नेतृत्व की भूमिका में बिहार और उत्तर प्रदेश
अच्छी बात ये है कि अब राज्यों में इन चुनौतियों का सामना करने के लिए ज़रूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे घनी आबादी वाले राज्य भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक हैं। इनकी सरकारों के साथ मिलकर विश्व बैंक राज्यव्यापी स्वच्छ वायु कार्यक्रमों का निर्माण कर रहा है ताकि 2024 और 2030 तक वायु गुणवत्ता से जुड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकें।
बिहार के मामले में देखें तो राज्य के भीतर और बाहर से आने वाले प्रदूषकों के कारण राज्य में प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय स्तर से अधिक बना रहता है। इस कारण से अब बिहार राज्य भर में वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों की स्थापना कर रहा है।
स्थानीय विशेषज्ञता और अंतर्राष्ट्रीय तकनीकों को एक साथ लाकर, बिहार के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने निगरानी केंद्रों को ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में स्थापित करके प्रदूषकों की निगरानी व्यवस्था को विविध बनाया है ताकि ये पता लगाया जा सके कि अलग अलग स्रोतों जैसे कृषि, उद्योग, घर, परिवहन आदि से निकलने वाले प्रदूषकों की मात्रा क्या है। इससे पहले, केवल पटना, गया और मुज़फ्फरपुर में निगरानी केंद्र स्थापित किए गए थे और राज्य के 38 जिलों में से केवल 4 जिलों से मिलने वाले आंकड़ों को एकत्रित किया जाता था।
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एस. चंद्रशेखर कहते हैं, "अब हम शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्थापित किए गए कुल 24 केंद्रों से आंकड़ें जुटा रहे हैं, जिसे केंद्रीय आंकड़ों के साथ संग्रहित किया जा रहा है। आगे चलकर, हमारी योजना ये है कि हम जिला स्तर से बढ़कर और व्यापक स्तर पर काम कर सकें और विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ लाएं। हम चाहते हैं कि हम उनके काम में सहयोग कर सकें ताकि राज्य और उसके बाहर भी लोगों को इसका लाभ मिले।"
इसके अलावा, चूंकि बिहार में घरों से बायोमास ईंधन के दहन से निकलने वाले प्रदूषक राज्य में वायु प्रदूषण के सबसे बड़े कारक हैं, इसलिए विश्व बैंक अपने जीविका कार्यक्रम (ग्रामीण आजीविका परियोजना) के तहत द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) के साथ मिलकर एक ऐसी पायलट परियोजना को चलाने में मदद कर रहा है, जिसका लक्ष्य ग्रामीण महिलाओं के बीच धुंआ रहित सौर ऊर्जा आधारित चूल्हों के उपयोग को बढ़ावा देना है। इन औरतों का कहना है कि बायोमास (लकड़ी, गोबर के उपलों) आधारित चूल्हों की बजाय स्वच्छ ऊर्जा वाले चूल्हों को अपनाने से उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है और ईंधन से जुड़े खर्चों में भी बचत हुई है।
उत्तर प्रदेश ने भी राज्य में वायु प्रदूषण की समस्या पर सक्रिय रूप से काम करना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) कानपुर और विश्व बैंक के साथ मिलकर एक स्वच्छ एयरशेड के निर्माण योजना पर काम रहा है। आंकड़ों का संग्रहण किया जा रहा है और अलग-अलग क्षेत्रों में लागत-प्रभावी हस्तक्षेपों की पहचान के लिए विभिन्न मॉडलों का अध्ययन किया जा रहा है ताकि ये पता लगाया जा सके कि किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा स्वच्छ वायु को लेकर राज्य की प्रतिबद्धताओं और लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक नीतियों, संस्थानों और अनुपालन तंत्रों को विकसित करने के प्रयास भी जारी हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव आशीष तिवारी का कहना है, "उत्तर प्रदेश सिंधु-गंगा मैदान के केंद्र में स्थित है, जिसे दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण का 'हॉटस्पॉट' माना जाता है। इसलिए हमारे राज्य को न केवल अपने एयरशेड में आंतरिक स्रोतों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषकों की निगरानी करने की ज़रूरत है बल्कि पड़ोसी राज्यों जैसे दिल्ली, पंजाब और हरियाणा से उत्सर्जित प्रदूषकों की दोहरी चुनौतियों से निपटना होगा। हमारी योजना लंबी दूरी तय करने वाले प्रदूषकों से निपटने के लिए भी एक रोडमैप तैयार करेगी ताकि इस एयरशेड में रहने वाले नागरिक स्वच्छ हवा में सांस ले सकें। यह योजना वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग के आधार पर एक ठोस रणनीति का निर्माण करेगी।"