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मुख्य कहानी17 अगस्त, 2023

भारत : बाढ़ और सूखे की जटिल समस्या को संभालना

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हाइलाइट

  • भारत में बाढ़ और सूखा बढ़ रहा है। परंतु उन्हें आपदा बनने की जरूरत नहीं है। यह इस पर निर्भर करता है कि समाज उनको कैसे संभालता है।
  • विश्व बैंक ने इन चरम जलवायु परिस्थितियों को बेहतर ढंग से सँभालने के लिए ईपीआईसी रेस्पॉन्स फ्रेमवर्क को पेश किया है। यह इस बात पर जोर देता है कि बाढ़ और सूखे को समान स्पेक्ट्रम के भिन्न छोरों से देखा जाना चाहिए, और इसको सम्बोधित करने में सरकार, निजी क्षेत्र, स्थानीय निकाय, अकादमिक जगत एवं नागरिक समाज समेत संपूर्ण समाज को शामिल होना चाहिए।
  • इस फ्रेमवर्क का एक नया टूल भारत के बाढ़ प्रभावित राज्य असम में परीक्षण किया जा रहा है । यह विभिन्न एजेंसियों को उनके बाढ़ एवं सूखा सुरक्षा कार्यक्रमों की स्थिति का आंकलन करने में सक्षम बनाता है जैसे कि सहयोग कहां बढ़ाया जा सकता है और समय के साथ प्रगति पर निगरानी कैसे रखा जाए।

बाढ़ और सूखा लंबे समय से भारत के जीवन का हिस्सा रहे हैं। लगभग 150 वर्ष पहले, गंगा के ऊपरी उपजाऊ मैदान में किसानों को पानी देने के लिए गंगा नहर प्रणाली विकसित की गयी थी। दक्षिण भारत में भी, 20वीं सदी की शुरुआत में कृष्णा राजा सागर बांध एवं अन्य प्रणालियों ने बाढ़ सँभालने और फसल के खराब न होने में मदद की।

हालांकि, आज चुनौतियां पूरी तरह अलग तरीके की हैं। मानसून और अधिक अनियमित एवं अप्रत्याशित हो गया है, जिससे एक तरफ अत्यधिक बारिश होती है और दूसरी ओर अचानक सूखा पड़ जाता है। चिंता की बात यह है कि भारत का सूखा संभावित क्षेत्र वर्ष 1997 से 57 प्रतिशत बढ़ गया है, जबकि अत्यधिक बारिश की घटनाएं 2012 से लगभग 85 प्रतिशत बढ़ गयी हैं। इसके कई पीढ़ियों को प्रभावित करने वाले असर हो सकते हैं।

बाढ़ और सूखे के प्रभावों को कम करने के लिए, भारत ने जल सुरक्षा में सुधार एवं जलवायु प्रतिरोधक्षमता बनाने के लिए कई नीतियां एवं कार्यक्रम शुरू किये जिनमें कई को विश्व बैंक की सहायता प्राप्त थी। इसमें बाढ़ पूर्वानुमान मॉडल, हाइड्रोमेट सेवाएं एवं पूर्व चेतावनी प्रणालीव्यापक बांध सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय योजना जैसी प्रौद्गिकियों में उन्नयन शामिल है। सराहनीय होने के बावजूद ये उपाय भारत के जल संकट की व्यापकता का निपटारा करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।

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महत्वपूर्ण बात यह है कि बाढ़ एवं सूखा को आपदा बनने  की जरूरत नहीं है। यह इस पर निर्भर है कि समाज इन चरम जलवायु परिस्थितियों का प्रबंधन कैसे करता है। यद्यपि राष्ट्रीय सरकारें इससे अलग-थलग तरीके से निपटती हैं, परंतु इन घटनाओं को समग्र रूप से जैसे संभाला जाता है, उसमें आदर्शात्मक बदलाव की जरूरत है। यह एक जटिल समस्या है, जिसमें जोखिम एवं प्रभावों को कम करने के लिए बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

बदलते जलवायु से आगे रहने की तीव्र जरूरत को देखते हुए नीदरलैंड स्थित शोध संस्थान डेल्टारेस की सहायता से विश्व बैंक ने इन जोखिमों का बेहतर ढंग से प्रबंधन करने के लिए एक नया दृष्टिकोण – द ईपीआईसी रेस्पॉन्स फ्रेमवर्क (सक्षम, योजना, निवेश, नियंत्रण) प्रस्तुत किया है।

इस फ्रेमवर्क को विश्व बैंक समर्थित असम एकीकृत नदी घाटी प्रबंधन कार्यक्रम के जरिए संचालित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम असम के लोंगों की जलवायु संबंधी आपदाओं से बचने को और राज्य को एकीकृत एवं टिकाऊ तरीके से अपने पर्याप्त जल संसाधन को विकसित करने के उद्देश्य से है।

कार्यक्रम में बोलते हुए, असम की बाढ़ एवं नदी क्षरण प्रबंधन एजेंसी (एफआरईएमएए) के मुख्य तकनीकी अधिकारी श्री भाष्कर दास ने बताया कि ‘जल संसाधन विभाग और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार निकट समन्वय के साथ एकीकृत तरीके से काम कर रहे हैं।’

