Skip to Main Navigation
BRIEF 14 फ़रवरी, 2023

भारत अपनी जल आवश्यकताओं को कैसे पूरा कर रहा है?


मल्टीमीडिया

Image
click
वीडियो

समुदाय भारत के भूजल संरक्षण प्रयासों का नेतृत्व करते हैं

अटल भूजल योजना, भारत का सबसे बड़ा सामुदायिक नेतृत्व वाला भूजल प्रबंधन कार्यक्रम, ग्रामीण आजीविका में सुधार करने और 7 भारतीय राज्यों में लचीलापन बनाने में मदद कर रहा है, जहां भूजल की कमी की दर सबसे अधिक है।

गर्मियों के मौसम में भारत में पानी सोने की तरह कीमती हो जाता है।  भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत जनसंख्या रहती है लेकिन विश्व भर के सभी जलस्रोतों में केवल 4 प्रतिशत जलस्रोत भारत में हैं।  इस लिहाज़ से भारत दुनिया के सबसे ज्यादा जल-तनावग्रस्त देशों में से एक है।  सरकारी पॉलिसी थिंक टैंक नीति आयोग  की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बहुत बड़ी संख्या में लोग पानी को लेकर भीषण तनाव का सामना करते हैं।  जल आवश्यकताओं के लिए भारत की मानसून पर निर्भरता ने इस समस्या को और बढ़ावा दिया है, जबकि मानसून की स्थिति लगातार अनियमित होती जा रही है।  

जलवायु परिवर्तन से जल संसाधनों पर इस दबाव के और बढ़ने की संभावना है।  यहां तक कि देश में बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की बारंबरता और तीव्रता में भी इज़ाफ़ा हुआ है।

विश्व बैंक जल संसाधन प्रबंधन और देश भर में पेयजल और स्वच्छता सेवाओं की आपूर्ति के विभिन्न पहलुओं से जुड़ा हुआ है।  यहां उसके कुछ कामों के बारे में जानकारी दी गई है।

भूजल की कमी की समस्या का निदान

सिंचाई के साथ-साथ भूजल ग्रामीण और शहरी घरेलू जल आपूर्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण जलस्रोतों में से एक है।  हालांकि अत्यधिक दोहन के चलते यह महत्त्वपूर्ण संसाधन ख़तरे का सामना कर रहा है।

विश्व बैंक भूजल प्रबंधन की बेहतरी के लिए सरकार के राष्ट्रीय भूजल कार्यक्रम, अटल भूजल योजना के कार्यान्वयन में अपना सहयोग दे रहा है।  देश भर में सात राज्यों के 8220 ग्राम पंचायतों में इस कार्यक्रम को लागू किया जा रहा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा सामुदायिक नेतृत्व वाला भूजल प्रबंधन कार्यक्रम है।

चूंकि भूजल संरक्षण करोड़ों व्यक्तियों और समुदायों के योगदान से ही संभव है, इसलिए इस कार्यक्रम के जरिए गांव वालों को पानी की उपलब्धता और उसके उपयोग के पैटर्न को समझने में मदद की जाती है ताकि लोग पानी का सही ढंग से उपयोग कर सकें।

पंजाब जैसे कृषि-निर्भर राज्य में बड़े पैमाने पर टूबवेल  सिंचाई के कारण वहां जल स्तर में भारी गिरावट आ रही है।  विश्व बैंक ने राज्य भूजल को संरक्षित करने के लिए एक नवाचारी योजना को शुरू करने में सहायता की।  "पानी बचाओ, पैसा कमाओ" योजना किसानों को भूजल का उपयोग कम करने के लिए प्रोत्साहित करती है।  कार्यक्रम के तहत लगभग 300 किसानों को नकद सहायता दी गई ताकि वे सिंचाई के दौरान इस्तेमाल होने वाली बिजली की बचत कर सकें।  जिसका परिणाम ये हुआ कि 6 से 25 प्रतिशत के बीच पानी की बचत हुई जबकि उपज पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।  


