Skip to Main Navigation
मुख्य कहानी7 दिसंबर, 2022

वन संरक्षण के लिए महुआ की खेती के पारंपरिक तौर-तरीकों में बदलाव

The World Bank

फोटो क्रेडिट: एडोब स्टॉक

हाइलाइट

  • महुआ के फूलों को इकट्ठा करने और जंगलों और इसकी जैव विविधता की रक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए जाल के उपयोग से जंगल की आग की घटनाओं में लगभग 95 प्रतिशत की कमी आई है।
  • वन विभाग द्वारा ग्रामीणों को सामूहिक रूप से काम करने और अधिक कीमत की मांग करने में मदद करने के बाद, फूल 55-60 रुपये प्रति किलोग्राम के करीब बिकते हैं, जो राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य 35 रुपये प्रति किलोग्राम से काफी अधिक है।
  • जाल जैसे एक साधारण निवेश ने न केवल घरेलू आय बढ़ाने और महुआ की कटाई को वास्तव में टिकाऊ बनाने में मदद की है, बल्कि मध्य भारत के जंगलों को विनाशकारी आग से भी बचाया है, जो बदले में कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि करते हैं।

35 वर्षों राम किशोर यादव भारत के मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के कुपवा गांव से सटे एक जंगल में जाते थे। सुबह-सुबह सूरज की रोशनी पेड़ों की घनी कतारों से छनती हुई पीले महुआ फूलों पर पड़ती, जिससे वे चारों तरफ़ लगे जालों पर तारों की तरह जगमग करते हुए दिखाई पड़ते थे। वह दोपहर में उन फूलों को इक्कठा करने जंगल की ओर अपने उन आठ पेड़ों की ओर जाते थे, जिसे उनके परिवार ने लगाया था। जंगल से महुआ के फूलों को चुनने के बाद वह उन्हें शराब निर्माता कंपनियों को उनके लोकप्रिय उत्पाद की सामग्री के तौर पर बेच देते थे।

यादव बताते हैं, "हर साल, मार्च और अप्रैल के महीने में महुआ के फूल जंगल में गिरते थे। इसलिए, हम पेड़ों के नीचे थोड़ी-थोड़ी आग जलाकर वहां के आस-पास की जमीन साफ़ कर देते थे ताकि हम उन्हें आराम से इकट्ठा कर सकें।"

दुर्भाग्य से इस परंपरा के चलते न सिर्फ जंगल की प्राकृतिक वनस्पतियां नष्ट हुईं, बल्कि शुष्क मौसम के चलते ये आग बार-बार पूरे जंगल को अपने लपेटे में ले लेती, जिसके कारण ढेरों पेड़ और जंगली जानवर नष्ट हो गए।

2020 में, मध्य प्रदेश वन विभाग ने आग को रोकने और जैव विविधता के संरक्षण के लिए गांव वालों को प्रोत्साहित करने के लिए विश्व बैंक के सहायता से पारिस्थितिकी तंत्र सेवा सुधार परियोजना की शुरुआत की, जिसके तहत गांव वालों को मुफ़्त में जाल दिया गया। इन जालों के प्रयोग का विचार समुदायवासियों ने ही दिया था।

यादव गर्व से बताते हैं, "जब से वन विभाग ने हमें महुआ के फूलों को इकट्ठा करने के लिए जाल दिया है, तब से हमारी आय और भी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि उसकी पंखुड़ियां ज़मीन पर पड़े पत्तों और धूल से बच जाती हैं।"

मध्य भारत के पर्णपाती वनों और उसमें रहने जीव-जंतुओं पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा है। जैसा कि मध्य प्रदेश के उत्तर बैतूल के जिला वन अधिकारी पुनीत गोयल बताते हैं, "पिछले कुछ सालों में जंगल में आग लगने की घटनाओं लगभग 95 फीसदी की कमी आई है। अगर जंगल में आग लगने की कोई छोटी सी भी घटना होती है, तो गांव वाले हमें तुरंत उसकी सूचना देते हैं, और आग को भी जल्दी ही बुझा दिया जाता है।" ऐसा अनुमान है कि पिछले दो सालों में जालों के उपयोग के कारण जंगल की क़रीब 18000 हेक्टेयर जमीन पर आग लगने की घटनाओं में कमी आई है।

हर साल मार्च और अप्रैल में महुआ के फूल जंगल में गिर जाते थे। इसलिए, हम उन्हें आसानी से इकट्ठा करने के लिए जमीन के एक टुकड़े को साफ करने के लिए पेड़ों के नीचे छोटी-छोटी आग जलाएंगे।
राम किशोर यादव
महुआ किसान
The World Bank

फोटो क्रेडिट: एडोब स्टॉक

आय में बढ़ोतरी

जाल के उपयोग से पहले मिट्टी से सने हुए महुआ के फूलों को महज़ 15-20 रूपये प्रति किलो की दर पर बेचा जाता था। और गांव वाले अक्सर अपनी आकस्मिक आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपना माल औने पौने दामों में बेच देते थे।

