कुछ साल पहले, भारत के पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड में स्थित पेरेन ज़िला अस्पताल बुरी हालत में था। अस्पताल का फ़र्श टूटा हुआ था, जगह जगह मिट्टी जमी हुई थी और मरीज़ों के लिए हाथ धोने और शौच की भी सुविधा नहीं थी। वहाँ कोई ऑपरेशन थिएटर न होने के कारण आपातकालीन सेवाएँ बरामदे में प्रदान करने की मजबूरी थी। डॉक्टर डायथो कोज़ा याद करते हैं कि लेबर रूम में जगह इतनी कम थी कि टॉर्च की रोशनी में सिज़ेरियन ऑपरेशन किए जाते थे।
आज वो अस्पताल, विश्व बैंक (वर्ल्ड बैंक) की मदद के साथ, बहुत बदल गया है। अब वहाँ यंत्रों से लैस लेबर रूम है और नवजात शिशुओं का ध्यान रखने के लिए अलग स्थान है। पानी के निकास के लिए बेहतर व्यवस्था के कारण पानी कम रुकता है और जैव-चिकित्सकीय (बायोमेडिकल) कचरे का ठीक से निपटारा किया जाता है। इससे अस्पताल कर्मचारियों और मरीज़ों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित जगह बन गया है। नतीजा ये हुआ है कि चार-पाँच महीने में ही अस्पताल में लगभग 56 शिशुओं का जन्म हुआ है जबकि पिछले पूरे साल में यह आँकड़ा केवल 50 ही था।