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BRIEF4 जुलाई, 2024

जान-माल की सुरक्षा: दुनिया का सबसे बड़ा बांध सुधार कार्यक्रम

India Implements the World’s Largest Dam Rehabilitation Program

भारत सबसे बड़ा बांध पुनर्वास कार्यक्रम लागू कर रहा है

 

भारतीयों ने हमेशा शुष्क मौसम के लिए वर्षा जल का संग्रह किया है, चाहे यह दक्षिणी प्रायद्वीप में बड़ी झील जैसे 'टैंकों में हो, राजस्थान में बावड़ियों के रूप में और गुजरात में छोटे भूमिगत जल संग्रह  के रूप में हो।

आज, 6,000 से अधिक बांध यह भूमिका निभा रहे हैं। भूमि की सिंचाई, लोगों का  बाढ़ से बचाव और भारत की बिजली की बढ़ती मांग को ये बांध ही पूरा करते हैं।

अब इनमें से कई बाँध पुराने एवं जर्जर हो रहे हैं। इसके अलावा, वर्तमान वर्षा की अनियमिता ने उन्हें और असुरक्षित बना दिया है, जबकि उनका निर्माण उस समय के वातावरण एवं  वर्षा पैटर्न के अनुसार किया गया था। इसके अलावा, उनके रखरखाव में न्यूनतम निवेश के बावजूद, उनमें से कई अपनी पूरी क्षमता के अनुसार  कार्य करने में असमर्थ हैं, जबकि अन्य कुछ सुरक्षा की दृष्टि  से खतरा बन गए हैं।

भारत अब बड़े पैमाने पर बांध सुधार कार्यक्रम आरंभ करने वाले अग्रणी देशों में शामिल हो गया है। वर्ष 2012 से, वर्ष 2012 से, विश्व बैंक के समर्थन से, इसने दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक में अपने 200 बड़े बांधों को उन्नत करने के लिए नवीनतम विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी को आरंभ  किया है।

“यह आसान है; भाखड़ा नांगल बांध जैसी प्रतिष्ठित संरचनाओं के निर्माण के लिए जगह ढूंढना कठिन होता जा रहा है। यह भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक और स्वतंत्र भारत में बनने वाले पहला बांध है । इसलिए, प्रत्येक बांध का जितना हो सके उतना उपयोग महत्वपूर्ण है।
देबाश्री मुखर्जी
भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय में सचिव
The World Bank

 

 

 

नई तकनीक से बांधों को मजबूत करना

प्रत्‍येक बांध  को अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कर्नाटक के करीब सॉ वर्ष पुराने कृष्‍ण राजा सागर बांध से अतिरिक्त पानी को प्रवाहित करने के लिए 152 गेट में से प्रत्येक को मैन्युअल रूप से उठाना पड़ता था। प्रभारी प्रभारी इंजीनियर श्री के.जी.विजय कुमार ने बताया कि -“ये बेहद खतरनाक था, क्योंकि जब बाढ़ आती थी, तो तुरंत पानी नहीं छोड़ा जा सकता था ।”

हालाँकि अधिकारी बाँध की प्रतिष्ठित संरचना के साथ छेड़छाड़ करने के लिए तैयार नहीं  थे, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद से वे पुराने लोहे के दरवाज़ों को नए स्टेनलेस-स्टील के दरवाज़ों में बदलने में कामयाब रहे। अब, कंप्यूटर से  बांध के सभी 152 द्वारों को संचालित किया जाता है और नीचे की ओर बाढ़ को रोकने के लिए पानी बिल्कुल सही मात्रा में छोड़ा जाता है।

दूसरी ओर, उत्तराखंड की टोंस नदी की प्रचंड लहरों के प्रवाह में बहते बड़े-बड़े पत्थर इच्चारी बांध को अक्सर क्षतिग्रस्त कर जाते थे । क्षेत्र की दूरी और पहाड़ी इलाके को देखते हुए, मरम्मत के लिए आवश्यक बड़े उपकरण लाना मुश्किल था।

बांध के प्रभारी सहायक इंजीनियर ने बताया कि - “लोजिस्टिक्स और पहुंच एक मुद्दा था। जब हम कंक्रीट बिछा रहे थे तो यह सुनिश्चित करना भी मुश्किल था कि रात के तापमान में तेज गिरावट से उच्च शक्ति वाले कंक्रीट के गुणों में कोई बदलाव न हो।"

एक बार फिर, प्राधिकारियों ने अंतराष्ट्रीय विशेषज्ञों की मदद से इन जटिल चुनौतियों का समाधान किया और पहली बार भारत में बांध क्षेत्र में एक नया उच्च शक्ति वाला कंक्रीट लगाया  गया ।

