जीएसटी पर अमल करना और अंतर्राज्यीय चेक पोस्ट समाप्त करना उन अत्यंत महत्त्वपूर्ण सुधारों में से हैं, जिनकी भारत के विनिर्माण (उत्पादन) क्षेत्र में ज़रूरत है।
नई दिल्ली, 27 अक्टूबर, 2014 – जैसे-जैसे आर्थिक सुधार तेज़ी पकड़ते जा रहे हैं, भारत की संवृद्धि के दीर्घकालिक संभावनाओं की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने की संभावना है। नेशनल गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स – जीएसटी (राष्ट्रीय वस्तु और सेवा कर) जैसे कदम, जिनमें अंतर्राज्यीय चेक पोस्ट्स (चुंगी वसूलने वाली चौकियां) समाप्त करना भी शामिल है, बदलाव लाने वाले (ट्रांसफ़ॉर्मेशनल) साबित हो सकते हैं और भारतीय निर्माता फ़र्मों की घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार ला सकते हैं। उक्त बात विश्व बैंक के नवीनतम इंडिया डेवलपमेंट अपडेट में कही गई है।
इसके अनुमानों के अनुसार सड़कों के अवरुद्ध हो जाने, चुंगी वसूल करने वाली चौकियों (टोल) तथा अन्य स्थानों पर रुकने की वजह से होने वाली देरी में आधी कमी हो जाने से माल की ढुलाई में लगने वाले समय में करीब 20-30 प्रतिशत की और लॉजिस्टिक्स पर आने वाली लागत में इससे भी अधिक 30 से 40 प्रतिशत की कमी हो सकती है। ऐसा कर देने से ही शुद्ध बिक्री में 3 से 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने से भारत के मुख्य विनिर्माण क्षेत्रों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने में मदद मिल सकती है और इस प्रकार भारत को उच्च संवृद्धि के मार्ग पर लौटने और बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा करने में मदद मिल सकती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था और इसकी संभावनाओं के बारे में वर्ष में दो बार तैयार किए जाने वाले अपडेट के अनुसार वित्त वर्ष 2015 में भारत की संवृद्धि दर के बढ़कर 5.6 प्रतिशत तथा वित्त वर्ष 2016 और 2017 में और बढ़कर क्रमशः 6.4 प्रतिशत तथा 7.0 प्रतिशत हो जाने की आशा है। [1]
विश्व बैंक के भारत-स्थित कंट्री डाइरेक्टर ओन्नो रुह्ल ने कहा है, “आर्थिक सुधारों के तेज़ी पकड़ने के साथ भारत के लिए संवृद्धि की दीर्घकालिक संभावनाएं काफी उज्ज्वल हैं। अपनी पूरी क्षमता अर्जित करने के लिए भारत को घरेलू सुधारों की अपनी कार्य-सूची पर आगे बढ़ने और निवेशों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है। विनिर्माण क्षेत्र के कार्य-प्रदर्शन में सुधार करने को लक्षित सरकार के प्रयासों से भारतीय युवक-युवतियों के लिए और अधिक रोज़गार की दिशा में मार्ग प्रशस्त होगा।”
भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ एक उल्लेखनीय रुझानों को प्रमुखता देते हुए अपडेट में कहा गया है कि मजबूत औद्योगिक रिकवरी की वजह से संवृद्धि में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। कैपिटल फ़्लो (पूंजी-प्रवाह) की वापसी हुई है, मुद्रा-स्फीति (इन्फ़्लेशन) के डबल आंकड़ों से नीचे आने से निवेशक के बढ़ते हुए भरोसे का संकेत मिल रहा है, विनिमय दर में स्थिरता आई है और वित्तीय क्षेत्र पर दबाव कम हुआ है।
मध्यावधि में संवृद्धि के मजबूत होने की आशा है। चालू वित्त वर्ष में डब्ल्यूपीआई (थोक मूल्य सूचकांक) इन्फ़्लेशन के 4.3 प्रतिशत पर मॉडरेट होने की आशा है, जो पिछले वर्ष 6.0 प्रतिशत था, जबकि वित्त वर्ष 2014 में चालू खाते के घाटे के 1.7 प्रतिशत के आंशिक रूप से बढ़कर 2.0 प्रतिशत होने की आशा है, क्योंकि आयात की मांग बढ़ रही है और पूंजी का इन्फ़्लो बढ़ रहा है। व्यय में संयम बरतते हुए वित्तीय समेकन (फ़िस्कल कंसोलिडेशन) के जारी रहने की आशा है, हालांकि मजबूती के लिए राजस्व जुटाने की गुंजाइश है।
