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publication 5 जून, 2024

भारत में प्रदुषण रहित वायु की ओर

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समझिये: एयरशेड और PM2.5

इस 5 मिनट की एनीमेशन फिल्म में भारत में वायु प्रदूषण के एयरशेड प्रबंधन की अवधारणा का परिचय दिया गया है और यह समझने की कोशिश की गयी है कि PM2.5 कैसे बनता है, यह कैसे यात्रा करता है और यह स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है।



कहानी की प्रमुख घटनाएं

  • भारत के 1.4 अरब लोग (देश की 100% आबादी) पीएम2.5 नामक सबसे हानिकारक प्रदूषण में सांस ले रहे हैं। यह प्रदूषण कई अलग-अलग स्रोतों से आता है।
  • प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है जिसके कारण भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। 2019 में भारत में समय से पहले होने वाली मौतों और वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों के चलते उत्पादन में हुई कमी के कारण क्रमशः 28.8 अरब अमेरिकी डॉलर (21.4-37.4) और 8 अरब अमेरिकी डॉलर (5.9-10.3) का आर्थिक नुकसान हुआ। यह कुल 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर (27.4-47.7) का नुकसान, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.36% था।
  • विश्व बैंक भारत के राज्यों एवं क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए साधन और योजनाएं पेश करके मदद करने की कोशिश कर रहा है। एयरशेड प्रबंधन का उद्देश्य सात केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों में राज्य-व्यापी वायु गुणवत्ता कार्य योजनाओं की शुरूआत और सिंधु-गंगा के मैदानी (आईजीपी) भाग के लिए पहली व्यापक क्षेत्रीय एयरशेड कार्य योजना के निर्माण में सहायता प्रदान करना है।

संदर्भ

वायु प्रदूषण खामोशी से मारने वाले खतरे की तरह है जो दुनियाभर के लोगों को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण के मामले में भारत दुनिया के सबसे खराब स्थानों में से एक है। यह लोगों के स्वास्थ्य और देश की अर्थव्यवस्था के लिए वास्तव में एक भारी खतरा है। भारत में सभी 1.4 अरब लोग (देश की 100% आबादी) पीएम2.5 नामक सबसे हानिकारक प्रदूषण में सांस ले रहे हैं। यह प्रदूषण कई अलग-अलग स्रोतों से आता है और लोगों को बीमार कर सकता है। 2.5 माइक्रोन से कम माप  वाले ये छोटे कण मानव बाल की चौड़ाई का लगभग एक तीसवां भाग के बराबर होते हैं। पीएम 2.5 के संपर्क में आने से फेफड़ों का कैंसर, स्ट्रोक और हृदय रोग जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं। भारत में वायु प्रदूषण के कारण 2019 में 16.7 लाख मौतें हुईं, जो देश में होने वाली कुल मौतों का 17.8% है। प्रदूषण का स्वास्थ्य पर तो प्रभाव पड़ता ही है भारी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। 2019 में भारत में समय से पहले होने वाली मौतों और वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों के चलते उत्पादन में हुई कमी के कारण क्रमशः 28.8 अरब अमेरिकी डॉलर (21.4-37.4) और 8 अरब अमेरिकी डॉलर (5.9-10.3) का आर्थिक नुकसान हुआ। यह कुल 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर (27.4-47.7) का नुकसान, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.36% था।

पीएम 2.5 विभिन्न स्रोतों से आता है। कुछ सबसे आम स्रोतों में कोयला या तेल जैसे जीवाश्म ईंधन और लकड़ी, लकड़ी का कोयला, या फसल अवशेष के जलाने से होने वाला उत्सर्जन शामिल है। पीएम 2.5 हवा से उड़ने वाली धूल से भी आ सकता है, जिसमें प्राकृतिक धूल के साथ-साथ निर्माण स्थलों, सड़कों और औद्योगिक संयंत्रों से निकलने वाली धूल भी शामिल है।

भारत में आधे से अधिक पीएम 2.5 उत्सर्जन ऊपरी वायुमंडल में "द्वितीयक" तरीके से बनता है जब एक क्षेत्र से विभिन्न प्रकार के गैसीय प्रदूषक जैसे अमोनिया (एनएच 3) दूसरे स्थान के अन्य गैसीय प्रदूषकों जैसे सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2), और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) के साथ मिलते हैं। कृषि, उद्योग, बिजली संयंत्र, घरेलू और परिवहन सभी द्वितीयक पीएम 2.5 के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। यह द्वितीयक रूप प्राथमिक पीएम2.5 की तुलना में अधिक दूर तक फैलता है और राज्यों, शहरों और क्षेत्राधिकार की सीमाओं को पार कर जाता है।

