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मुख्य कहानी23 सितंबर, 2024

घर से दूर एक घर: तमिलनाडु की कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल

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कहानी में मुख्य बातें

  • तमिलनाडु में कामकाजी महिलाओं के हॉस्टल महिलाओं के सुरक्षित आवास की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं क्योंकि अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं कार्यबल में प्रवेश कर रही हैं जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल रहा है।
  • तोज़ही नाम से जाने वाले ये हॉस्टल में भुगतान की क्षमता और ज़रूरतों के अनुसार अलग अलग कमरें हैं जहां 24 घंटे सुरक्षा के इंतज़ाम हैं।
  • विश्व बैंक का समर्थ से ये नये हॉस्टल सार्वजनिक-निजी भागीदारी से चलाए जा रहे हैं। इसमें सरकारी संसाधन एवं निजी प्रबंधन मिलकर उच्च गुणवत्ता वाली सेवाएं प्रदान कर रही हैं।

रागवर्षिनी खुशी से झूम उठीं जब उन्होंने सुना कि उन्हें भारत के एक दक्षिणी राज्य की राजधानी चेन्नई में नौकरी मिली थी। वह घबराई हुई भी थी।  शहर में अपने लिए सुरक्षित जगह ढूंढ़ पाना आसान नहीं होने वाला था।

उनके माता-पिता भी चिंतित थे। उनकी बेटी पहली बार घर से बाहर जा रही थी और वे ये सुनिश्चित करना चाहते थे कि वह सुरक्षित और खुश रहे।   

रागवर्षिनी याद करते हुए कहती हैं, किसी छोटे शहर से चेन्नई जैसे किसी बड़े शहर आना पहले पहले काफ़ी डरावना था। मुझे नहीं पता था कि मैं कहां रहूंगी या किससे मिलूंगी।”

सौभाग्य से, कुछ महीनों पहले राज्य सरकार ने राज्य के 10 बड़े शहरों में कामकाजी महिलाओं के लिए नए हॉस्टल की स्थापना की थी जिन्हें तोज़ही हॉस्टल कहा जाता है। (तमिल भाषा में तोज़ही  का मतलब ‘दोस्त’ होता है।

तमिलनाडु में मानव पूंजी की भरमार है और यहां की महिलाओं की महत्त्वाकांक्षाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं। ये हॉस्टल महिलाओं के लिए अपने सपनों को पूरा करने या अपने करियर को बनाने के लिए शहरों में जाना सुरक्षित और आसान बनाते हैं। सार्वजनिक निजी भागीदारी ने यह सुनिश्चित किया है कि इन सुविधाओं के संचालन और प्रबंधन के लिए सरकारी सब्सिडी की आवश्यकता न हो और महिलाओं को अच्छी सेवाएं भी मिलें।
जयश्री मुरलीधरन
सचिव, सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तिकरण, तमिलनाडु सरकार
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जुलाई 2023 में स्थापित ये हॉस्टल रागवर्षिनी के लिए वह आश्रय स्थल साबित हुआ जिसकी उन्हें तलाश थी। यह हॉस्टल तांबरम में स्थित था, जो शहर का तेजी से फलता-फूलता जॉब हब है। यह काफ़ी आधुनिक, साफ़-सुथरा और किफायती था जहां उसके ज़रूरत से जुड़ी सारी सेवाएं जैसे भोजन, लॉन्ड्री और सबसे बढ़कर सुरक्षा उपलब्ध थी।

उनकी मां, सीता अपनी बेटी के लिए नए कमरे का प्रबंध करने के बाद काफ़ी खुश दिखाई दीं। उन्होंने बताया, मेरी पहली चिंता सुरक्षा को लेकर थी। मुझे सुकून है कि मेरी बेटी एक सुरक्षित जगह पर है जहां सीसीटीवी कैमरे और 24 घंटे सुरक्षा की व्यवस्था है।”

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सशक्तिकरण की परंपरा का नया स्वरूप

