राजस्थान के सीकर जिले के आसपास की बस्तियों में रहने वाले ज्यादातर पुरुष कई पीढ़ियों से चरवाहे रहे हैं. रेतीले और चट्टानी इलाके के कारण यहां कृषि लायक परिस्थितियां नहीं हैं, इसलिए यहां के निवासी पशुपालन करते हैं और फिर उन्हें बेचकर गुजारे लायक आजीविका कमाते हैं.
कुछ साल पहले तक बलदेव गुर्जर जैसे चरवाहों के लिए कालाखेत गांव से होकर जाने कच्ची सड़क को पार करना किसी बुरे सपने से कम न था. उन्हें रोज़ाना अपने मवेशियों को चराने ले जाना होता था. बलदेव बताते हैं, "यहां तक कि केवल तीन से चार किलोमीटर दूर जाने में भी घंटों लगते थे. हमें झाड़ियों और रेतों को पार करना पड़ता था और मानसून के दौरान तो ये कच्चे रास्ते भी बंद हो जाते थे. बारिश और खेतों से बहकर आने वाली यहां भर जाता था."
2013 में एक ऑल वेदर रोड के निर्माण के साथ ही यहां के हालात अब पूरी तरह बदल गए हैं. अब, बलदेव अपने मवेशियों के साथ सुबह ही निकल जाते हैं. जब वो अपनी पिक-अप वैन में जानवरों को चढ़ाते हैं, तो उनका चेहरा गर्व से चमकता हुआ दिखाई देता है.
अस्पतालों और स्कूलों तक पहुंच
नई सड़कों ने लोगों की जिंदगियों को किस तरह से बदल कर रख दिया है, इसे अलवर जिले के मंधा गांव की एक स्कूल-शिक्षिका शिखा रानी के अनुभवों से समझा जा सकता है. रानी के पास कला वर्ग में परास्नातक की उपाधि है, वो अपने और अन्य लड़कियों की शिक्षा में आने वाली बाधाओं का ज़िक्र करते हुए बताती हैं कि किस तरह से उनके गांव से जाने वाली कच्ची सड़क पानी से भर जाती थी. वो आठ साल पहले के हालातों के बारे में बताती हैं, "ख़ासकर लड़कियां हमारे गांव में स्कूल नहीं जा पाती थीं." पहले, गांव के सबसे करीबी स्कूल तक जाने के लिए बच्चों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और उनकी सुरक्षा के लिए उनके साथ वयस्कों को भी जाना पड़ता था. अब, स्कूल की बसें गांव तक आती हैं; लड़कियां अकेले या समूहों में साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं, और पास के अलवर या सीकर जिलों के कॉलेजों में जाकर पढ़ना अब कोई दूर का सपना नहीं है.
भागवा गांव की भागुरी देवी दो बेटों की मां हैं, और उनके दोनों बच्चे सीकर और उदयपुरवाटी के कॉलेजों में पढ़ाई कर रहे हैं. वो स्वयं एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं और वो इस समय दसवीं की परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं. वो याद करते हुए बताती हैं कि कैसे गर्भवती
महिलाओं को खाटों या ऊंट गाड़ियों पर लिटाकर पास के अस्पतालों में जाया जाता था और अक्सर रास्ते में ही उनकी मौत हो जाती थी. अब कोई भी बीमार को ले जाने के लिए एंबुलेंस या प्राइवेट गाड़ियों को बुला सकता है. अब गांव में महिलाओं और बच्चों के लिए दवाएं, टीकाकरण और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं.
वो बताती हैं, "हमारा गांव अब आगे बढ़ रहा है. हमारे बच्चे स्कूल जा पा रहे हैं, उनका भविष्य अब सुरक्षित है."
ये विश्व बैंक के ग्रामीण सड़क परियोजना -II के लाभार्थी हैं, जो केंद्र सरकार के प्रमुख कार्यक्रम प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई आरआरपी-II) का समर्थन करती है. विश्व बैंक ने राजस्थान में इस परियोजना के तहत 2800 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है, जिसके सहयोग से 3600 से ज्यादा सड़कों का निर्माण संभव हुआ है.