अनुकृति और उनके साथियों ने उत्तर प्रदेश में एक स्थानीय परिवार नियोजन केंद्र के साथ मिलकर यह परीक्षण किया कि क्या वे अपने प्रयासों से महिलाओं का सामाजिक संपर्क बढ़ाने के साथ-साथ उनकी परिवार नियोजन सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित कर सकते हैं? इस अध्ययन में महिलाओं को तीन समूहों में बांटा गया:
1) समूह क (केवल एक के इस्तेमाल के लिए मिला स्वास्थ्य कूपन)
2) समूह ख (साझा सुविधाओं वाला स्वास्थ्य कूपन)
3) समूह ग (नियंत्रण समूह)
समूह क की औरतों को उनकी स्वास्थ्य संबंधी वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिए एक कूपन दिया गया, जिसके ज़रिए वे नि: शुल्क में परिवार नियोजन सुविधाओं का लाभ उठाने के साथ-साथ एक बार मुफ़्त परामर्श हासिल कर सकती थीं। और इसके अलावा, स्वास्थ्य केंद्र पर ऐसे तीन विजिट पर यात्रा शुल्क दिया जायेगा। समूह ख की औरतों को दिए गए कूपन में पहले कूपन जैसी सुविधाओं के साथ-साथ उन्हें साझा करने का विकल्प दिया गया, जहां महिलाओं के अधिकतम दो "साथियों" को स्वास्थ्य केंद्र पर किसी महिला के साथ आने पर उन्हें भी उसका लाभ उठाने की सुविधाएं दी गईं। तीसरे समूह की महिलाओं को ऐसा कोई कूपन नहीं दिया गया। इसके अलावा, तीनों समूहों की औरतों को आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों और परिवार नियोजन से जुड़े लाभों को बताने वाला एक पत्र दिया गया।
जैसी उम्मीद थी, कूपन की सुविधा पाने वाली पहले दो समूह की महिलाओं के नियंत्रण समूह की महिलाओं की तुलना में परिवार नियोजन केंद्र में जाने और उनके द्वारा आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों को अपनाने की संभावनाएं कहीं ज्यादा थी।
लेकिन समूह क और समूह ख के बीच अलग-अलग परिणामों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि सामाजिक संबंधों को प्रोत्साहित करना संभव है। अध्ययन के अंत तक, जिन महिलाओं को मित्र लाने का कूपन (समूह ख) प्राप्त हुआ, उनके स्वयं के इस्तेमाल हेतु कूपन प्राप्त करने वाली महिलाओं (समूह क) की तुलना में किसी को अपने साथ क्लिनिक में आमंत्रित करने की संभावना लगभग दोगुनी थी। अंत में ये देखा गया कि दूसरे समूहों की तुलना में इन महिलाओं का सामाजिक संपर्क कहीं व्यापक था।
इन प्रभावों को सबसे ज्यादा गरीब परिवारों के साथ-साथ ऐसे परिवार की महिलाओं के बीच महसूस किया गया, जिनके अध्ययन की शुरुआत में परिवार नियोजन सुविधाओं तक पहुंच में सबसे बड़ी बाधा सामाजिक संपर्कों का अभाव थी।
अध्ययन के अंत तक हमने देखा कि गरीब परिवारों की जिन महिलाओं को साझा सुविधाओं वाले कूपन दिए गए थे, उनके समूह केवल अपने प्रयोग के लिए कूपन प्राप्त करने वाली महिलाओं की तुलना में अपने घर के बाहर दोस्त बनाने की संभावना 13% ज्यादा थी। इसी तरह, जिन महिलाओं का मानना था कि उनके मौजूदा करीबी संबंधों में कोई भी परिवार नियोजन सुविधाओं का लाभार्थी नहीं था, उन्हें साझा सुविधाओं वाले कूपन दिए जाने पर उनके घर के बाहर सामाजिक संबंधों में 94 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
जबकि इस अध्ययन में भारत के सिर्फ जिले को शामिल किया गया था, लेकिन इसके संभावित प्रभाव बेहद व्यापक हैं। निम्न-आय वाले देशों में अब तक किए गए कई सर्वेक्षणों में आमतौर पर एक महिला की निर्णय लेने की क्षमता का आकलन तुलनात्मक रूप से उसके अपने पति के संबंधों के सापेक्ष किया गया है लेकिन अनुकृति के शोध से पता चलता है कि महिलाओं की निर्णयन क्षमता को घर के अन्य सदस्य भी प्रभावित करते हैं। इससे हमें पता चलता है कि किस तरह परिवार नियोजन कार्यक्रमों में एक महिला की सास को भी सीधे तौर पर जोड़ना होगा, और उसके साथ ही महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में भी नए तौर तरीकों को अपनाना होगा।
फिर भी यहां कई प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं: महिलाओं के सामाजिक संबंध किस प्रकार से उनके जीवन को प्रभावित करते हैं? किस प्रकार महिलाओं और पुरुषों के सामाजिक संबंध एक दूसरे से भिन्न होते हैं? और वे कौन से कारक हैं, जो महिलाओं की सामाजिकता को सकारात्मक या नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं? महिलाओं की सामाजिकता पर व्यवस्थित, तुलनात्मक और व्यापक (कई देशों से लिए गए आंकड़े) आंकड़ों के अभाव में हम इन सवालों के स्पष्ट जवाब नहीं दे सकते। और इन सवालों का जवाब ढूंढ़ने के लिए ही अनुकृति और उसके साथी अपने नए शोध पर काम कर रहे हैं।