तमिलनाडु भारत के सबसे अधिक शहरीकृत प्रदेशों में से एक है। यहां कामकाजी उम्र की सभी महिलाओं में एक तिहाई से ज्यादा महिलाएं श्रम बाजार का हिस्सा हैं जो राष्ट्रीय औसत से 15 प्रतिशत ज्यादा है।

ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु ने शहरों में बड़ी संख्या में नौकरी के लिए आ रही महिलाओं के लिए पहली बार हॉस्टल बनवाए हैं। शिक्षकों, फैक्ट्री मजदूरों, आईटी कर्मचारियों से लेकर छात्राओं तक महिलाओं की ज़रूरतों को देखते हुए तमिलनाडु ने पहले भी महिला छात्रावासों की स्थापना की है।

लेकिन पहले हॉस्टल की रखरखाव अच्छे से नहीं की जाती थी, बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं और अक्सर हॉस्टलों में गंदगी होती थी। इसलिए सस्ते दामों के बावजूद उनमें कोई रहना नहीं चाहता था।

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भविष्य के लिए एक मॉडल

इस बार राज्य ने एक दूसरा मॉडल अपनाया। विश्व बैंक की सहायता मिलने के बाद सरकार परिस्थितियों में बदलाव करने में सक्षम रही।

इसके लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी के एक नए दृष्टिकोण को अपनाया गया।  राज्य ने हॉस्टल के निर्माण के लिए आंशिक रूप से सहायता राशि और ज़मीन उपलब्ध कराईं। वहीं तमिलनाडु शेल्टर फंड ने निर्माण के लिए सह वित्त पोषण किया।।  लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि रियल एस्टेट बाजार में शेल्टर फंड की पेशेवर विशेषज्ञता से पूरे उद्यम को स्थापित करने में मदद मिली। इसमें खुली बोली के माध्यम से निजी ऑपरेटरों का चुनाव भी शामिल था जहां हॉस्टल के संचालन, रखरखाव और सेवाओं के पेशेवर प्रबंधन के लिए निजी ऑपरेटरों ने बोली लगाई।

फिलहाल राज्य के 10 तोज़ही  हॉस्टल हैं जिनमें नए हॉस्टल के साथ-साथ पुराने हॉस्टल भी शामिल हैं जिनकी नए सिरे से सुसज्जित किया गया है।  इनमे क़रीब 2000 कामकाजी महिलाएं रह रही हैं। अपने बजट के हिसाब से महिलाएं सस्ते कमरों से लेकर एयर कंडीशनर की सुविधा वाले कमरों का चुनाव कर सकती हैं। यहां सिंगल, डबल या चार बेड वाले कमरे उपलब्ध हैं जहां महिलाएं कुछ समय के प्रवास के साथ-साथ लंबी अवधि तक रह सकती हैं। इन हॉस्टलों में क्रेच सेवाओं से लेकर दिव्यांग महिलाओं के लिए सुविधाएं भी हैं।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि निजी प्रबंधन वाले इन सरकारी हॉस्टलों की 90 फीसदी सीटें फुल हैं। इसके कारण निजी हॉस्टलों पर भी ये दबाव है कि वे भी अपनी सेवाओं में सुधार करें।

तमिलनाडु सरकार की सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तिकरण सचिव जयश्री मुरलीधरन कहती हैं, तमिलनाडु में मानव पूंजी की भरमार है, और यहां की महिलाओं की महत्त्वाकांक्षाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं। ये हॉस्टल महिलाओं के लिए अपने सपनों को पूरा करने या अपने करियर को बनाने के लिए शहरों में जाना सुरक्षित और आसान बनाते हैं। सार्वजनिक निजी भागीदारी ने यह सुनिश्चित किया है कि इन सुविधाओं के संचालन और प्रबंधन के लिए सरकारी सब्सिडी की आवश्यकता न हो और महिलाओं को अच्छी सेवाएं भी मिलें।”

