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BRIEF 18 नवंबर, 2021

भारत में स्वच्छ वायु की दिशा में किये जा रहे प्रयास


कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारत के सभी 1.4 अरब लोग (सौ फीसद जनसंख्या) अपने चारों ओर हवा में हानिकारक स्तर पर मौजूद पीएम 2.5 कणों के संपर्क में हैं, जो सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक है और विभिन्न स्रोतों से निकल कर हवा में मुक्त हो रहा है।
  • वायु प्रदूषण की स्वास्थ्य लागत अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचा रही है। 2017 में वायु प्रदूषण के कारण हुई घातक बीमारियों के चलते खोए हुए श्रम की लागत 30 से 78 अरब डॉलर थी, जो भारत की जीडीपी का लगभग 0.3-0.9% है। भारत सरकार का राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) हवा की ख़राब होती गुणवत्ता को एक समस्या के रूप में स्वीकारने और उससे निपटने की दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • विश्व बैंक कार्यक्रम, राज्य एवं क्षेत्र-स्तर पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली की सहायता के लिए उपकरणों का निर्माण कर रहा है। ये भारत का पहला स्टेट एयर क्वालिटी एक्शन प्लान और उसके साथ-साथ सिंधु-गंगा मैदान के अंतर्गत आने वाले सात राज्यों और संघ प्रशासित क्षेत्रों के लिए एयरशेड एक्शन प्लान तैयार करने में मदद करेगा, जो इतने बड़े स्तर पर भारत की पहली ऐसी योजना है।

संदर्भ

विश्व भर में वायु प्रदूषण मृत्यु का एक बड़ा कारक है. भारत में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व में सर्वाधिक है, जो देश के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए भारी खतरा है। भारत की लगभग पूरी आबादी (1.4 अरब लोग) अपने चारों ओर हवा में हानिकारक स्तर पर मौजूद पीएम 2.5 कणों के संपर्क में हैं, जो सबसे खतरनाक वायु प्रदूषक है और विभिन्न स्रोतों से निकल कर हवा में मुक्त हो रहा है। इन सूक्ष्म कणों का व्यास 2.5 माइक्रोन से भी कम होता है, जिसकी चौड़ाई मनुष्य के सिर के एक बाल का 1/30 वां हिस्सा होती है. पीएम 2.5 कणों के संपर्क में आने से फेफड़ों के कैंसर, मस्तिष्क-आघात और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। ऐसा अनुमान है कि घर के भीतर मौजूद प्रदूषित हवा के कारण साल 2019 में 17 लाख भारतीयों की अकाल मृत्यु हो गई। 2017 में वायु प्रदूषण के कारण हुई घातक बीमारियों के चलते खोए हुए श्रम की लागत 30 से 78 अरब डॉलर थी, जो भारत की जीडीपी का लगभग 0.3-0.9% है।

पीएम 2.5 के हवा में उत्सर्जन के बहुत सारे स्रोत हैं। लेकिन कुछ सबसे आम स्रोत जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद और बायोमास जैसे लकड़ी, चारकोल और फसल अवशेषों का दहन है। पीएम 2.5 हवा में उड़ने वाली धूल से भी वातावरण में फैल सकता है, जिसमें प्राकृतिक धूल के साथ-साथ निर्माण स्थलों, सड़कों और औद्योगिक संयंत्रों की धूल भी शामिल है।

भारत में पीएम 2.5 कणों का आधे से अधिक उत्सर्जन ऊपरी वायुमंडल में "द्वितीयक" तरीके से होता है, जब एक क्षेत्र से उत्सर्जित प्रदूषक गैसें जैसे अमोनिया (NH3), दूसरे स्थानों से निकली प्रदूषक गैसों जैसे सल्फर डाईऑक्साइड (SO2)  और नाइट्रोजन ऑक्साइडों (NOX) से मिल जाती हैं। कृषि, उद्योग, बिजली संयंत्र, घर और परिवहन, सभी बड़े स्तर पर पीएम 2.5 के द्वितीयक स्रोत हैं। प्राथमिक स्तर पर निर्मित पीएम 2.5 कणों की तुलना में द्वितीयक कणों का प्रसार शहरों, राज्यों की सीमाओं के पार कहीं अधिक दूरी तक और बहुत बड़े क्षेत्रफल में है।

इसलिए भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियां स्वाभाविक रूप से बहुस्तरीय और बहुपक्षीय हैं. एयरशेड एक ऐसा साझा भौगोलिक क्षेत्र होता है, जहां अलग-अलग प्रदूषक आपस में मिश्रित होकर एक समान गुणवत्ता वाली वायु का निर्माण करते हैं. प्रभावी वायु प्रदूषण नियंत्रण रणनीतियों के लिए शहरों को अपने तत्काल अधिकार क्षेत्र से परे देखने और एयरशेड-आधारित प्रबंधन के लिए उपकरणों का एक नया सेट लागू करने की आवश्यकता है।

