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मुख्य कहानी11 जनवरी, 2023

नई मंजिल: क्षितिज से परे एक कहानी

The World Bank

हाइलाइट

  • नई मंजिल प्रोग्राम की अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धियों में अल्‍पसंख्‍यक समुदाय से जुड़े विकलांग लोगों को शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
  • अब तक 50,700 अल्‍पसंख्‍यक महिलाओं को इस प्रोग्राम के माध्‍यम से प्रदत्‍त शिक्षा और कौशल का लाभ मिला है।
  • पंजाब के गांव में स्‍कूल छोड़ने वाले युवाओं, खासकर सिख समुदाय की युवा लड़कियों को नई मंजिल प्रोग्राम से जुड़ने के लिये समझाने का काम

नई मंजिल- न्‍यू होराइज़न- प्रोग्राम, भारत सरकार के अल्‍पसंख्‍यक कार्य मंत्रालय द्वारा संचालित था और इसे विश्‍व बैंक ने 50 मिलियन डॉलर का सहयोग भी दिया।   नई मंजिल के अंतर्गत एजेंसियां अल्‍पसंख्‍यक समुदाय को प्रमाणित शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण पाने का अवसर उपलब्‍ध कराती  हैं। इसमें स्‍कूल छोड़ने वाले तथा मानसिक व शारीरिक विकलांगता वाले युवा शामिल हैं। यह प्रोग्राम 26 राज्‍यों तथा 3 केंद्रशासित क्षेत्रों में छह महीने की पढ़ाई और तीन महीने के कौशल प्रशिक्षण देने के साथ संचालित हुई ।  इसके बाद उन्‍हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिये छह महीने तक और सहायता दी गयी।  नई मंजिल ने देशभर में करीब 98,000 अल्‍पसंख्‍यक युवाओं के शिक्षा परिणामों को बेहतर बनाने और रोजगार के विकल्‍पों को बढ़ाने का काम किया |

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भारत में अल्‍पसंख्‍यक महिलाओं का सशक्तिकरण

समीरा केवल 14 साल की थी जब उसने स्‍कूल जाना छोड़ दिया था और इसके तुरंत बाद ही उसके गरीब माता-पिता ने उसकी शादी कर दी। वह घर पर रहती थी और अपने पति के परिवार के लिये खाना पकाती और साफ-सफाई करती थी, जैसा कि केरल के मलप्‍पुरम के मछुआरे समुदाय की अन्‍य महिलाएं किया करती हैं।

जब उसके गांव में नई मंजिल प्रोग्राम में नामांकन करवाने की घोषणा हुई, अपने पति के सहयोग से वह बड़ी ही उत्‍सुकता से उससे जुड़ गयी। एक साल बाद समीरा ने प्रोग्राम की तीन अन्‍य महिलाओं के साथ मिलकर बिस्मिल टेलरिंग तैयार किया। यह घर से चलाया जाने वाला उद्यम है जोकि समुदाय के कपड़े सिलाई का काम लेता है। उन्‍होंने अच्‍छी कमाई की। लेकिन महामारी और उसके परिणामस्‍वरूप लगने वाले लॉकडाउन की वजह से इस नये उद्यम पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इसके बावजूद, समीरा ने हिम्‍मत नहीं हारी और किसी तरह मास्‍क सिलाई का कुछ काम अपने हाथों में ले लिया और इस कठिन समय में अपने छोटे से परिवार को बचाये रखने में सक्षम हो पायी। अपनी पढ़ाई और प्रशिक्षण तथा बाहरी दुनिया की समझ ने उसके अंदर एक नया विश्‍वास जगाया था कि अस्‍थायी रूप से आयी इस परेशानी के बावजूद भी वह चीजों को आगे बढ़ा सकती है। अब समीरा ने सोचा है कि वह आगे की पढ़ाई करेगी और एक बेहतर उद्यमी बनेगी।

आंध्रप्रदेश राज्‍य के हैदराबाद शहर में तीन बच्‍चों की मां कौसर जहां परिवार के नौ अन्‍य सदस्‍यों के साथ रहती है। 17 साल की उम्र में शादी होने पर उसे स्‍कूल छोड़ना पड़ा था। संयोगवश, कुछ सालों बाद नई मंजिल के प्रशिक्षण की वजह से एक सरकारी अस्‍पताल में उसे मरीजों की देखभाल का काम मिल गया। जब महामारी आयी तो कौसर अपने वेतन से अपने परिवार की मदद कर पायी, क्‍योंकि बिजली का काम करने वाले उसके पति को काम नहीं मिल पा रहा था। अब वह अपने प्रशिक्षण का उपयोग हैदराबाद शहर के पुराने इलाके में अपने समुदाय के लोगों की मुफ्त स्‍वास्‍थ्‍य सेवा करने में कर रही है।

नई मंजिल से लाभांवित होने वालों में आधे से अधिक संख्‍या महिलाओं की है, जिसमें मुस्‍लि‍म महिलाएं ज्‍यादा हैं।

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विकलांगता वाले अल्‍पसंख्‍यक युवाओं की सहायता

नई मंजिल प्रोग्राम की अन्‍य महत्‍वपूर्ण उपलब्धियों में अल्‍पसंख्‍यक समुदाय से जुड़े विकलांग लोगों को शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।