तमिलनाडु शेल्टर फंड के सह-प्रमुख मलाथी हेलेन और साथनबाबू का कहना है, "इस मॉडल की खासियत यह है कि इसकी मदद से कार्यबल में और अधिक महिलाएं शामिल हो पाएंगी। अब राज्य भर में ऐसे हॉस्टल बनवाए जा रहे हैं।”

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महिलाएं की एक नई ज़िंदगी की शुरुआत

हॉस्टल वासी दिलक्षणा जो श्रीलंका से चेन्नई आई है को खुशी है कि उसे रहने के लिए ये जगह मिल गई। दिलक्षणा संगीत में अपना कैरियर बनाना चाहती हैं। वह इस बात पर ज़ोर देकर कहती हैं, “मैं सिर्फ़ किसी की पत्नी या मां नहीं बनना चाहती थी। मैं उम्मीद करती हूं कि एक दिन मेरा अपना म्यूजिक स्टूडियो और अपार्टमेंट होगा। तब तक के लिए ये हॉस्टल मेरी सुरक्षित जगह है जिसका मैं अपने सीमित बजट में खर्च उठा सकती हूं।”

लंबे समय से हॉस्टल में रह रही महिलाएं भी सुखद बदलाव की बात करती हैं। एक महिला ने बताया, मेरा इससे पहले हॉस्टल में रहने का अनुभव काफ़ी बुरा था। शाम का खाना अक्सर सड़ा हुआ होता था। लेकिन यहां हमें ताजा पका हुआ खाना दिया जाता है और हम सब एक साथ बड़े से डाइनिंग हॉल में बैठकर खाना खाते हैं।”

इन हॉस्टलों का प्रबंधन संभालने वाली महिलाओं की टीम को इस बात का गर्व है कि उन्होंने यहां समुदाय की भावना पनपने में सहयोग किया है। टीम की एक प्रबंधक का कहना है, “मैं खुद कामकाजी महिलाओं के हॉस्टल में रही हूं, और मैं एक सहयोगी वातावरण की अहमियत समझती हूं।”

इतना ही नहीं, मेरे अनुभवों के बारे में सुनकर यहां की लड़कियां स्वयं प्रेरित होती हैं जो मेरे लिए बहुत बड़े सम्मान की बात है। जब मैं इस बड़े शहर में अपनी जगह बना सकती हूं, तो उनके लिए भी यह संभव है।”

इन हॉस्टलों के बारे में अब लोग जानने लगे हैं। इनमें से एक हॉस्टल में नई-नई रहने आई एक महिला ने बताया, मुझे नहीं पता कि मेरी अगली नौकरी मुझे कहां ले जाएगी।  लेकिन मैं सबसे पहले तोज़ही  हॉस्टल ढूंढ़गी।”

भारत में विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर आगस्त तानो कुआमे कहते हैं, भारत के आर्थिक विकास के लिए ये ज़रूरी है कि महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए। भारत अगर महिलाओं की श्रम बाजार में भागीदारी को वर्तमान 33 प्रतिशत से बढ़ाकर लगभग 50 प्रतिशत करने में कामयाब हो जाता है तो वह अपने सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को 1 से 2 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।”

विश्व बैंक की इस परियोजना का प्रबंधन कर रहे अभिजीत संकर रे और यान झांग ने कहा, “इस पहल ने दिखाया है कि किस तरह से भारत में सस्ते आवास की समस्या को दूर करने में निजी क्षेत्र की मदद ली जा सकती है और इसके साथ ही श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई जा सकती है।”

इस बीच, रागवर्षिनी को न सिर्फ़ सुरक्षित आवास बल्कि उसे एक सहयोगी समुदाय भी मिला है। “अब, मैं अपनी संभावनाएं तलाशना चाहती हूं।” यह कहते हुए उसकी आंखें उत्सुकता से चमक रही थीं।

साभार: यान झांग, अभिनीत रे, सीता रघुपति और किंग्यून शेन

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