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अन्य भारतीय राज्यों में ईपीआईसी रेस्पॉन्स फ्रेमवर्क के लागू होने की क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए अप्रैल, 2023 में नयी दिल्ली में इंडियन वाटर पार्टनरशिप और विश्व बैंक द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें बार-बार बाढ़ एवं सूखे से जूझ रही विभिन्न केंद्रीय सरकारी एजेंसियों, अग्रणी विशेषज्ञों और कई राज्यों ने भागीदारी की।

जहां असम, बिहार, कर्नाटक, केरल एवं ओडिसा जैसे राज्य कई समान चुनौतियों का सामना करते हैं, वहीं उनकी भिन्न-भिन्न जलवायु, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियां हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में, करीब 20,000 जलाशय सूख गये हैं और कई जिलों में भूजल स्तर दिन-ब-दिन घटता जा रहा है। दूसरी तरफ, असम है, जहां ब्रह्मपुत्र नदी का तेज प्रवाह, बाढ़, नदी तट का कटाव और नदी क्षेत्र में अतिक्रमण मुख्य चुनौतियां हैं। बिहार में भी, जहां कई नदियां नेपाल के पहाड़ों से बड़ी मात्रा में तलछट लेकर बहती हैं, 70 प्रतिशत भूमि बाढ़ संभावित है। और तो और, बिहार के 38 जिले हर साल या तो बाढ़ से, या फिर सूखे और कई बार दोनों से प्रभावित रहते हैं।

कार्यशाला में तीन प्रमुख संदेशों को रेखांकित किया गया :

·       बाढ़ और सूखे को समान स्पेक्ट्रम के भिन्न छोरों से निपटना

·       विभिन्न जल एजेंसियों के बीच समन्वय और चुनौती के मुकाबले साझा सरकारी प्रत्युत्तर प्रस्तुत करना

·       प्रत्युत्तर में निजी क्षेत्र, स्थानीय निकाय, अकादमिक जगत एवं नागरिक समाज समेत समग्र समाज को शामिल करना

मुख्य वक्तव्य देते हुए केंद्रीय जल आयोग के चेयरमान श्री कुशविंदर वोहरा ने कहा कि : “बाढ़ एवं सूखा हमारे समय के सबसे गंभीर मुद्दों में एक हैं।” इसलिए उन्होंने जोर दिया कि प्रभावी जल प्रशासन के लिए जलवायु लचीला संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपाय विकसित करना आवश्यक है।

असम में परीक्षण संचालन किये जा रहे नये विकसित ईपीआईसी रेस्पॉन्स असेसमेंट मेथोडोलॉजी (ईआरएएम) समाधान को भी कार्यशाला में प्रस्तुत किया गया। यह समाधान एक निर्णय समर्थन प्रणाली है जो विभिन्न एजेंसियों को उनके जलीय-जलवायु जोखिम प्रबंधन प्रणाली की स्थिति का आकलन करने और उन क्षेत्रों को चिह्नित करने में सक्षम बनाता है कि कार्यक्रम के अवयवों को कहां मजबूत किया जा सकता है, कहां सहयोग बढ़ाया जा सकता है और समय के साथ प्रगति पर निगरानी कैसे रखी जाए। इसके परिणाम उनके कार्यक्रमों की स्थिति के साथ ही साथ बाढ़ एवं सूखा जोखिम प्रबंधन प्रणाली को उन्नत करने के लिए चुनौतियों एवं अवसरों की एक साझा समझ पैदा करने के लिए नीतिगत संवाद की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।

भारतीय संदर्भ में, ईपीआईसी फ्रेमवर्क की प्रासंगिकता पर टिप्पणी करते हुए इंटरनेशनल कमीशन ऑन इरीगेशन एंड ड्रेनेज के महासचिव श्री ए.बी. पंड्या ने कहा : “ईपीआईसी फ्रेमवर्क एक अच्छे दिशानिर्देश एवं बेंचमार्क के रूप में काम करता है जिसके आधार पर व्यक्तिगत क्षेत्र या उपक्षेत्र की तैयारी का निस्तारण किया जा सकता है।”

बिहार में जटिल स्थिति को रेखांकित करते हुए बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (बीएसडीएमए) के श्री प्रवीण कुमार ने आपदा प्रबंधन नीचि विकसित करने, दिशानिर्देश निर्धारित करने, सभी विभागों में योजनाओं को मंजूरी देने, योजनाओं के कार्यान्वयन का समन्वय करने, शमन उपायों के लिए फंड की सिफारिश करने और किये गये उपायों की समीक्षा करने के अपने दायित्व के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि ईपीआईसी रेस्पॉन्स फ्रेमवर्क और ईआरएएम टूल इन उपायों का आकलन करने में उपयोगी होंगे।

 

[1] “Drought in Numbers”, United Nations Convention to Combat Desertification 2022. 

The workshop, Improving Flood and Drought Governance: Applying the EPIC Response Framework, took place on April 28, 2023, in New Delhi.

 

 

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