शहरों को प्रभावी वायु प्रदूषण रणनीतियों को लागू करने के लिए अपने निकटतम क्षेत्रों से परे इसे व्यापक संदर्भ में देखना होगा और एयरशेड आधारित प्रबंधन के लिए नए उपकरणों को अपनाना होगा. इसके अलावा, पूरे देश में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के मानक तय करने होंगे और इसके लिए नियंत्रण से जुड़ी रणनीतियों और उपयुक्त आंकड़ों को एक दूसरे के साथ जोड़ा जा सकता है.


कार्य योजना

भारत इस समस्या से निपटने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है। भारत सरकार मौजूदा परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों में संशोधन का मसौदा तैयार कर रही है और हालिया वर्षों में उसने वाहनों और औद्योगिक उत्सर्जन मानकों को मजबूत किया है। अक्षय ऊर्जा का प्रसार करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना और लाखों घरों में एलपीजी गैसों की आपूर्ति करना आदि भारत सरकार द्वारा वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपनाई रणनीतियों के कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।

भारत सरकार का राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) वायु गुणवत्ता में आई गिरावट को एक समस्या के रूप में रेखांकित करने और उससे निपटने की दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम है। एनसीएपी ने देश भर में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए एक समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसके केंद्र में विशेष रूप से 132 "नॉन एटेनमेंट" शहरों को रखा गया है, जहां वायु प्रदूषण की स्थिति राष्ट्रीय मानकों से कहीं नीचे यानी बहुत गंभीर है। एनसीएपी शहरों को वायु गुणवत्ता प्रबंधन योजनाओं को तैयार करने के लिए निर्देशित करता है और विभिन्न क्षेत्रों में नीति निर्माण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

2020 में 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों को अपनाते हुए भारत सरकार ने दस लाख से अधिक आबादी वाले 42 भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए अगले पांच वर्षों में 1.7 अरब डॉलर का निवेश करने की योजना बनाई है, बशर्ते वे अपने वायु प्रदूषण के स्तर को हर साल 15 प्रतिशत कम करें। यह शहरों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए वित्त पोषण प्रदान करने वाला दुनिया का पहला ऐसा कार्यक्रम है, जहां प्रदर्शन के आधार पर शहरों को वित्त का आवंटन किया जायेगा।

वायु प्रदूषण के संदर्भ में उसके प्रसार और विभिन्न अधिकार क्षेत्रों को देखते हुए और एक केंद्रीकृत एयरशेड आधारित कार्य योजना की आवश्यकता को पहचानते हुए, भारतीय संसद ने राष्ट्रीय राजधानी और सीमावर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की स्थापना के लिए अगस्त 2021 में एक कानून पारित किया है.


"सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि कैसे हम एक नए वातावरण में पहले से कहीं बेहतर एवं हरित तंत्र का निर्माण करेंगे जबकि हम मौजूदा समस्याओं से अभी उबर ही रहे हैं. अब समय आ गया है कि लोग सही जगह निवेश करें."
डेविड मालपास
अध्यक्ष, विश्व बैंक समूह

विश्व बैंक द्वारा उठाए जा रहे कदम

विश्व बैंक अपने "आपसी-साझेदारी आधारित तंत्र" (सीपीएफ: कंट्री पार्टनरशिप फ्रेमवर्क) कार्यक्रम के तहत वायु प्रदूषण से निपटने में भारत की सहायता कर रहा है। उच्च जनसंख्या घनत्व एवं वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित सिंधु-गंगा क्षेत्र में इस सहयोग को सबसे बड़े स्तर पर देखा जा सकता है, जहां इस समस्या का सामने करने के लिए आवश्यक क्षमता एवं तंत्र-निर्माण में सबसे अधिक सहायता की जरुरत है।

मौजूदा कार्यक्रमों के अतिरिक्त, विश्व बैंक कार्यक्रम राज्य एवं क्षेत्र-स्तर पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली की सहायता के लिए विभिन्न उपकरणों का निर्माण कर रहा है। भारत का पहला स्टेट एयर क्वालिटी एक्शन प्लान और उसके साथ-साथ सिंधु-गंगा मैदान के अंतर्गत आने वाले सात राज्यों और संघ प्रशासित क्षेत्रों के लिए एयरशेड एक्शन प्लान तैयार करने में मदद करेगा, जो इतने बड़े स्तर पर भारत की पहली ऐसी योजना है।

इस तरह के कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो न्यूनतम लागत पर वायु प्रदूषण की मात्रा में अधिकतम कटौती करे और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित हो।

विश्व बैंक वायु प्रदूषण प्रबंधन के क्षेत्र में नए रोजगार सृजन के लिए आवश्यक क्षमता और कौशल के विकास के लिए राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (एनकेएन) द्वारा चलाए जा रहे एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में अपना सहयोग प्रदान कर रहा है. यह प्रशिक्षण भारत के राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) पर आधारित है.

