मध्य प्रदेश के धार ज़िले के रारूआराई गांव में माध्यमिक विद्यालय यानी सीनियर सेकेंडरी स्कूल की कम उम्र की लड़कियां स्कूल जाने से कतराती थीं । स्कूल के बाहर तमाशाई बने खड़े लोग रोज़ाना उन्हें परेशान करते थे जिसके कारण उन्हें स्कूल जाने का सफ़र भयभीत करने वाला अनुभव लगता था और इससे उनकी शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ता था। सोलह वर्षीया छात्रा मनीषा चौहान याद करती हैं, “मैं स्कूत के करीब लड़कियां के छात्रावास (गर्ल्स हॉस्टल) में रहती हूँ, लेकिन मैं हॉस्टल से स्कूल जाने के मात्र 50 मीटर के सफ़र के दौरान पैदल चलते हुए सुरक्षित महसूस नहीं करती थी । हर जगह रेढ़ी-फड़ी वाले नज़र आते थे, बसें इधर-उधर बेतरतीब रुकती थीं और हमेशा वहां परुषों की भीड़ रहती थी जिससे एक साथ चलती हुई हम सभी असहज हो जाती थीं ।"
फिर, पिछले छह महीने के दौरान इस स्कूल के बाहर दिखने वाली तस्वीर पूरी तरह से बदल गई । स्कूल के बाहर की सड़क को चौड़ा किया गया, पैदल चलने वालों के लिए रास्ता बनाया गया, ज़ीब्रा क्रॉसिंग और स्पीड कंट्रोल करने की पट्टियां बनाई गईं और सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण एक सीसीटीवी कैमरा लगाया गया । स्कूल के गेट के बाहर एक बस स्टैंड के कारण ट्रैफ़िक को बैहतर तरीके से व्यवस्थित करने में मदद मिली, तमाशाई लोगों की भीड़ बिखर गई और छात्राओं को ख़राब मौसम से राहत मिली ।