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मुख्य कहानी7 फ़रवरी, 2025

ग्रामीण तमिलनाडु में कौशल शिक्षा से प्रेरित महिला उद्यमी

The World Bank

 

 

विश्व बैंक

मुख्य बातें

  • एक सामुदायिक कौशल स्कूल के राज मिस्त्री तैयार करने के प्रशिक्षण कार्यक्रम ने नित्या की ज़िंदगी बदल दी। ये पहल विश्व बैंक समर्थित वाड़्यन्दू कट्टुवोम कार्यक्रम का हिस्सा थी । इससे नित्या को राज मिस्त्री का सफल उद्यम शुरू करने में मदद मिली जिससे उसके परिवार की आमदनी ख़ासी बेहतर हुई और उसके गांव में अन्य महिलाओं को भी रोज़गार मिला ।
  • ‘द तमिनाडु रूरल ट्रांस्फॉर्मेशन प्रॉजेक्ट’ यानी तमिलनाडु ग्रामीण परिवर्तन प्रॉजेक्ट आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाली महिला उद्यमियों के सामने वित्तीय चुनौतियों का समाधान निकालने में मदद कर रहा है। मैचिंग ग्रांट्स प्रोग्राम के ज़रिए जानकी जैसी महिलाओं को कर्ज़ लेने और व्यवसाय को बढ़ाने में ज़रूरी मदद मिल रही है। इस प्रोग्राम ने वर्ष 2022 से 8400 महिलाओं को 267 करोड़ रुपए का कर्ज़ दिलाने में मदद की है ।
  • इस प्रॉजेक्ट से एक लाख नए व्यवसाय खुले और 53 हज़ार लोगों को नौकरियाँ मिलीं। इससे ग्रामीण इलाकों में समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है । इसकी सफलता से अन्य राज्यों को भी ऐसे प्रयोग या कार्यक्रमों को अपनाने का प्रोत्साहन मिला है, जिनका मकसद दीर्घकालिक प्रगति को बढ़ावा देना और महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्योंगों को प्राथमिकता देकर समुदायों का उत्थान करना है ।

जब से 25 वर्षीया नित्या माँ बनी थी तब से वो परिवार की आय में योगदान देना चाहती थी ताकि उसके दो बच्चों को बेहतर ज़िंदगी मिले । लेकिन उसके गांव में महिलाओं के लिए अवसर कम ही थे । ये गांव त्रिचणापल्ली ज़िले के सदियों पुराने देखने योग्य मंदिर के पास स्थित है । उसने बताया, “मैं काम करना चाहती थी लेकिन अपने बच्चों को पीछे छोड़कर शहर जाकर नहीं रह सकती थी |”

आज नित्या अपने ही गांव के बीचोंबीच, बढ़िया चलते राज मिस्त्री उद्योग की अध्यक्षा है । उसकी ज़िदगी में नया मोड़ तब आया जब नित्या के स्वयंसेवी ग्रुप ने उसे पास ही बनाए गए सामुदायिक कौशल स्कूल द्वारा चलाए जाने वाले राज मिस्त्री प्रशिक्षण प्रोग्राम के बारे में बताया । उसने 20 दिन के प्रशिक्षण कोर्स के लिए नाम लिखा दिया । वहाँ उसकी मुलाकात तीन अन्य महिलाओं से हुई, जो उसी की तरह अपने लिए एक बेहतर भविष्य बनाने की उत्सुक थीं । मिलकर उन्होंने साझेदारी शुरू की और जल्द ही उन्हें एक बड़ा काम भी मिल गया । ये था स्थानीय पंचायत के लिए 600 साईन बोर्ड बनाने का 15 लाख रुपए का काम ।

आज नित्या और उसकी बिज़नेस पार्टनर्स निर्माण कार्यों के लिए एक पूरा उद्योग चलाती हैं और प्रत्येक पार्टनर लगभग एक हज़ार रुपए प्रतिदिन कमाती है। उन्होंने अपने गांव की तीन अन्य औरतों को भी काम पर रखा है। 

तमिलनाडु में राज्य सरकार के वाड़्यन्दू कट्टुवोम कार्यक्रम की कोशिशों के ज़रिए चारों ओर हो रहे परिवर्तन में नित्या की कहानी केवल एक उदाहरण है । वाड़्यन्दू कट्टुवोम कार्यक्रम यानी वीकेपी कार्यक्रम का मतलब है – ‘जीते हैं और दिखाते हैं’  ।  ये प्रोग्राम विश्व बैंक की तमिलनाडु ग्रामीण परिवर्तन परियोजना के समर्थन से चलता है। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के कौशल और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना और छोटे व्यवसायों को आसानी से कर्ज़ देना है।

मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं अपनी ट्रेनिंग के बाद इतनी जल्दी कमाने लग जाऊँगी।
नित्या
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वर्ष  2019 से इस परियोजना के तहत बनाए गए 2500 सामुदायिक कौशल स्कूलों में 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों को 75 व्यवसाय या कौशल में प्रशिक्षण देने में मदद की गई है । इनमें से 65 प्रतिशत महिलाएँ थीं। इन स्कूलों में खास तौर पर महिलाओं की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सस्ती दरों पर, व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है क्योंकि संगठित क्षेत्र के रोज़गार पाने में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन स्कूलों की अलग बात यह है कि इन्हें सफल स्थानीय उद्यम चलाते हैं जहां व्यवसाय के मालिक और समुदाय के ही विशेषज्ञ प्रशिक्षक यानी ट्रेनर के तौर पर काम करते हैं और इसे सुनिश्चित करते हैं कि ट्रेनिंग व्यावहारिक और उचित हो।

इन कौशल कार्यक्रमों से पास होकर निकलने वाले कई छात्रों ने अपने उद्यम शुरू किए हैं। इस प्रॉजेक्ट के शुरू होने के बाद से पूरे राज्य में लगभग 28,700 नए व्यवसाय शुरू हुए हैं। इसके अलावा 11,600 से ज़्यादा प्रशिक्षण पाने वालों को स्थानीय उद्यमों में रोज़गार मिले हैं। इससे ग्रामीण लोगों को स्थायी रोज़गार देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में मदद मिली है।

दिलचस्प है कि कई महिलाओं ने रिवायती तौर पर मर्दों के माने जाने वाले पेशे अपनाए हैं। इनमें स्थानीय बाज़ारों में बेचने के लिए एलईडी बल्ब बनाना शामिल है। एक समय मज़दूरी करने वाली भानू प्रिया ने कहा, “अब मैं सारा समय काम खोजने की जगह घर से कमाई कर सकती हूँ।” उसे कभी –कभार ही काम मिलता था। उसका कहना था, “अब मेरा कमाई का स्थायी साधन है और काम भी ज़्यादा आसान है।”

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आगे बढ़ रही नई महिला उद्यमियों की मदद

फिर भी, कौशल विकसित करना इस पूरी प्रक्रिया का मात्र एक भाग है। नित्या जैसी कई महिलाओं के पास कौशल है, लेकिन किसी व्यवसाय को शुरू करने के लिए पैसे का प्रबंध कर पाने में उन्हें मुश्किलें आती हैं। दरअसल 2022 के एक अध्ययन से पता चला कि भारत के मध्यम, छोटे, माइक्रो और नैनो उद्यमों में से 20 प्रतिशत की मिलकियत महिलाओं की है। लेकिन महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों की कर्ज़ की ज़रूरत जो पूरी नहीं हो पाई, वो हैरान करने देने वाली 11.4 अरब डॉलर है।

उदाहरण के तौर पर जानकी सिवगंगा ज़िले के कोलानगुडी गांव में अपने छोटे हार्डवेयर स्टोर का विस्तार करना चाहती थी । उसने दो साल पहले अपनी मेहनत की कमाई से की बचत के ज़रिए स्टोर शुरू किया था। उसने अपने गहने भी गिरवी रखे थे और अपने स्वयमसेवी ग्रुप से कर्ज़  भी लिया था। अब जब बिजली की चीज़ों की मांग बढ़ रही थी तो उसे अपने उद्यम को बढ़ाने का अवसर दिखा लेकिन उसके पास गिरवी रखने के लिए संपत्ति की कमी थी और बैंक से लोन लेने के तरीके की भी समझ नहीं थी । 

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इसी कमी को पूरा करने के लिए इस प्रोजेक्ट ने भूमिका निभाई । उसके मैचिंग ग्रांट्रस प्रोग्राम ने जानकी को वित्तीय संस्थानों से कर्ज़ लेने में मदद की और उसे  30 प्रतिशत ग्रांट दिलाई जिसे वो संपार्श्विक के तौर पर इस्तेमाल कर सकती थी, जिससे कर्ज़दाताओं का रिस्क खासा घट जाता है ।

प्रौजेक्ट ने उसे सामुदायिक मददगार रोज़ी से भी मिलवाया जिसने उसके व्यवसाय की संभावनाओं के बारे में आकलन किया और उसको नज़दीकी वन स्टॉप फ़ैसिलिटी सेंटर (औएसएफ़)  – मठ्ठी सिरागुगल तोड़ी माय्यम पर लेकर आई । वहाँ  कवालिफ़ाइड पेशेवर लोगों ने उसे अपनी व्यावसायिक योजनाओं को अंतिम स्वरूप देने में मदद की । उन्होंने बैंक लोन के लिए सारी ज़रूरी कागज़ी कार्रवाई पूरी की और उसे मार्कीटिंग करने की रणनीति भी बनाकर दी।

जानकी ने कहा, “रोज़ी और ओएसएफ़ की ओर से मिली मदद बहुमूल्य थी । उन्होंने केवल लोन लेने में ही मेरी मदद नहीं की, बल्कि डिजिटल पेयमेंट प्रक्रिया अपनाने में मेरा मार्गदर्शन किया और हिसाब-किताब रखने की बेहतर प्रक्रिया सिखाई। मेरी कमाई 40 प्रतिशत बढ़ गई है और मैंने बढ़ती मांग के कारण मदद के लिए एक अन्य महिला को काम पर रख लिया है । इससे मैं अंतत: इतना कमा सकती हूँ कि मैं अपने बच्चों को बेहतर स्कूल भेजने का  लंबे समय से संजोया सपना पूरा कर सकती हूँ।“  