सिंधु-गंगा मैदान (आईजीपी) वाले राज्यों में, विश्व बैंक कार्यक्रम शिक्षण संस्थानों और शहरों एवं राज्यों के स्वास्थ्य कर्मियों के साथ जुड़ने में नेटवर्क की मदद कर रहा है ताकि उनके

जरिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़े कार्यों जैसे मॉडल तैयार करने संबंधी गतिविधियों को क्रियान्वित किया जा सके।

लाइटहाउस इंडिया पहल के तहत, भारत और दुनिया भर के विशेषज्ञ अत्याधुनिक तकनीकों, उपकरणों के माध्यम से भारत की परिस्थितियों के अनुकूल कार्यक्रमों की योजना के निर्माण एवं क्रियान्वयन के लिए अपने अनुभवों का आदान-प्रदान कर रहे हैं ताकि भारत की वायु प्रदूषण से जुड़ी समस्याओं को बेहतर ढंग से समझा सके और उन्हें प्रबंधित एवं नियंत्रित किया सके।


आगे की दिशा

वायु गुणवत्ता प्रबंधन एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। इसे सरकारी नीतियों, प्रशासनिक क्षमताओं के साथ-साथ व्यापार-जगत एवं आम जनता के व्यवहारों के साथ जोड़े जाने की आवश्यकता है. इसके लिए जरूरी है कि संबंधित कार्यक्रमों का पर्याप्त वित्त पोषण किया जाए एवं देश की व्यवस्थागत निर्माण-क्षमताओं पर लगातार ध्यान केंद्रित किया जाए।

अच्छी बात ये है कि हमने अन्य देशों के उदाहरणों से ये देखा है कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण संभव है, अगर मजबूत प्रतिबद्धता के साथ लागत प्रभावी ढंग से एक लक्षित योजना को क्रियान्वित किया जाए।

जलवायु परिवर्तन के साथ इसके अनन्य (विशिष्ट) संबंधों के कारण भारत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आवश्यक कई ज़रूरी "सामाजिक परिवर्तनों" को गति प्रदान की है। उदाहरण के लिए, भारत में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। आज दिल्ली मेट्रो के दैनिक ऊर्जा जरूरतों का 60 फीसदी हिस्सा मध्य प्रदेश के 750 मेगावाट क्षमता वाले रीवा सोलर प्रोजेक्ट द्वारा पूरा किया जा रहा है. जिसके कारण इसकी कोयले पर निर्भरता कम हुई है और इसके साथ ही आने वाले 25 सालों के लिए इसकी ऊर्जा खपत में 17 करोड़ डॉलर की बचत होगी।

इसके साथ ही, विश्व बैंक और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) के एक अध्ययन से पता चला है कि 2030 तक स्वच्छ वायु मार्ग के माध्यम से वायु प्रदूषण पर ध्यान केंद्रित करने से भारत जलवायु परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकता है। उदाहरण के लिए ऐसे किसी मार्ग के विकास से भारत 2030 तक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन दर में 23 प्रतिशत तक की कमी ला सकता है और 2040-50 तक इसमें 42 प्रतिशत की कटौती की जा सकती है। वास्तव में, इन नीतियों

और प्रबंधन तकनीकों की महत्ता की स्वीकार्यता को लेकर कोई संदेह नहीं है। अगर इन्हें लागू किया जाए, ये भारत में वायु प्रदूषण की समस्या को एक पीढ़ी के भीतर ही कम कर सकती हैं।

मध्यम से लेकर दीर्घकालीन योजनाओं के माध्यम से, विश्व बैंक भारतीय शहरों एवं राज्यों के साथ-साथ सिंधु-गंगा मैदान को क्षेत्र एवं राज्य स्तर पर एयरशेड योजनाओं को लागू करने में सहयोग प्रदान करेगा, ताकि सभी के लिए स्वच्छ हवा के लक्ष्य को हासिल किया जा सके। इसके लिए संस्थागत क्षमताओं को विकसित करने और परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण प्रणालियों को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। सरकार और विभिन्न हितधारकों (कॉरपोरेट, निवेशकों, स्थानीय समुदायों आदि) के साथ मिलकर काम करने से देश और विदेश के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों को वायु गुणवत्ता के मुद्दे पर एक साथ लाने में मदद मिलेगी।


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