Skip to Main Navigation
प्रेस विज्ञप्ति14 नवंबर, 2022

भारत के शहरी बुनियादी ढांचे के लिए अगले 15 वर्षों में 840 बिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता है : विश्व बैंक की नई रिपोर्ट

बढ़ती शहरी आबादी को शहरी बुनियादी ढांचे में समान निवेश की आवश्यकता होगी और सरकारी स्रोत पर्याप्त नहीं होंगे।

 

नई दिल्ली, 14 नवंबर, 2022 - विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट का अनुमान है कि यदि भारत को अपनी तेजी से बढ़ती शहरी आबादी की जरूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा करना है तो भारत को शहरी बुनियादी ढांचे में अगले 15 वर्षों में 840 बिलियन डॉलर - या औसतन 55 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष - का निवेश करने की आवश्यकता होगी। "फाइनेंसिंग इंडियाज इंफ्रास्ट्रक्चर नीड्स: कंस्ट्रेंट्स टू कमर्शियल फाइनेंसिंग एंड प्रॉस्पेक्ट्स फॉर पॉलिसी एक्शन" शीर्षक वाली यह रिपोर्ट उभरती वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए और निजी एवं वाणिज्यिक निवेश का लाभ उठाने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

वर्ष 2036 तक, भारत की जनसंख्या के 40 प्रतिशत लोग यानी 60 करोड़ लोग शहरों में रह रहे होंगे। इससे स्वच्छ पेयजल, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, कुशल और सुरक्षित सड़क परिवहन आदि की और अधिक मांग होने से भारतीय शहरों के पहले से ही बोझ तले दबे शहरी बुनियादी ढांचे एवं सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की संभावना है। वर्तमान में, केंद्रीय और राज्य सरकारें शहरों के बुनियादी ढांचे के 75 प्रतिशत से अधिक का वित्तपोषण करती हैं, जबकि शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) अपने स्वयं के अधिशेष राजस्व के जरिए 15 प्रतिशत वित्तपोषण करते हैं।

वर्तमान में भारतीय शहरों के बुनियादी ढांचे की जरूरतों का केवल 5 प्रतिशत ही निजी स्रोतों के जरिए वित्तपोषित किया जा रहा है। सरकार का वर्तमान (2018) वार्षिक शहरी बुनियादी ढांचा निवेश 16 बिलियन डॉलर के शीर्ष पर होने के साथ, अधिकांश जरूरतों के लिए निजी वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।

भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर ऑगस्ट तानो कौमे ने कहा कि “भारत के शहरों को हरित, स्मार्ट, समावेशी और टिकाऊ शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए बड़ी मात्रा में वित्तपोषण की आवश्यकता है। शहरों को उनकी बढ़ती आबादी के जीवन स्तर को एक सतत तरीके से सुधारने में सक्षम बनाना सुनिश्चित करने के लिए, निजी स्रोतों से और अधिक उधार लेने के लिए, खासकर बड़े और उधार की जरूरत वाले यूएलबी के लिए अनुकूल वातावरण बनाना महत्वपूर्ण होगा"।

नई रिपोर्ट बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का लाभ देने के लिए शहरी एजेंसियों की क्षमताओं के विस्तार की सिफारिश करती है। वर्तमान में, 10 सबसे बड़े यूएलबी हाल के तीन वित्तीय वर्षों में अपने कुल पूंजीगत बजट का केवल दो-तिहाई खर्च करने में सक्षम थे। कमजोर विनियामक वातावरण और कमजोर राजस्व संग्रह भी और अधिक निजी वित्तपोषण हासिल करने में शहरों की चुनौती को बढ़ाता है। 2011 से 2018 के बीच, शहरी संपत्ति कर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के सकल घरेलू उत्पाद के औसतत 0.3-0.6 प्रतिशत की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद का 0.15 प्रतिशत था। पालिका की सेवाओं के लिए कम सेवा शुल्क भी उनकी वित्तीय व्यवहार्यता और निजी निवेश के प्रति आकर्षण को कम करता है।

मध्यम अवधि में, रिपोर्ट कराधान नीति और राजकोषीय हस्तांतरण प्रणाली सहित संरचनात्मक सुधारों की एक श्रृंखला का सुझाव देती है - जो शहरों को अधिक निजी वित्तपोषण का लाभ उठाने की अनुमति दे सकती है। अल्पावधि में, यह बड़े उच्च क्षमता वाले शहरों के एक समूह की पहचान करती है जिनके पास भारी मात्रा में निजी वित्तपोषण जुटाने की क्षमता है।

 विश्व बैंक के शहर प्रबंधन एवं वित्त के ग्लोबल लीड और रिपोर्ट के सह-लेखक रोलैंड व्हाइट ने कहा कि “निजी वित्तपोषण जुटाने में शहरों के सामने आने वाली अड़चनों को दूर करने में भारत सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। विश्व बैंक की रिपोर्ट उपायों की एक पूरी श्रृंखला का प्रस्ताव करती है जिन्हें शहर, राज्य और संघीय एजेंसियां एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ने के लिए लागू कर सकती हैं जिसमें भारत की शहरी निवेश चुनौतियों के समाधान में एक बड़ा हिस्सा निजी वाणिज्यिक वित्त का हो।"

संपर्क

नई दिल्ली
नीतिका मान सिंह मेहता
वाशिंगटन
डायना चुंग

विश्व बैंक के रोलैंड व्हाइट इस बात पर कि भारत को अपनी बढ़ती शहरी बुनियादी सुविधाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए निजी स्रोतों का उपयोग करने की आवश्यकता क्यों है।

ब्लॉग

    loader image

नई खबरें

    loader image