वर्ष 2022 से मैचिंग ग्रांट्स प्रोग्राम ने पूरे राज्य में औरतों के नेतृत्व वाले 8400 उद्यमों को 267 करोड़ रुपए के कर्ज़ लेने में मदद की है।

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महिलाओं की मिलकियत वाले उद्यमों को बढ़ावा, राज़गार के नए अवसर पैदा करना

कुल मिलाकर, इस परियोजना ने एक लाख से अधिक उद्यमों को शुरू करने में मदद की है । इससे लगभग 53 हज़ार नौकरियां पैदा हुईं।

परियोजना की मुख्य कार्यकारी अधिकारी मिस एस दिवाधर्शिनी कहती हैं, “हमारा लक्ष्य न केवल गरीबी को दूर करना है बल्कि गांवों में स्थायी समृद्धि को बढ़ावा देना है । महिला नेतृत्व वाले उद्यमों को प्राथमिकता देकर,  हम यह सुनिश्चित करते हैं कि आर्थिक विकास के लाभ समावेशी और दीर्घकालिक हों।“

परियोजना के व्यापक प्रभावों ने तमिलनाडु सरकार को सरकारी संसाधनों का उपयोग करके मॉडल को राज्य स्तर पर बढ़ाने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है। बिहार और सिक्किम जैसे राज्यों ने भी इस पहल की परिवर्तनकारी क्षमता  को पहचाना है और इन तरीकों को  सीखने के लिए तमिलनाडु में टीमें भेजी हैं।

इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले, विश्व बैंक के समिक सुंदर दास कहते हैं, "यह परियोजना केवल कौशल विकास या वित्तीय सहायता प्रदान करने के बारे में नहीं है। यह ऐसे स्थायी आर्थिक परिवर्तन को प्रेरित करने के बारे में है जो पीढ़ियों के लिए समुदायों के जीवन-स्तर को नौकरियों के ज़रिए ऊपर उठाएगा।"

नित्या और जानकी जैसी ग्रामीण महिलाओं को सफल होने के लिए आवश्यक मदद और प्रशिक्षण प्रदान करके, यह परियोजना जीवन बदल रही है। यह पूरे समुदायों की संभावनाओं को अनलॉक कर रही है, और तमिलनाडु के लिए एक अधिक समावेशी और समृद्ध भविष्य बना रही है।

 

सुनिए इन महिला उद्यमियों का क्या कहना है:

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त्रिची की डी पूवीजी ने अपना खुद का एलईडी बल्ब व्यवसाय शुरू किया है। वीकेपी परियोजना ने 4.5 लाख रुपये का  कर्ज़ दिया जिसमें परियोजना से 1.5 लाख रुपये का मैचिंग ग्रांट अनुदान शामिल था।

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तिरुवरूर की सुलोचना अपने निर्माण व्यवसाय का विस्तार करना चाहती थीं । लेकिन उनके पास आवश्यक मशीनरी और फंडिंग नहीं थी ।  वीकेपी कार्यक्रम ने उन्हें कर्ज़ और मैंचिंग ग्रांट अनुदान प्राप्त करने में मदद की। अब वह अपने गांव की तीन महिलाओं को रोजगार देती हैं और प्रति वर्ष 5 लाख रुपए कमाती हैं। वह पड़ोसी जिलों में अपने काम का विस्तार करने की योजना बना रही हैं।

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शांति मदुरई की एक उद्यमी हैं जिन्हें बचपन से सिलाई का शौक है। वह अपने कौशल को बढ़ाना चाहती थीं और उन्होंने परियोजना द्वारा दी गई मदद का लाभ उठाया ।

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रेवती एक गरीब पृष्ठभूमि से हैं और रोज़ मज़दूरी करके जीवनयापन करती हैं । उन्होंने अन्य कई महिलाओं के साथ मिलकर परियोजना के सामुदायिक कौशल विद्यालय के तहत वेल्डिंग का प्रशिक्षण लिया । ये महिलाएं अब रोज़ 500 रुपए कमाती हैं ।  वो अपने कौशल को बेहतर कर, भविष्य में अधिक कमा सकती हैं । 

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डिंडीगुल जिले के कोडईकनाल में, दि कोडेई हिल क्रोप्स फ़ार्मर प्रोड्यूसर कंपनी में 50 प्रतिशत से अधिक शेयर धारक महिला किसान हैं। ये कॉफी, काली मिर्च और नारियल उगाती हैं । वीकेपी ने मूल्य संवर्धन कृषि के माध्यम से उनकी आय बढ़ाने में मदद की है।

*अकांक्षिता दे, अमित अरोड़ा, रामासुब्रमण्यन ओरुगांती और अरशिया गुप्ता की दी जानकारी के साथ

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