भारतीयों ने हमेशा शुष्क मौसम के लिए वर्षा जल का संग्रह किया है, चाहे यह दक्षिणी प्रायद्वीप में बड़ी झील जैसे 'टैंकों में हो, राजस्थान में बावड़ियों के रूप में और गुजरात में छोटे भूमिगत जल संग्रह के रूप में हो।
आज, 6,000 से अधिक बांध यह भूमिका निभा रहे हैं। भूमि की सिंचाई, लोगों का बाढ़ से बचाव और भारत की बिजली की बढ़ती मांग को ये बांध ही पूरा करते हैं।
अब इनमें से कई बाँध पुराने एवं जर्जर हो रहे हैं। इसके अलावा, वर्तमान वर्षा की अनियमिता ने उन्हें और असुरक्षित बना दिया है, जबकि उनका निर्माण उस समय के वातावरण एवं वर्षा पैटर्न के अनुसार किया गया था। इसके अलावा, उनके रखरखाव में न्यूनतम निवेश के बावजूद, उनमें से कई अपनी पूरी क्षमता के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हैं, जबकि अन्य कुछ सुरक्षा की दृष्टि से खतरा बन गए हैं।
भारत अब बड़े पैमाने पर बांध सुधार कार्यक्रम आरंभ करने वाले अग्रणी देशों में शामिल हो गया है। वर्ष 2012 से, वर्ष 2012 से, विश्व बैंक के समर्थन से, इसने दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक में अपने 200 बड़े बांधों को उन्नत करने के लिए नवीनतम विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी को आरंभ किया है।