मल्टीमीडिया

Image
click
वीडियो

पंजाब में किसानों को बिजली और पानी बचाने के लिए प्रोत्साहित करना

भारत के कृषि प्रधान राज्य पंजाब में, जहां बड़े पैमाने पर नलकूप सिंचाई से भूजल तालिका में भारी गिरावट आ रही है, विश्व बैंक ने राज्य सरकार को भूजल संरक्षण के लिए एक अभिनव योजना चलाने में मदद की।

वंचित समुदायों तक पहुंच को बढ़ाना

पिछले एक दशक में, विश्व बैंक ने सरकार द्वारा ग्रामीण समुदायों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के प्रयासों का समर्थन किया है।  1. 2 अरब डॉलर के कुल वित्तपोषण वाली कई परियोजनाओं ने 2 करोड़ से अधिक लोगों को लाभान्वित किया है।

पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के गांव जल आपूर्ति की समस्या से जूझ रहे थे क्योंकि अत्यधिक चढ़ावदार हिमालयी भूमि के कारण वहां आवश्यक आधारभूत ढांचे का निर्माण और उसका रखरखाव बेहद कठिन था।  कई गांव वालों, ख़ासकर महिलाओं को घरेलू उपयोग के लिए ताज़ा पानी लाने के लिए 1.6 किमी पैदल चलना पड़ता था।

2006-15 के बीच विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित उत्तराखंड ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता परियोजना ने राज्य के पिछड़े इलाकों में ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के ज़रिए लगभग 16 लाख लोगों को लाभान्वित किया है।  परियोजना बुनियादी ढांचे और संस्थागत क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें ग्रामीण समुदाय भी शामिल हैं, जिससे इस पर्वतीय राज्य में प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने में सक्षम सुविधाओं का निर्माण संभव होगा, जहां अक्सर भूकंप, भूस्खलन और बादल फटने जैसी आपदाएं घटित होती हैं।

भारत का दक्षिणी राज्य केरल सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में से एक है, हालांकि लहरदार संरचना वाले भूभाग के कारण वर्षा का अधिकांश जल समुद्र में बह जाता है।  राज्य भर में निर्माण गतिविधियों में आई तेजी से जल स्रोतों में कमी आई है।

2000 के दशक के शुरुआत से ही, विश्व बैंक ग्रामीण इलाकों में सस्ती दरों पर घरों में पाइप के ज़रिए पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने में राज्य सरकार का समर्थन करता रहा है, जिसका लाभ निम्न-आय वाले परिवार भी उठा सकते हैं।  जलनिधि-I (2000-2008) और जलनिधि-II (2012-2017) की सहायता से ग्रामीण इलाकों में घरों में जल आपूर्ति को संभव बनाया गया है, जहां स्थानीय समुदायों को पहली बार जल आपूर्ति योजनाओं के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।

शहरों में भरोसमंद जल आपूर्ति सुविधाएं

तीव्र शहरीकरण वाले भारतीय शहरों में पाइपलाइन के जरिए निरंतर जल आपूर्ति की सुविधाएं एक सपना रही हैं।  अधिकांश शहरी परिवारों को अक्सर सप्ताह में कुछ ही दिनों के लिए और दिन भर में अधिक से अधिक कुछ घंटों के लिए पानी मिलता है।  इसका विशेष रूप से गरीबों, महिलाओं और बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिन्हें अपनी दैनिक जरूरतों के लिए पानी जुटाने के लिए अपना समय और पैसा दोनों खर्च करना पड़ता है।

भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक के उदाहरण से सिद्ध होता है कि शहरी इलाकों में सस्ते दरों पर 24 घंटे जल आपूर्ति की टिकाऊ सुविधा प्रदान करना संभव है।  विश्व बैंक द्वारा समर्थित कर्नाटक जल आपूर्ति सुधार परियोजना की मदद से पानी की कमी से जूझ रहे तीन शहरों, हुबली-धारवाड़, बेलगावी और कलबुर्गी में इसी दृष्टिकोण के आधार पर जल आपूर्ति सेवाएं प्रदान की गई हैं।  अब, कर्नाटक शहरी जल आपूर्ति आधुनिकीकरण परियोजना (जो एक अनुवर्ती परियोजना है) के तहत तीनों शहरों की पूरी आबादी तक सुविधाओं के विस्तार पर काम किया जा रहा है।