वन विभाग ने जब से गांव वालों को आपस में मिलकर काम करने और बिक्री दर बढ़ाने में सहायता की है, तब से फूलों की बिक्री सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी 35 रूपये प्रति किलो से कहीं अधिक 55 से 60 रूपये प्रति किलो पर होने लगी है।

और चूंकि मौसम के दौरान हर पेड़ से लगभग सौ किलो फूल झरते हैं, स्थानीय परिवारों को बड़ा फ़ायदा हुआ है क्योंकि हर परिवार के पास औसतन 5 से 6 पेड़ हैं।

इसके अलावा, 2018 से, जब से मध्य प्रदेश के आठ गांवों में जालों का प्रयोग होने लगा है, वहां महुआ के फूलों का उत्पादन दोगुना हो गया है। इन परिणामों को देखकर जिला वन अधिकारी अशोक कुमार सोलंकी का दावा है कि जो पड़ोसी गांव विश्व बैंक की परियोजना का हिस्सा नहीं थे, उन्होंने भी जालों की मांग करना शुरू कर दिया है।

The World Bank

फोटो क्रेडिट: अनुपम जोशी/विश्व बैंक

घर पर रहकर कमाने, पढ़ने या काम करने में आसानी

आमदनी बढ़ाने के अलावा, इन जालों ने स्थानीय समुदायों का जीवन काफ़ी आसान बना दिया है। खटपुरा गांव के स्थानीय वैद्य निजाकत खान बताते हैं कि कैसे उनका पूरा परिवार सूरज निकलने से पहले ही जंगल चला जाता था और सारा दिन फूलों को इकट्ठा करने में बिता देता था, जिसके कारण अक्सर वे लोग दिन में भोजन नहीं कर पाते थे। "तब फूल ज़मीन पर मिट्टी से सने और कुचले पड़े रहते थे, और वहां हमें सांपों, बिच्छुओं और मधुमक्खियों से बचकर रहना पड़ता था।"

राम किशोर यादव, जो वन सुरक्षा समिति के मुखिया भी हैं, इस बात से सहमति जताते हैं। उनका कहना है कि जालों के उपयोग से शाम ढलने से पहले फूल इकट्ठा करना आसान हो गया है, जिससे अब पुरुष निर्माण श्रमिक के रूप में काम करने जैसी दूसरी छोटी नौकरियों के लिए समय निकाल पाते हैं, बच्चे स्कूल जा सकते हैं और औरतें घर पर रहकर अपने काम पर ध्यान दे सकती हैं।

आशा, जो गठिया के कारण पीठ और जोड़ों के दर्द से परेशान रहती हैं, के लिए जीवन अब काफ़ी आसान हो गया है। सीहोर जिले के बुधनी गांव की पूर्व सरपंच आशा कहती हैं कि अब उन्हें पूरी दोपहर झुककर फूल चुनने की जरूरत नहीं है। बल्कि, अब वह दोपहर बीत जाने के बाद जंगल में जाती हैं, और जालों में फंसे फूलों को आसानी से चुन सकती हैं, और उन्हें इसके लिए दर्द सहने की भी जरूरत नहीं पड़ती।

The World Bank
फोटो क्रेडिट: एडोब स्टॉक

वैकल्पिक उपयोग

चूंकि महुआ के पेड़ मध्य भारत और देश के अन्य हिस्सों में फैले पर्णपाती वनों में पाए जाते हैं, और इनके फूलों का उच्च पोषण मूल्य होता है, अब इन्हें अन्य दूसरे प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। कई पीढ़ियों से, स्थानीय समुदायों के लोग इन फूलों को मोटे अनाजों के साथ गूंथकर कर लड्डू और पूरियां बना रहे हैं.

अब, गांव वालों को इन फूलों से अधिक मुनाफे वाले खाद्य पदार्थों जैसे बिस्किट और कुकीज बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिला वन अधिकारी पुनीत गोयल कहते हैं, "वन विभाग एक प्रसंस्करण इकाई स्थापित कर रहा है ताकि इस उद्यम को और अधिक टिकाऊ और पेशेवर बनाया जा सके। एक योजना ये भी है कि हम गांव वालों को होटलों और रिजॉर्टों में बिस्किट और कुकीज भेजने के लिए प्रशिक्षित करें।"

2020 में, विश्व बैंक योजना के तहत, महुआ के फूलों के खाद्य योग्य सैंपल को प्रसंस्करण और विपणन के लिए यूनाइटेड किंगडम भेजा गया। उसके अगले साल सौ क्विंटल (दस हजार किलो) फूलों के निर्यात का ऑर्डर प्राप्त हुआ।

जालों के प्रयोग जैसे एक साधारण निवेश से न केवल परिवारों को आमदनी बढ़ाने और महुआ के फूल चुनने की प्रक्रिया को पर्यावरण के लिहाज़ से अनुकूल बनाने में मदद मिली है बल्कि इसके कारण मध्य भारत के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में भी काफ़ी कमी आई है, जिनसे कार्बन उत्सर्जन की दर काफ़ी बढ़ जाया करती थी।

ब्लॉग

    loader image

नई खबरें

    loader image