नई दिल्ली, 06 दिसंबर 2022 - विश्व बैंक ने अपने प्रमुख प्रकाशन, इंडिया डेवलपमेंट अपडेट अपडेट (भारतीय विकास अद्यतन) के नवीनतम संस्करण में कहा है कि चुनौतीपूर्ण वाह्य वातावरण के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था ने लचीलेपन का प्रदर्शन किया है। "नेविगेटिंग द स्टॉर्म" शीर्षक वाली रिपोर्ट में निष्कर्ष है कि जहां बिगड़ते बाहरी वातावरण का भार भारत की विकास संभावनाओं पर पड़ेगा, वहीं अधिकांश अन्य उभरते बाजारों की तुलना में अर्थव्यवस्था वैश्विक हालात से निपटने के लिए अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति में है।
कड़े वैश्विक मौद्रिक नीति चक्र के प्रभाव, धीमी वैश्विक वृद्धि और वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमतों का अर्थ होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2021-22 के मुकाबले वित्त वर्ष 2022-23 में कम वृद्धि करेगी। इन चुनौतियों के बावजूद, अपडेट उम्मीद जताता है कि मजबूत घरेलू मांग के कारण भारत सकल घरेलू उत्पाद में मजबूत वृद्धि दर्ज करेगा और दुनिया में तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहेगा।
विश्व बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भारत के मजबूत प्रदर्शन को देखते हुए 2022-23 के सकल घरेलू उत्पाद के अपने पूर्वानुमान को 6.5 प्रतिशत (अक्टूबर 2022 में) से संशोधित कर 6.9 प्रतिशत कर दिया है।
भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर अगस्टे तानो कॉउमे ने कहा कि, "भारत की अर्थव्यवस्था बिगड़ते बाहरी वातावरण के प्रति उल्लेखनीय रूप से लचीली रही है, और मजबूत व्यष्टि अर्थशास्त्र की मौलिक अवधारणाओं ने इसे अन्य उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अच्छी स्थिति में रखा है।" उन्होंने कहा कि "हालांकि, प्रतिकूल वैश्विक घटनाएं जारी रहने के कारण निरंतर सतर्कता की आवश्यकता है।"
रिपोर्ट का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की अर्थव्यवस्था 6.6 प्रतिशत की थोड़ी निम्न दर से बढ़ेगी। एक चुनौतीपूर्ण बाहरी वातावरण भारत के आर्थिक दृष्टिकोण को विभिन्न चैनलों के माध्यम से प्रभावित करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से मौद्रिक नीति को कसने के परिणामस्वरूप पहले से ही भारी निवेश निकासी और भारतीय रुपये का मूल्यह्रास हुआ है, जबकि उच्च वैश्विक परिष्कृत वस्तुओं की कीमतों के कारण चालू खाते का घाटा बढ़ गया है।
हालांकि, यह दलील देता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अन्य उभरते बाजारों की तुलना में वैश्विक हालात से अपेक्षाकृत अलग-थलग है। यह आंशिक रूप से इसलिए है क्योंकि भारत के पास एक बड़ा घरेलू बाजार है और यह अपेक्षाकृत कम अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रवाह के संपर्क में है। रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में विकास में 1 प्रतिशत अंक की गिरावट जहां भारत के विकास में 0.4 प्रतिशत अंक की गिरावट के साथ संबद्ध है, वहीं यह प्रभाव अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए लगभग 1.5 गुना बड़ा है। यूरोपीय संघ और चीन से विकास हालात के विश्लेषण से भी इसी तरह के परिणाम मिलते हैं।
पिछले एक दशक में भारत की वाह्य स्थिति में भी काफी सुधार हुआ है। चालू खाता घाटा पर्याप्त रूप से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में सुधार और विदेशी मुद्रा भंडार की एक ठोस बुनियाद (भारत का अंतरराष्ट्रीय भंडार दुनिया की सबसे बड़ी होल्डिंग्स में से एक है) द्वारा वित्तपोषित है।
नीतिगत सुधारों और विवेकपूर्ण नियामक उपायों ने भी अर्थव्यवस्था में लचीलापन विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बाजार उधार पर बढ़ती निर्भरता ने राजकोषीय नीति की पारदर्शिता और विश्वसनीयता में सुधार किया है और सरकार ने सरकारी प्रतिभूतियों के लिए निवेशक आधार को विविधीकृत किया है। पिछले दशक के दौरान एक औपचारिक मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे की शुरुआत मौद्रिक नीति निर्णयों को विश्वसनीयता प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण कदम था। वित्तीय क्षेत्र में यद्यपि अभी भी कुछ चुनौतियां हैं, फिर भी एक नई दिवाला और दिवालियापन संहिता की शुरुआत और नई राष्ट्रीय पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड के गठन समेत कई विनियामक और नीतिगत उपायों को अपनाने से पिछले पांच साल में वित्तीय क्षेत्र के (मेट्रिक्स) आव्यूह में सुधार सुगम हुआ है; इन नीतिगत हस्तक्षेपों से गैर-निष्पादित ऋणों से संबंधित दबावों को कम करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
विश्व बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक ध्रुव शर्मा ने कहा कि "वैश्विक हालात के लिए एक अच्छी तरह से तैयार की गई और विवेकपूर्ण नीति प्रत्युत्तर भारत को वैश्विक और घरेलू चुनौतियों का सामना करने में मदद कर रही है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापक आर्थिक नीति के - राजकोषीय और मौद्रिक - दोनों लीवर ने पिछले एक साल में उभरी चुनौतियों से निपटने में भूमिका निभाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई ने उदार मौद्रिक नीति सेटिंग्स को एक नपे-तुले दृष्टिकोण में वापस ले लिया क्योंकि यह आर्थिक विकास का समर्थन जारी रखते हुए मुद्रास्फीति पर लगाम कसने की आवश्यकता को संतुलित करता है। राजकोषीय नीति ने मुद्रास्फीति पर तेल की उच्च वैश्विक कीमतों के प्रभाव को कम करने के लिए ईंधन पर उत्पाद शुल्क और अन्य करों में कटौती करके केंद्रीय बैंक की दर कार्रवाइयों का समर्थन किया। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि भारत के विकास पर वैश्विक हालात के प्रतिकूल प्रभाव को सीमित करने की कोशिश करने और उपलब्ध नीतियों के बीच दुविधा है।
तालिका 1: प्रमुख अनुमान
संकेतक (प्रतिशत) | वित्त वर्ष 21/22 | वित्त वर्ष 22/23 | वित्त वर्ष 23/24 |
स्थिर बाजार कीमतों पर वास्तविक जीडीपी वृद्धि | 8.7 | 6.9 | 6.6 |
निजी खपत | 7.9 | 9.4 | 6.7 |
सरकारी खपत | 2.6 | 4.1 | 5.1 |
सकल स्थायी पूंजी निर्माण | 15.8 | 9.5 | 8.2 |
निर्यात, माल और सेवाएं | 24.3 | 10.4 | 9.0 |
आयात, माल और सेवाएं | 35.5 | 15.4 | 10.2 |
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स्थिर कारक कीमतों पर वास्तविक जीडीपी वृद्धि | 8.1 | 6.6 | 6.4 |
कृषि | 3.0 | 3.4 | 3.6 |
उद्योग | 10.3 | 5.0 | 5.8 |
सेवाएं | 8.4 | 8.4 | 7.6 |
स्रोत: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय और वित्त वर्ष 22/23 और वित्त वर्ष 23/24 के लिए विश्व बैंक का पूर्वानुमान |