भारत-स्थित विश्व बैंक के सीनियर कंट्री इकोनॉमिस्ट देनिस मेद्वेदेव ने कहा है, “जीएसटी को क्रियान्वित करने से भारत एक सामान्य बाज़ार में बदल जाएगा, इंएफ़िशिएंट टैक्स कैस्कैडिंग ख़त्म हो जाएगी और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। सुधार के परिवर्तनकारी प्रभावों, विशेषकर अंतर्राज्यीय चेक पोस्ट्स बंद कर देने से प्रतिस्पर्द्धात्मकता में नाटकीय रूप से वृद्धि हो सकती है और आउटलुक के लिए घरेलू तथा बाहरी जोखिमों को दूर करने में मदद मिल सकती है।”
अपडेट के अनुसार अनुकूल जनसांख्यिकी (डेमोग्रैफ़िक्स), अपेक्षाकृत अधिक बचत, हाल की नीतियों, कुशलता और शिक्षा में सुधारों तथा घरेलू बाज़ार के एकीकरण (इंटेग्रेशन) की वजह से भारत में संवृद्धि की दीर्घकालिक संभावनाएं काफी अधिक हैं। अपडेट में कहा गया है कि अमेरिका में संवृद्धि की परिष्कृत संभावनाओँ से भारत के मर्चेंन्डाइज़ और सर्विसेज़ (वस्तुओं और सेवाओं) के निर्यात को समर्थन मिलेगा, जबकि रिमिटैंस (बाहर से भेजी जाने वाली धनराशियां) के सशक्त फ़्लो और तेल की घटती हुई क़ीमतों से घरेलू मांग को समर्थन मिलने की आशा है।
लेकिन इन अनुमानों के लिए बाहरी झटकों से जोखिम पैदा हो सकते हैं, जिनमें अधिक आय वाले देशों की मौद्रिक नीति में फेरबदल होने से वित्तीय बाज़ार में आने वाले उतार-चढ़ाव, अधिक धीमी वैश्विक संवृद्धि, तेल की ऊंची क़ीमतें और मध्य-पूर्व तथा पूर्वी यूरोप में भौगोलिक-राजनीतिक तनावों की वजह से निवेशकों के बीच प्रतिकूल रवैया शामिल हैं।
अपडेट में बताया गया है कि घरेलू मोर्चे पर उक्त जोखिमों में ऊर्जा की सप्लाई के लिए चुनौतियां और अल्प-अवधि में राजस्व वसूली में ढीलापन शामिल हैं। लेकिन विनिर्माण क्षेत्र की मदद करने वाले सुधारों पर ध्यान देकर काफी हद तक उक्त जोखिमों को दूर किया जा सकता है।
भारत में विनिर्माण सकल घरेलू उत्पादन का लगभग 16 प्रतिशत है। यह एक ऐसा स्तर है, जिसमें पिछले दो दशकों में अधिकतर कोई बदलाव नहीं आया है और जो प्रति व्यक्ति आय में अंतर को नियंत्रित करने के बाद ब्राज़ील, चीन, इंडोनेशिया, कोरिया और मलेशिया जैसे देशों में 20 प्रतिशत से अधिक की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।
अपडेट में कहा गया है कि सप्लाई चेन में विलंब और अनिश्चितताएं उत्पादन में वृद्धि तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता के मार्ग पर प्रमुख बाधाएं हैं। एक राज्य से दूसरे राज्य को माल लाने-ले जाने के मार्ग में नियम-संबंधी बाधाओं (रेग्यूलेटरी इम्पेडिमेंट्स) की वजह से ट्रक के ट्रांजि़ट टाइम में एक-चौथाई की वृद्धि हो जाती है और भारतीय निर्माता कंपनियां अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धियों से काफी पिछड़ जाती हैं।
राज्य की सीमा पर स्थित चेक प्वाइंट, जिनका बुनियादी कार्य विभिन्न राज्यों की बिक्री और एंट्री टैक्स-संबंधी पूर्वापेक्षाओं के लिए कायदे-कानूनों का परिपालन कराना है, तथा अन्य दूसरी वजहों से होने वाली देरी के कारण ट्रक अपने पूरे ट्रांज़िट टाइम के 60 प्रतिशत तक ही चल पाते हैं। अपडेट में कहा गया है कि शिपमेंट्स (माल की ढुलाई आदि-संबंधी प्रक्रिया) में भिन्नताओं और इसके बारे में पहले से कुछ कह पाने की असमर्थता की वजह से लॉजिस्टिक्स की लागत कहीं ऊंचे बफ़र स्टॉक और बिक्री की हानि में बदल जाती है और यह लागत अंतर्राष्ट्रीय मानकों (बेंचमार्क) की तुलना में भारत में 2 से 3 गुना अधिक बैठती है।
जीएसटी (राष्ट्रीय वस्तु और सेवा कर) भारत में लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को तर्कसंगत बनाने और इसे नए सिरे से व्यवस्थित करने का अनोखा अवसर मुहैया कराता है। इसकी मदद से कर के लिहाज़ से वेयरहाउसिंग और वितरण-संबंधी निर्णय आसानी से लिए जा सकेंगे, ताकि ऑपरेशनल और लॉजिस्टिक-संबंधी कुशलता से वस्तु की लोकेशन और इसके मूवमेंट (आवागमन) को निर्धारित किया जा सके।
अपडेट के लिए लिंकः
https://documents.worldbank.org/curated/en/2014/10/20320065/india-development-update-india development-update
[1] यहां वित्त वर्ष का तात्पर्य 31 मार्च, 2015 को समाप्त होने वाले राजकोषीय वर्ष से है।