अनस, केरल के मलप्‍पुरम जिले में अपने माता-पिता और संयुक्‍त परिवार के साथ रहता है। वह विकलांगता के साथ पैदा हुआ था जिसकी वजह से उसकी बौद्धिक तथा मोटर कौशल प्रभावित हुआ। उसके माता-पिता इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनके बाद वह खुद की देखभाल कैसे करेगा। बचपन में वह विकलांगों के विशेष स्‍कूल गया, लेकिन अपने जिले में नई मंजिल प्रोग्राम में नामांकन करवाने के बाद उसमें सुधार होना शुरू हुआ। उसने 10वीं पास कर ली और औपचारिक कौशल शिक्षा प्रोग्राम भी पूरा किया। 27 साल की उम्र से अनस ने डाटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में काम कर रहा था, वह खुद पैसे कमा रहा था और अपने साथ-साथ परिवार का भी भरण-पोषण कर रहा था। हालांकि, लॉकडाउन की वजह से फिलहाल वह बेरोजगार है, लेकिन उसे चिंता नहीं है क्‍योंकि उसे पता है कि उसके पास एक कौशल है जिससे आगे जाकर उसे मदद मिलेगी।

लक्ष्‍मी को 10 साल की उम्र में मजबूरी में स्‍कूल छोड़ना पड़ा और 17 साल की उम्र में उसके कमर से नीचे का शरीर का हिस्‍सा लकवाग्रस्‍त हो गया। एक जिज्ञासु छात्रा होने की वजह से उसने इस बात की उम्‍मीद छोड़ दी थी कि वह कभी अपना स्‍कूल पूरा कर पायेगी। वह इलाज के लिये हैदराबाद के सिद्धिपेट आ गयी और इस प्रोग्राम से जुड़ गयी। उसने अपनी पढ़ाई और प्रशिक्षण पूरा किया। अब वह एक सरकारी अस्‍पताल में मरीजों की देखभाल का काम कर रही है। वह खुद को बहुत खुशकिस्‍मत मानती है। अब वह विकलांग लोगों को आत्‍मनिर्भर बनने के लिये प्रेरित करना चाहती है और उनकी मदद करना चाहती है।

समुदाय के संयोजक

आगे रहने वाले और अक्‍सर भुला दिये जाने वाले, वे समुदाय के संयोजक होते हैं जो प्रोग्राम की सफलता और उसके दीर्घकालिक प्रभाव में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक नया प्रोग्राम होने के कारण, शुरूआत में लोगों के अंदर काफी संशय और अविश्‍वास था। उन युवा पुरुषों और महिलाओं का काम अपने क्षेत्र में स्‍कूल छोड़ने वालों का डाटा इकट्ठा करने की जिम्‍मेदारी पूरी करना, योग्‍य समुदायों का पता लगाना और उसके बाद उनके परिवारों को इस प्रोग्राम में नामांकन करवाने के लिये मनाने  का काम होता था।

समीना का उदाहरण लेते हैं जोकि पहाड़ी राज्‍य मणिपुर में 2017 से काम कर रही है। उसने ईसाई समुदाय के गरीब युवाओं को इस प्रोग्राम से जुड़ने में मदद की। अपने काम के सिलसिले में वह पहाड़ी क्षेत्र के सबसे कम सुविधा वाले क्षेत्रों में अंदर तक जाती थी। वहां जाकर परिवारों से मिली और समय के साथ उनका विश्‍वास हासिल किया। लोगों से तारीफें पाकर समीना काफी खुश है। वह बड़े ही गर्व से कहती है, ‘’नई मंजिल ने अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के युवाओं की आंखें खोल दी। अब काफी छात्र कॉलेज में पढ़ रहे हैं। कई दिल्‍ली में नर्सिंग की पढ़ाई कर रहे हैं, कुछ प्रबंधन प्रशिक्षण ले रहे हैं और कुछ का अपना कढ़ाई का व्‍यवसाय है।‘’

समीना ने जहां ईसाई समुदाय के युवाओं पर ध्‍यान केंद्रित किया, वहीं वंदना पंजाब के गांव में स्‍कूल छोड़ने वाले युवाओं को नई मंजिल प्रोग्राम से जुड़ने के लिये समझाने का काम कर रही है, खासकर सिख समुदाय की युवा लड़कियों को। वह कहती है कि हर घर में उन्‍हें अंदर जाने नहीं मिलता या लोग रूचि नहीं लेते। लेकिन उसने ठान लिया था, वह घर-घर जाती, परिवारों से बात करती, गांव के बुजुर्गों और धर्म प्रमुखों को समझाती कि लड़कियों को अपनी पढ़ाई पूरी करने दें।

कोशिशों का फल मिलने लगा है। वंदना बताती है कि जिन छात्रों ने इस प्रोग्राम के अंतर्गत 10वीं पास की है वह उसे बुलाकर पूछते रहते हैं कि क्‍या नई मंजिल उन्‍हें 12वीं कक्षा पूरी करने में भी उनकी मदद कर सकता है। इतना ही नहीं, अपने साथियों के लिये अवसरों के रास्‍ते खुलते हुए देखकर कई सारे युवा जो पहले चरण में इस प्रोग्राम में अपना नाम नहीं लिखवा पाये थे, अब उत्‍सुकता से पूछते हैं कि प्रोग्राम का दूसरा चरण कब आयेगा।

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