का अनुमान था। पुरुष और महिलाएं यात्राएं कैसे करते हैं, इसमें भी मौलिक अंतर होता है। पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाएं अपने काम पर पैदल चल कर जाती हैं - 27.4 प्रतिशत के मुकाबले 45.4 प्रतिशत। बस से यात्रा भी महिलाएं ज्यादा करती हैं और यात्रा करते समय किफायत का ध्यान रखे जाने की संभावना है। वे अक्सर परिवहन के धीमे साधन चुनती हैं क्योंकि तेज गति वाले साधन अधिक महंगे होते हैं। सुरक्षा की कमी भी महिलाओं को बाहर निकलने से रोकती है, जिससे सार्वजनिक स्थानों पर उनकी उपस्थिति कम हो जाती है।
टूलकिट को मुंबई के 6,048 उत्तरदाताओं पर 2019 में विश्व बैंक समर्थित एक सर्वेक्षण के जवाब में डिज़ाइन किया गया है। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि 2004 से 2019 के बीच, पुरुषों ने काम पर जाने के लिए दोपहिया वाहनों को वरीयता दी, जबकि महिलाओं ने ऑटो-रिक्शा या टैक्सियों का इस्तेमाल किया, जो दोपहिया वाहनों की तुलना में अधिक महंगे (प्रति ट्रिप) होते हैं।
इसमें व्यावहारिक टूल शामिल हैं जो भारत में महिलाओं के लिए सुरक्षित एवं समावेशी सार्वजनिक स्थानों और सार्वजनिक परिवहन सुनिश्चित करने में मदद करने के लिए नीति निर्माताओं के साथ-साथ निजी या समुदाय-आधारित संगठनों के एक विस्तृत समूह को जानकारी दे सकते हैं।