भारत की युवा आबादी लंबे समय से कुपोषण की गहरी चुनौती से निपटने की कोशिश कर रही है | 1975 से चली आ रही एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) एक उदहारण है।
अत्यधिक चुनौती और जटिलता के बावजूद 2005 और 2019 के बीच, कुपोषण के स्तर में लगातार गिरावट देखी गई है । 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनापन 2005 में 48% से घटकर 2019 में 35.5% रह गया। कम वजन वाले बच्चों की संख्या 42.5% से घटकर 32.1% हो गई। फिर भी,लगभग 4 करोड़ बौने बच्चे के रहते हुए, कुपोषण का स्तर गंभीर बना रहा है।
इसलिए 2018 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कार्यक्रम में मूलभूत परिवर्तन किए। राष्ट्रीय पोषण मिशन - पोषण अभियान की शुरुआत की गई। जिसमें बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिनों पर विशेष जोर दिया गया, गर्भधारण से लेकर 2 वर्ष की आयु तक, एक महत्वपूर्ण अवधि जिसे पहले काफी हद तक नजरअंदाज किया जाता था।
पहले की तरह, 1.4 मिलियन फ्रंटलाइन आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (AWW) की समूह ने कुपोषण को रोकने की मुहीम में देश का नेतृत्व किया है, और इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है । जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए, वह भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हर गाँव और झुग्गी-झोपड़ियों में 80 मिलियन से अधिक लाभार्थियों तक पहुँचे हैं ।
उनके प्रयासों के समर्थन में, पोषण के मुद्दे को सबसे आगे दर्शाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन शुरू किया गया। सितंबर को राष्ट्रीय पोषण माह (पोषण माह) के रूप में नामित किया गया जबकि मार्च में पोषण पखवाड़ा मनाया गया। इसके अलावा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पोषण में दुनिया का सबसे बड़ा प्रौद्योगिकी मंच तैयार किया गया, जिससे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को देश भर में महिलाओं और बच्चों की पोषण स्थिति की निगरानी करने में मदद मिली।
विश्व बैंक का सहयोग
वर्ष 2018 से 2022 के बीच, विश्व बैंक ने वित्तीय और तकनीकी सहायता के साथ भारत के पोषण अभियान को राष्ट्रव्यापी समर्थन दिया। इसके अलावा, बैंक ने 11 राज्यों में कार्यक्रम के कार्यान्वयन की गति और गुणवत्ता को बारीकी से देखा, जहाँ बच्चों में बौनापन और महिलाओं में एनीमिया सबसे ज़्यादा था। इन केन्द्रित (फ़ोकस) राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश शामिल थे।
पोषण अभियान का दृष्टिकोण
भारत के पोषण अभियान ने देश भर में तीन-आयामी दृष्टिकोण अपनाए हैं :
1. पोषण के संदेशों को समुदायों तक पहुँचाना
पोषण अभियान ने महिलाओं के लिए सही पोषण और देखभाल तथा शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए आयु-उपयुक्त आहार पद्धतियों के बारे में विविध प्रकार की संचार सामग्री तैयार की। इन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, पेयजल एवं स्वच्छता, स्कूली शिक्षा, ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थाओं जैसे प्रमुख हितधारकों की भागीदारी वाले कई मंचों के माध्यम से प्रसारित किया गया ।
इस सामग्री का उपयोग आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर अभियान और समुदाय-आधारित कार्यक्रमों के दौरान गर्भवती महिलाओं और माताओं के साथ-साथ उनके पतियों और सास को परामर्श देने के लिए किया गया।
पोषण से जुड़े संदेशों को क्षेत्रीय भाषाओं में टीवी और रेडियो विज्ञापनों, मोबाइल द्वारा जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया गया ।
मासिक सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें ‘गोदभराई’ तथा ‘अन्नप्राशन’, जब छह महीने के बच्चे को स्तनपान के साथ-साथ पहली बार ठोस आहार दिया जाता है, जैसे महत्वपूर्ण आयोजन शामिल हैं। पुरुषों के लिए भी विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए, ताकि उन्हें अपनी पत्नियों और बच्चों की सही देखभाल सुनिश्चित करने में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया जा सके।
2. दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल फोन एप्लिकेशन तैयार करना
पोषण ट्रैकर नामक दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल फोन एप्लिकेशन तैयार किया गया, जिससे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिनों में घर-घर दौरे को प्राथमिकता देने और प्रदान की गई सेवाओं को रिकॉर्ड करने और निगरानी करने में मदद मिली है । इसने कार्यक्रम अधिकारियों को कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन को ट्रैक करने और जहाँ भी आवश्यक हो, सहायता प्रदान करने में भी मदद की है । इस मोबाइल फोन एप्लिकेशन ने 11 कागज़ी रजिस्टरों की जगह ले ली जिन्हें रिकार्ड आदि के लिए पहले फ्रंटलाइन कार्यकर्ता प्रयोग करते थे।
3. फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के ज्ञान को बढ़ाना और प्रोत्साहन प्रदान करना
चूंकि कार्यक्रम की सफलता के लिए फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की क्षमता और प्रेरणा महत्वपूर्ण थी, इसलिए पोषण अभियान ने पहली बार एक अभिनव दृष्टिकोण अपनाया - वृद्धिशील शिक्षण दृष्टिकोण (ILA)। इसके अंतर्गत पाठ्यक्रम को आसानी से सीखने के लिए उसे कई छोटे मॉड्यूल में विभाजित किया गया । हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में इक्कीस मॉड्यूल विकसित किए गए, जो तकनीकी जानकारी को सरल तरीके से समझाते, साथ ही स्थानीय स्तर पर प्रचलित मिथकों और गलत धारणाओं को चिन्हित करती प्रत्येक माह एक विषय लिया जाता था, उसके बाद एक महीने का अभ्यास होता था। आमने-सामने पढाई के आलावा ई-लर्निंग और चित्रात्मक सहायता द्वारा यह फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के लिए एक आसान संदर्भ प्रदान करता था।
कार्यकर्ताओं को बच्चे के विकास पर नजर रखने तथा उसके जीवन के प्रथम 1,000 दिनों के दौरान प्राथमिकता के आधार पर घर का दौरा करने के लिए प्रोत्साहन भी दिया गया।
विश्व बैंक के 11 ध्यान केन्द्रित (फोकस) राज्यों के परिणाम:
1. मार्च और अप्रैल 2021 में, बैंक ने ऐसे 11 राज्यों में पोषण ज्ञान और व्यवहार टेलीफ़ोन सर्वेक्षण किया, जहाँ बच्चों में बौनेपन और महिलाओं में एनीमिया का संख्या सबसे ज़्यादा थी । सर्वेक्षण में सेवाओं की प्रदत्ता और पोषण आदतें दोनों में सकारात्मक परिणाम सामने आए:
· कार्यक्रम के मुख्य पोषण संदेश 80% से अधिक महिलाओं तक पहुंची ।
· कार्यक्रम के अंतर्गत शामिल 81% महिलाओं ने पहले 6 महीनों तक केवल स्तनपान कराया।
· अन्य पोषण व्यवहार (कम से कम 100 दिनों तक आयरन और फोलिक एसिड की खुराक (आईएफए) का सेवन, गर्भावस्था में न्यूनतम आहार विविधता, जन्म के पहले घंटे के भीतर स्तनपान, 6-8 महीने से पूरक आहार शुरू करना) का पालन 56-67% लाभार्थियों द्वारा किया गया।
2. ग्यारह ध्यान केन्द्रित (फोकस) राज्यों में, कार्यक्रम के प्रमुख पोषण संकेतकों में परिवर्तन का आकलन करने के लिए एनएफएचएस-4 (2015-16) और एनएफएचएस-5 (2019-21) के आंकड़ों का उपयोग किया गया:
· बाल बौनापन और दुर्बलता: इस चार साल की अवधि के दौरान, 11 ध्यान केन्द्रित (फोकस) राज्यों में बाल बौनापन में उल्लेखनीय कमी आई, जो औसतन 41% से घटकर 37% हो गया। 11 में से 7 राज्यों में उल्लेखनीय कमी देखी गई है। बाल दुर्बलता औसतन 22% से घटकर 20% हो गई, जो 11 में से 6 राज्यों में उल्लेखनीय कमी देखि गयी ।
· महिलाओं का कुपोषण: सभी 11 राज्यों में कुपोषित महिलाओं (बॉडी मास इंडेक्स 18.5 से कम) का अनुपात काफी कम होकर औसतन 24.5% से 20.3% हो गया है ।
· केवल स्तनपान: केवल स्तनपान औसतन 54.1% से बढ़कर 64.6% हो गया है ।
· परामर्श: सभी 11 राज्यों में बच्चे का वजन करने के बाद माताओं को परामर्श देने की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो औसतन 63.2% से बढ़कर 76.3% हो गई है ।
· क्षमता निर्माण: 8,60,000 से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (कुल का 81%) की क्षमता का निर्माण किया गया है।
आगे बढ़ते हुए/ अग्रगामी कार्य
कार्यक्रम की प्रगति को देखते हुए भारत सरकार ने कार्यक्रम के दूसरे चरण, पोषण 2.0 में त्रि-आयामी दृष्टिकोण को मुख्यधारा में शामिल किया है।
आगे बढ़ते हुए, पोषण में लाभ को संरक्षित करने हेतु परिवर्तन की गति को और तेज़ करनी होगी। इसके लिए निम्नलिखित की आवश्यकता होगी:
● पोषण कार्यावली के प्रति उच्च स्तरीय राजनीतिक ध्यान और प्रतिबद्धता बनाए रखना,
● जीवन चक्र (शिशु अवस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और गर्भावस्था) में ठोस प्रभाव हस्तक्षेपों पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना, जिसमें आयु-उपयुक्त पूरक आहार में सुधार, कार्यक्रम प्रबंधन को मजबूत करना और राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की क्षमता निर्माण के लिए संरचनाओं का निर्माण करने पर जोर दिया गया है।
● चुनौतियों की बहुआयामी प्रकृति को देखते हुए, परिवारों को सेवाओं का एक व्यापक पैकेज देने की आवश्यकता होगी। इसके लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, जल और स्वच्छता, ग्रामीण विकास और सामाजिक सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में संमिलन की आवश्यकता होगी। इसकी निगरानी के लिए उपकरण भी विकसित करने की आवश्यकता होगी।
विश्व बैंक की पोषण अभियान टास्क टीम