भले ही नागरिकों को पानी की खपत के आधार पर भुगतान करना पड़ता है, लेकिन 8 किलो लीटर तक के "लाइफलाइन कंजप्शन" के लिए शुल्क दर को इतना नीचे रखा गया है कि बेहद गरीब परिवार भी इसका भुगतान कर सकते हैं।  गरीब परिवार बेहतर सुविधाओं का लाभ उठा सकें, इसके लिए घरेलू पाइपलाइन कनेक्शन पर सब्सिडी दी जाती है।

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की भी कहानी कुछ ऐसी ही है।  जल स्रोतों में आई गिरावट, जनसंख्या में हुई तेज वृद्धि और शहर में पर्यटकों की बढ़ती संख्या का मतलब था कि शहर को हर तीन दिनों में कुछ घंटों के लिए पानी मिलेगा।  शिमला वाटर सप्लाई एंड सीवरेज सर्विस डिलीवरी रिफॉर्म प्रोजेक्ट के तहत किए गए सुधारों का परिणाम है कि शहर को अब हर दिन कम से कम 3-4 घंटे पानी मिलता है और आगे 24 घंटे जल आपूर्ति की ओर बढ़ने का प्रयास किया जा रहा है।  यह सब सिर्फ पाइपों की मरम्मत से नहीं बल्कि इसके प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं में सुधार करके हासिल किया गया है।  विश्व बैंक ने एक पेशेवर वाटर यूटिलिटी की स्थापना में सहयोग प्रदान किया, जो नागरिकों के प्रति सीधे उत्तरदायी है।

पंजाब में, जहां भूजल का स्तर काफ़ी नीचे गिर गया है, पंजाब म्युनिसिपल सर्विसेज इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट के तहत दो बड़े शहरों में ये प्रयास किया जा रहा है कि भूजल की बजाय सतह पर मौजूद जलस्रोतों जैसे स्थानीय नहरों का इस्तेमाल किया जाए।  अनुमान है कि जल आपूर्ति में सुधार से 2025 तक 30 लाख से ज्यादा लोग और 2050 तक लगभग 50 लाख लोग लाभान्वित होंगे।

2019 में चेन्नई गंभीर जल संकट से जूझ रहा था और शहर को बचाने के लिए लगभग 200 किलोमीटर दूर ट्रेन से पानी लाया गया था।  वर्तमान में, चेन्नई अपने उद्योगों की पानी की जरूरतों (जिसमें पेयजल शामिल नहीं है) को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण कर रहा है, और वह ऐसा करने वाला पहला भारतीय शहर है।  एक संयंत्र का निर्माण पूरा हो चुका है, और दो टर्शियरी ट्रीटमेंट रिजर्व ऑस्मोसिस (टीटीआरओ) संयंत्रों का निर्माण जारी है, जो चेन्नई शहर के लगभग 20 प्रतिशत सीवेज का पुनर्चक्रण करने में सक्षम होंगे, जिससे ताजे पानी की खपत में कमी लाई जा सकेगी।