इसलिए भारत में वायु प्रदूषण की समस्या स्वाभाविक रूप से कई अलग-अलग क्षेत्रों और सरकारों को प्रभावित करती है। जिसके लिए "एयरशेड" दृष्टिकोण की आवश्यकता है। एयरशेड को ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो हवा के सामान्य प्रवाह को समान रूप से प्रदूषित और स्थिर रखता है। किसी एयरशेड के भीतर वायु की गुणवत्ता काफी हद तक उसके भीतर प्रदूषण स्रोतों पर निर्भर करती है। क्योंकि द्वितीयक कणों का निर्माण और प्राथमिक और द्वितीयक कणों का परिवहन बड़े भौगोलिक क्षेत्रों में होता है, एयरशेड शहरों की सीमाओं से परे, कई सौ किलोमीटर तक फैल सकते हैं। इस कारण, भारत को अपने शहरों के प्रदूषण को सिमित नज़रिये से नहीं देखना चाहिए।   एक प्रभावी वायु प्रदूषण नियंत्रण रणनीति के लिए उप-राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई करने और एयरशेड-आधारित प्रबंधन के लिए समान उपकरणों और मापों का उपयोग करने की आवश्यकता है । पूरे भारत में उपकरणों का एक समान होना महत्वपूर्ण है ताकि हम योजना बनाने और जानकारी इकट्ठा करने के लिए उनका उपयोग कर सकें।


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Air Pollution - A Major Health Risk


कार्रवाई

भारत इस समस्या का सामना करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। भारत सरकार अपने परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों में संशोधन के बारे में सोच  रही है और हाल के वर्षों में वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन मानकों को मजबूत किया है। नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने और लाखों घरों में एलपीजी खाना पकाने के ईंधन की आपूर्ति पर जोर देना उन कार्रवाइयों के कुछ उदाहरण हैं जो भारत वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कर रहा है।

भारत सरकार का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम बिगड़ती व्यापक  वायु गुणवत्ता की समस्या को स्वीकार करने और हल करने की दिशा में एक शक्तिशाली कदम है। एनसीएपी ने देश भर में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए एक समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें लगभग 132 शहरों पर ध्यान केंद्रित किया गया है जहां वायु प्रदूषण मानकों को पूरा नहीं किया जा रहा है। विभिन्न क्षेत्रों की नीतियों पर मार्गदर्शन के साथ एनसीएपी शहरों को वायु गुणवत्ता प्रबंधन योजनाएं विकसित करने के लिए एक समग्र ढांचा प्रदान करता है।

15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर, भारत सरकार ने 2020 में दस लाख से अधिक आबादी वाले 42 भारतीय शहरों के लिए अगले पांच वर्षों में वायु प्रदूषण का सामना करने के लिए लगभग 1.7 अरब डॉलर का प्रावधान किया है - बशर्ते वे अपने वायु प्रदूषण का स्तर 15 प्रतिशत की दर से हर साल कम करें। यह शहरों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए दुनिया का पहला प्रदर्शन-आधारित राजकोषीय हस्तांतरण वित्तपोषण कार्यक्रम है।

अंतर-क्षेत्राधिकार, एयरशेड स्तर की कार्रवाई और ठोस समन्वय की आवश्यकता को पहचानते हुए, भारत की संसद ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की स्थापना के लिए अगस्त 2021 में एक कानून को मंजूरी दी।


6 Ways India can #BuildBackBetter

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"वायु प्रदूषण के लगातार खतरनाक स्तर ने दक्षिण एशिया में एक बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पैदा कर दिया है, जिसके लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए न केवल इसके विशिष्ट स्रोतों से निपटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय न्यायिक सीमाओं के बीच करीबी समन्वय की भी जरूरत है। क्षेत्रीय सहयोग लागत प्रभावी संयुक्त रणनीतियों को लागू करने में मदद कर सकता है जो वायु गुणवत्ता की परस्पर-निर्भर प्रकृति का लाभ उठाती है।"
मार्टिन रायसर
विश्व बैंक के दक्षिण एशिया के उपाध्यक्ष

विश्व बैंक सहायता

वायु गुणवत्ता प्रबंधन को अधिक प्रभावी सरकारी कार्यक्रम बनाने के लिए विश्व बैंक एक चरणबद्ध रणनीति के माध्यम से भारत की सहायता कर रहा है। जिसका उद्देश्य ज्ञान बढ़ाना, क्षमता निर्माण करना, हितधारकों को शामिल करना, एयरशेड प्रबंधन उपकरणों में विशेषज्ञता स्थानांतरित करना, नीति समायोजन के लिए विश्लेषण की सुविधा प्रदान करना और वित्त जुटाना है। इस वायु गुणवत्ता प्रबंधन की पहल ने मेक्सिको और चीन जैसे देशों में दशकों से चली आ रही बैंक परियोजनाओं से सबक सीखा है, जहां सबसे अधिक वायु प्रदूषण के स्तर का सामना करना पड़ा था। सबसे बड़ा प्रयास सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों पर किया जा रहा है, जहां जनसंख्या घनत्व और प्रदूषण की तीव्रता सबसे अधिक और चिंताजनक है, और चुनौती से निपटने के लिए क्षमता और प्रणालियों को बेहतर बनाने में सबसे अधिक मदद की जरूरत है।

