वंचित समुदायों तक पहुंच को बढ़ाना
पिछले एक दशक में, विश्व बैंक ने सरकार द्वारा ग्रामीण समुदायों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के प्रयासों का समर्थन किया है। 1. 2 अरब डॉलर के कुल वित्तपोषण वाली कई परियोजनाओं ने 2 करोड़ से अधिक लोगों को लाभान्वित किया है।
पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के गांव जल आपूर्ति की समस्या से जूझ रहे थे क्योंकि अत्यधिक चढ़ावदार हिमालयी भूमि के कारण वहां आवश्यक आधारभूत ढांचे का निर्माण और उसका रखरखाव बेहद कठिन था। कई गांव वालों, ख़ासकर महिलाओं को घरेलू उपयोग के लिए ताज़ा पानी लाने के लिए 1.6 किमी पैदल चलना पड़ता था।
2006-15 के बीच विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित उत्तराखंड ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता परियोजना ने राज्य के पिछड़े इलाकों में ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के ज़रिए लगभग 16 लाख लोगों को लाभान्वित किया है। परियोजना बुनियादी ढांचे और संस्थागत क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें ग्रामीण समुदाय भी शामिल हैं, जिससे इस पर्वतीय राज्य में प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने में सक्षम सुविधाओं का निर्माण संभव होगा, जहां अक्सर भूकंप, भूस्खलन और बादल फटने जैसी आपदाएं घटित होती हैं।
भारत का दक्षिणी राज्य केरल सबसे अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में से एक है, हालांकि लहरदार संरचना वाले भूभाग के कारण वर्षा का अधिकांश जल समुद्र में बह जाता है। राज्य भर में निर्माण गतिविधियों में आई तेजी से जल स्रोतों में कमी आई है।
2000 के दशक के शुरुआत से ही, विश्व बैंक ग्रामीण इलाकों में सस्ती दरों पर घरों में पाइप के ज़रिए पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने में राज्य सरकार का समर्थन करता रहा है, जिसका लाभ निम्न-आय वाले परिवार भी उठा सकते हैं। जलनिधि-I (2000-2008) और जलनिधि-II (2012-2017) की सहायता से ग्रामीण इलाकों में घरों में जल आपूर्ति को संभव बनाया गया है, जहां स्थानीय समुदायों को पहली बार जल आपूर्ति योजनाओं के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
शहरों में भरोसमंद जल आपूर्ति सुविधाएं
तीव्र शहरीकरण वाले भारतीय शहरों में पाइपलाइन के जरिए निरंतर जल आपूर्ति की सुविधाएं एक सपना रही हैं। अधिकांश शहरी परिवारों को अक्सर सप्ताह में कुछ ही दिनों के लिए और दिन भर में अधिक से अधिक कुछ घंटों के लिए पानी मिलता है। इसका विशेष रूप से गरीबों, महिलाओं और बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिन्हें अपनी दैनिक जरूरतों के लिए पानी जुटाने के लिए अपना समय और पैसा दोनों खर्च करना पड़ता है।
भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक के उदाहरण से सिद्ध होता है कि शहरी इलाकों में सस्ते दरों पर 24 घंटे जल आपूर्ति की टिकाऊ सुविधा प्रदान करना संभव है। विश्व बैंक द्वारा समर्थित कर्नाटक जल आपूर्ति सुधार परियोजना की मदद से पानी की कमी से जूझ रहे तीन शहरों, हुबली-धारवाड़, बेलगावी और कलबुर्गी में इसी दृष्टिकोण के आधार पर जल आपूर्ति सेवाएं प्रदान की गई हैं। अब, कर्नाटक शहरी जल आपूर्ति आधुनिकीकरण परियोजना (जो एक अनुवर्ती परियोजना है) के तहत तीनों शहरों की पूरी आबादी तक सुविधाओं के विस्तार पर काम किया जा रहा है।
भले ही नागरिकों को पानी की खपत के आधार पर भुगतान करना पड़ता है, लेकिन 8 किलो लीटर तक के "लाइफलाइन कंजप्शन" के लिए शुल्क दर को इतना नीचे रखा गया है कि बेहद गरीब परिवार भी इसका भुगतान कर सकते हैं। गरीब परिवार बेहतर सुविधाओं का लाभ उठा सकें, इसके लिए घरेलू पाइपलाइन कनेक्शन पर सब्सिडी दी जाती है।
पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। जल स्रोतों में आई गिरावट, जनसंख्या में हुई तेज वृद्धि और शहर में पर्यटकों की बढ़ती संख्या का मतलब था कि शहर को हर तीन दिनों में कुछ घंटों के लिए पानी मिलेगा। शिमला वाटर सप्लाई एंड सीवरेज सर्विस डिलीवरी रिफॉर्म प्रोजेक्ट के तहत किए गए सुधारों का परिणाम है कि शहर को अब हर दिन कम से कम 3-4 घंटे पानी मिलता है और आगे 24 घंटे जल आपूर्ति की ओर बढ़ने का प्रयास किया जा रहा है। यह सब सिर्फ पाइपों की मरम्मत से नहीं बल्कि इसके प्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार संस्थाओं में सुधार करके हासिल किया गया है। विश्व बैंक ने एक पेशेवर वाटर यूटिलिटी की स्थापना में सहयोग प्रदान किया, जो नागरिकों के प्रति सीधे उत्तरदायी है।
पंजाब में, जहां भूजल का स्तर काफ़ी नीचे गिर गया है, पंजाब म्युनिसिपल सर्विसेज इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट के तहत दो बड़े शहरों में ये प्रयास किया जा रहा है कि भूजल की बजाय सतह पर मौजूद जलस्रोतों जैसे स्थानीय नहरों का इस्तेमाल किया जाए। अनुमान है कि जल आपूर्ति में सुधार से 2025 तक 30 लाख से ज्यादा लोग और 2050 तक लगभग 50 लाख लोग लाभान्वित होंगे।
2019 में चेन्नई गंभीर जल संकट से जूझ रहा था और शहर को बचाने के लिए लगभग 200 किलोमीटर दूर ट्रेन से पानी लाया गया था। वर्तमान में, चेन्नई अपने उद्योगों की पानी की जरूरतों (जिसमें पेयजल शामिल नहीं है) को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण कर रहा है, और वह ऐसा करने वाला पहला भारतीय शहर है। एक संयंत्र का निर्माण पूरा हो चुका है, और दो टर्शियरी ट्रीटमेंट रिजर्व ऑस्मोसिस (टीटीआरओ) संयंत्रों का निर्माण जारी है, जो चेन्नई शहर के लगभग 20 प्रतिशत सीवेज का पुनर्चक्रण करने में सक्षम होंगे, जिससे ताजे पानी की खपत में कमी लाई जा सकेगी।