गंगा नदी का प्रबंधन

गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण और मशहूर नदी है, और लाखों करोड़ों लोग उसे एक जीवित देवी के रूप में पूजते हैं।  हालांकि, वर्तमान में गंगा मैदान में तीव्र शहरीकरण के कारण गंगा नदी भारी दबाव में है क्योंकि 100 से अधिक कस्बों और शहरों से निकले घरेलू सीवेज को सीधे नदी में प्रवाहित किया जाता है।  विश्व बैंक 2011 से गंगा नदी को पुनर्जीवित करने के भारत के प्रयासों का समर्थन कर रहा है।  कुल 1 अरब डॉलर के बजट वाली विश्व बैंक की दो परियोजनाएं नदी प्रबंधन के लिए आवश्यक संस्थानों और उसे स्वच्छ रखने के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में सहयोग कर रही हैं।  शहरों से निकलने वाला घरेलू अपशिष्ट गंगा में कार्बनिक प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है।  सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और नालियों के निर्माण और रखरखाव के परिणामस्वरूप, अब कई शहरों में घरेलू सीवेज को नदी में प्रवाहित करने से उसका उपचार किया जाता है।

सिंचाई को और सुविधाजनक बनाना

भारत में कृषि अधिकांशतः मानसून पर निर्भर है, जिसके कारण यह एक जोखिम भरा उद्यम है क्योंकि इसे वर्षा की अनिश्चितताओं और अंशकालिक सूखे की समस्याओं के अलावा मानसून के दौरान भारी बाढ़ और चक्रवात का सामना करना पड़ता है।  मानसून के जाने के बाद बिना सिंचाई सुविधाओं के कृषि गतिविधियों को जारी रख पाना लगभग असंभव हो जाता है।

पिछले 50 सालों में, भारत ने देश के बड़े हिस्से में सिंचाई आधारित कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे में काफ़ी निवेश किया है।  लघु सिंचाई योजनाओं से लघु एवं सीमांत किसानों को विशेष रूप से लाभ मिल रहा है।  विश्व बैंक की एक परियोजना ने पश्चिम बंगाल के दूरस्थ पश्चिमी क्षेत्र (जो काफ़ी हद तक वर्षा पर निर्भर इलाका है) में रहने वाले आदिवासी किसानों की लघु सिंचाई सुविधाओं के निर्माण में सहायता की है।  किसान अब हर साल दो फसलों की खेती कर रहे हैं और काम की तलाश में उन्हें गांव छोड़कर दूसरी जगह जाने की ज़रूरत नहीं है।

श्चिम बंगाल की एक प्रमुख सिंचाई और बाढ़ प्रबंधन परियोजना की मदद से 27 लाख किसानों की बेहतर सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच आसान हुई है और साथ ही हर साल आने वाली बाढ़ के विरुद्ध सुरक्षा भी प्रदान कर रही है ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का बेहतर सामना किया जा सके।  भूजल और सतही जल के अनुकूल प्रयोग और बाढ़ प्रबंधन को सुदृढ़ करके यह परियोजना कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में आय बढ़ाने में मदद कर रही है।

बाढ़ और सूखे की निगरानी

भारत सूखे के साथ-साथ बाढ़ के ख़तरे से भी जूझता है।  जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का पैटर्न भी अप्रत्याशित होता जा रहा है और चरम मौसमी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।  जलाशयों की मदद से इन चरम मौसमी घटनाओं से निपटा जा सकता है, जहां जल संग्रहण को बढ़ावा दिया जाता है और ज़रूरत पड़ने पर पानी छोड़ा जा सकता है।  हालांकि, जलाशयों के संचालकों के पास अक्सर ऐसे ज़रूरी तकनीकी उपकरणों का अभाव होता है, जो उन्हें बाढ़ से बचाव के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद कर सकें।  

विश्व बैंक के समर्थन से दो ऐसी जल विज्ञान परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिसके तहत प्रौद्योगिकी आधारित नई व्यवस्था की स्थापना की गई है, जिसके जरिए जलाशय प्रबंधक अपने क्षेत्रों में पानी की स्थिति के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।  इन प्रणालियों ने एक व्यापक सूचना तंत्र का निर्माण किया है, जिसकी मदद से देश भर में जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है।  इन प्रणालियों की मदद से चरम सूखे जैसी स्थितियों से भी निपटा जा सकता है।  सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र-बराक नदी घाटियों सहित देश भर में जल संसाधन निगरानी प्रणाली का अब विस्तार किया जा रहा है।



मल्टीमीडिया