"मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी, जब मैंने उनसे स्कूल जाते समय सड़क और बस में होने वाली छेड़छाड़ के बारे में शिकायत की। वे मुझे स्कूल ले जाने के लिए हर रोज़ किसी पुरुष सदस्य को नहीं भेज सकते थे।"
"रात में बस पकड़ना असुरक्षित है क्योंकि बस स्टॉप पर देर तक इंतज़ार करना पड़ता है। घर वापिस लौटते समय मुझे डर और ख़तरे का एहसास होता है क्योंकि सड़कों पर अंधेरा होता है और बहुत कम औरतें आती-जाती दिखाई पड़ती हैं।"
ये वाकए भारतीय महिलाओं के सार्वजनिक परिवहन या सार्वजनिक स्थलों से जुड़े अनुभवों को बयां करते हैं। ऐसे अनुभव महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार तक पहुंच को प्रभावित करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि भारतीय महिलाओं की श्रम बाज़ार में भागीदारी बेहद कम है। 2020-21 के लिए ये आंकड़ा महज़ 26.2 प्रतिशत था।
भारत में महिलाओं द्वारा सार्वजनिक परिवहन के उपयोग का तरीका पुरुषों की तुलना में काफ़ी भिन्न है। यहां तक कि वे अलग-अलग कारणों से परिवहनों का इस्तेमाल करते हैं। सार्वजनिक स्थलों के उपयोग के दौरान महिलाओं के लिए सुरक्षा एक बेहद ज़रूरी मुद्दा होता है । वहीं पुरुषों के लिए ये उतना अहम मसला नहीं होता। इसके अलावा, महिलाएं दिन में ऐसे वक्त यात्रा करती हैं, जब सार्वजनिक परिवहनों में भीड़भाड़ कम होती है और वे बच्चों को लेकर सफ़र करती हैं। वे दिन में कई बार छोटी-छोटी यात्राएं करती हैं ताकि वे अपने घर से जुड़े काम या बच्चों को स्कूल से लाने की ज़िम्मेदारी पूरी कर सकें। जबकि, पुरुष अक्सर काम के सिलसिले में सार्वजनिक परिवहनों में यात्राएं करते हैं और सुबह और शाम के वक्त जब परिवहनों में भीड़भाड़ बहुत ज्यादा होती है, तब वे एक बार में लंबी दूरी की यात्राएं करते हैं।