भारत के एनसीएपी के राष्ट्रीय रणनीतिक ढांचे के माध्यम से पहले से ही चल रहे काम को और आगे बढ़ाते हुए, विश्व बैंक कार्यक्रम राज्य और क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन तरीकों को और बेहतर बनाने के लिए उपकरण पेश कर रहा है। इन पहलों से भारत की पहली राज्य वायु गुणवत्ता कार्य योजना और सात केंद्र शासित प्रदेशों और राज्यों तक फैले सिन्धु-गंगा के मैदानों (आईजीपी) के लिए देश की पहली बड़ी क्षेत्रीय एयरशेड कार्य योजना तैयार करने में मदद करेगी। वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर न्यूनतम लागत पर वायु प्रदूषण की अधिकतम मात्रा को कम करने के लिए इस तरह के उपायों को प्राथमिकता दी जाएगी।

आईजीपी राज्यों में, विश्व बैंक कार्यक्रम शैक्षणिक संस्थानों, शहरों और राज्यों के साझेदारों के साथ जुड़कर वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए मॉडलिंग जैसे कार्य के नेटवर्क में मदद करता है।

इंडिया लाइटहाउस पहल के तहत, भारत और दुनियाभर के विशेषज्ञ भारत में वायु प्रदूषण की समस्या को और अधिक प्रभावी ढंग से समझने, प्रबंधित और नियंत्रित करने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग करके भारत-केंद्रित प्रथाओं को विकसित करने के लिए अपने अनुभवों का आदान-प्रदान कर रहे हैं।


Air Quality Management Program


आगे का रास्ता

वायु गुणवत्ता प्रबंधन एक सतत प्रक्रिया है। इसे सरकार की क्षमताओं के साथ-साथ व्यवसायों और लोगों के व्यवहार में भी शामिल करने की आवश्यकता है। इसके लिए पर्याप्त धन और क्षमता निर्माण पर निरंतर ध्यान देने की जरूरत है। भारतीय राज्यों में एयरशेड व्यापक समन्वय महत्वपूर्ण है जहां पीएम2.5 प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शहरों के बाहर के स्रोतों से भी उत्पन्न होता है। अकेले स्थानीय उत्सर्जन को ख़त्म करके अलग-अलग शहर प्रदूषण में पर्याप्त कमी नहीं ला सकते। देशभर के कई शहरी समूहों में लगातार बढ़ते प्रदूषण स्तर को देखते हुए, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता लक्ष्यों को न्यूनतम लागत पर पूरा करने के लिए राज्यों के बीच सहयोगात्मक प्रयास महत्वपूर्ण हैं।

अच्छी खबर यह है कि कई अन्य देशों ने यह साबित किया है कि मजबूत प्रतिबद्धता और  लक्षित और लागत प्रभावी योजना हो तो वायु प्रदूषण नियंत्रण संभव है।

जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल के कारण, भारत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन में जरूरी कई आवश्यक "क्षेत्र परिवर्तन" पहले ही शुरू कर दिए हैं। उदाहरण के लिए, भारत सौर-ऊर्जा क्रांति का नेतृत्व कर रहा है। आज, दिल्ली मेट्रो की दिन के समय की 60 प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकता मध्य प्रदेश के 750 मेगावाट रीवा सौर परियोजना से मिलने वाली सौर ऊर्जा के माध्यम से पूरी की जा रही है।  जिससे कोयले पर निर्भरता कम हुई है, साथ ही अगले 25 वर्षों में इसके ऊर्जा बिल पर 170 मिलियन डॉलर से अधिक की बचत हो रही है।

इसके अलावा, विश्व बैंक और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस (आईआईएएसए) के एक अध्ययन से पता चलता है कि 2030 तक स्वच्छ वायु मार्ग के माध्यम से वायु प्रदूषण पर ध्यान केंद्रित करने से भारत को जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में भी मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए, ऐसा मार्ग 2030 तक भारत के कार्बन उत्सर्जन को 23 प्रतिशत और 2040-50 तक 42 प्रतिशत कम कर देगा। वास्तव में, अधिकांश नीतिगत उपाय और प्रबंधन प्रथाएं सुविख्यात हैं। यदि अनुसरण किया जाए, तो उनमें एक ही पीढ़ी के भीतर भारत के वायु प्रदूषण को कम करने की क्षमता है।

मध्यम से लंबी अवधि के दौरान, विश्व बैंक सभी के लिए स्वच्छ हवा के लिए राज्य और क्षेत्रीय एयरशेड योजनाओं को लागू करने में भारतीय शहरों और राज्यों के साथ-साथ सिन्धु-गंगा के मैदानों का समर्थन करेगा। संस्थागत क्षमताओं को विकसित करने और उन प्रणालियों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जो बदलाव के लिए महत्वपूर्ण हैं। सरकार और विभिन्न हितधारकों के साथ काम करने से वायु गुणवत्ता के मुद्दे पर सर्वोत्तम स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को साथ लाने में मदद मिलेगी।


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