बाढ़ और सूखा लंबे समय से भारत के जीवन का हिस्सा रहे हैं। लगभग 150 वर्ष पहले, गंगा के ऊपरी उपजाऊ मैदान में किसानों को पानी देने के लिए गंगा नहर प्रणाली विकसित की गयी थी। दक्षिण भारत में भी, 20वीं सदी की शुरुआत में कृष्णा राजा सागर बांध एवं अन्य प्रणालियों ने बाढ़ सँभालने और फसल के खराब न होने में मदद की।
हालांकि, आज चुनौतियां पूरी तरह अलग तरीके की हैं। मानसून और अधिक अनियमित एवं अप्रत्याशित हो गया है, जिससे एक तरफ अत्यधिक बारिश होती है और दूसरी ओर अचानक सूखा पड़ जाता है। चिंता की बात यह है कि भारत का सूखा संभावित क्षेत्र वर्ष 1997 से 57 प्रतिशत बढ़ गया है, जबकि अत्यधिक बारिश की घटनाएं 2012 से लगभग 85 प्रतिशत बढ़ गयी हैं। इसके कई पीढ़ियों को प्रभावित करने वाले असर हो सकते हैं।
बाढ़ और सूखे के प्रभावों को कम करने के लिए, भारत ने जल सुरक्षा में सुधार एवं जलवायु प्रतिरोधक्षमता बनाने के लिए कई नीतियां एवं कार्यक्रम शुरू किये जिनमें कई को विश्व बैंक की सहायता प्राप्त थी। इसमें बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल, हाइड्रोमेट सेवाएं एवं पूर्व चेतावनी प्रणालीव्यापक बांध सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय योजना जैसी प्रौद्गिकियों में उन्नयन शामिल है। सराहनीय होने के बावजूद ये उपाय भारत के जल संकट की व्यापकता का निपटारा करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।