रूबी देवी एक गृहणी हैं, जो पूर्वी भारतीय राज्य बिहार के जहानाबाद जिले के रतनी गांव में रहती हैं । रूबी बताती हैं, "2014 में जब मेरा पहला बच्चा पैदा हुआ, तो उसका वजन लगभग 1.25 किलोग्राम था । वह अक्सर बीमार पड़ जाता था और बढ़ती उम्र के साथ उसे कुछ भी सीखने में कठिनाई हो रही थी।" साल 2016 के बाद इस स्थिति में काफ़ी बदलाव आया जब रूबी देवी को गर्भावस्था के दौरान उचित पोषण के महत्व, गर्भधारण के बीच सही अंतर और बच्चे को सही तरीके से दूध पिलाने के बारे में पता चला. उनका दूसरा बच्चा स्वस्थ पैदा हुआ, जिसका जन्म के दौरान 3.5 किलो वजन था। वह अब दूसरी कक्षा में जाने के लिए तैयार है। वहीं उनका बड़ा बच्चा अब पहली कक्षा में ही है.
रूबी देवी विश्व बैंक द्वारा समर्थित जीविका कार्यक्रम की एक लाभार्थी हैं। इस कार्यक्रम ने राज्य भर में स्वयं सहायता समूहों की लाखों महिला सदस्यों के बीच पोषण को लेकर जागरूकता बढ़ाने में मदद की है। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है क्यूंकि बिहार में गरीबों की आबादी बहुत ज्यादा है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को बेहतर करने में कई चुनौतियों का सामना करते हैं।
बिहार के मुजफ्फरनगर जिले में रहने वाली 29 वर्षीय विनीता जीविका कार्यक्रम के तहत एक "पोषण सखी" के रूप में काम करती हैं। 2019 में पहली बार इस कार्यक्रम से जुड़ने के बाद उन्होंने जिन चुनौतियों का सामना किया, उसके बारे में याद करते हुए विनीता कहती हैं, "गांव की कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान पोषण या नियमित जांच के महत्व के बारे में सुनने के लिए तैयार नहीं थीं। " उस दौरान बिहार में बच्चे के जन्म को लेकर पुरानी मान्यताओं का प्रचलन था, जहां बूढ़ी मांओं का मानना था कि पिछली पीढ़ी की महिलाएं जिन चीज़ों पर निर्भर थीं, वह इस पीढ़ी की गर्भवती महिलाओं के लिए भी पर्याप्त है।"
अभी, विनीता का गांव में खुलकर स्वागत किया जाता है। वह हर रोज़ पांच से सात घरों में जाती हैं, गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों के साथ उचित पोषण, गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच के बारे में बात करती है। यहां तक कि वह ऐसे खानपान को अपनाने के बारे में सलाह देती हैं, जिससे जुड़ी सामग्री उनके घर पर आसानी से उपलब्ध हो और आराम से घर पर ही उसे पकाना संभव हो। प्रगति को दर्शाने के लिए वह उन घरों पर लाल बिंदी लगा देती है जहाँ उन्हें लगता है कि यहां सुधार की गुंजाइश है। जिन घरों में उनकी सलाह का पालन किया जा रहा होता है, वहां हरी बिंदी लगा देती है। पिछले कुछ सालों में विनीता यह देखकर खुश हैं कि लाल बिंदी वाले घर धीरे-धीरे हरी बिंदी वाले घरों में तब्दील हो रहे हैं।