लंबे समय से चली आ रही चुनौतियों के समाधान के लिये नवीनतम तकनीक अपनाई गई। उदाहरण के लिए, कर्नाटक के कृष्णा राजा सागर बांध और कुछ अन्य बांधों  की दीवारों में खतरनाक दरारों का पता लगाने के लिए पानी के नीचे ड्रोन का इस्तेमाल किया गया।  तमिलनाडु का सर्वलार बांध पर जियोमेम्ब्रेन (एक प्रकार की भू- झिल्‍ली)  को लगाया गया है जो  बांध की दीवारों से अत्यधिक रिसाव को नियंत्रित करता है।  इस एक बार किया हुआ दीर्घकालिक समाधान ने रिसाव को 90 प्रतिशत से अधिक कम कर दिया है।

Dams Rehabilitation and Crisis Preparedness: India's World Bank-Supported Initiative

बांध पुनर्वास और संकट तैयारी: भारत की विश्व बैंक समर्थित पहल

सुरक्षा पर ध्‍यान

बांध की संरचना को मजबूत करना बांध सुरक्षा का सिर्फ एक पहलू है। बांध की स्थिति पर कड़ी निगरानी रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

विश्व बैंक की परियोजना बांध सुरक्षा के आधुनिक तत्वों को लेकर आई है, जिसमें दुर्गम क्षेत्रों में कमजोरियों का पता लगाने के लिए सीसीटीवी सिस्टम जैसे नए उपकरण शामिल हैं। केरल सरकार में बांध सुरक्षा की मुख्य इंजीनियर सुश्री सुप्रिया एस ने कहा- "अब हमारे पास नियमित जांच करने के लिए उचित उपकरण हैं, खासकर मानसून के मौसम में जब हम पूरी तरह सतर्क रहते हैं।"

निर्णय लेना भी तेज और अधिक सटीक है। पानी की बड़ी मात्रा को संभालने में छोटी-छोटी गलतियाँ भी विनाशकारी हो सकती हैं।  बांध प्रबंधकों को अब सभी बांधों के डेटा मिलती रहती है जिसके कारन वे तुरंत  निर्णय लेने में सक्षम हैं।  इसके अलावा, डाउनस्ट्रीम बांधों के साथ इस डेटा को साझा करने से विभिन्न संचालकों के बीच समन्वित निर्णय लेने में मदद मिलती है, जो कैस्केडिंग अनुक्रम में काम करने वाले बांधों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण  है।  सुश्री सुप्रिया ने कहा कि  "16 बांधों का डेटा अब हमारे नियंत्रण कक्ष में उपलब्ध है। पहले ऐसा नहीं था।”

The World Bank

आपातकालीन स्थिति के लिए तैयारी

फिर भी, असामान्य मौसम की बढ़ती घटनाओं  के साथ, प्राधिकारियों  और स्थानीय समुदायों दोनों को आपात स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है, चाहे वह बाढ़ हो, भूकंप हो, या हिमनद झील का विस्फोट हो।

इस प्रकार परियोजना ने अपने दायरे में आने वाले प्रत्येक बांध को एक आपातकालीन कार्य योजना विकसित करने में सक्षम बनाया है, जिसमें यह निर्दिष्ट किया गया है कि आपातकालीन स्थिति में कौन क्या और कब करता है।  ये योजनाएँ स्थानीय प्रशासन, आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों, पुलिस और अग्निशमन विभागों के साथ-साथ स्थानीय समुदायों के साथ व्यापक परामर्श के बाद तैयार की गई हैं, जिससे चुनौती पर समन्वित प्रतिक्रिया संभव हो सके।

The World Bank

जोखिम वाले क्षेत्रों का मानचित्रण

इसके अलावा, बाढ़ के खतरे वाले क्षेत्रों के मानचित्रण से पता चला है कि दरार के प्रभाव कितने दूरगामी हो सकते हैं। उत्तराखंड के इचारी बांध के सहायक इंजीनियर अभिषेक कुमार ने बताया कि “पहले, मैंने सोचा था कि यदि बांध विफल हो गया, तो प्रभाव नीचे की ओर 30-40 किलोमीटर तक फैल जाएगा। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि  इसका प्रभाव बहुत बड़ा होगा, जो 150 किलोमीटर दूर हरियाणा के करनाल तक फैला होगा।''

मैपिंग ने सबसे सुरक्षित निकासी मार्गों पर काम करने में भी मदद की है। इचारी के सहायक अभियंता भानु प्रकाश जोशी ने बताया कि  "हम एक विशेष पुल के माध्यम से डाकपत्थर से इछारी तक प्रतिदिन यात्रा करते हैं । जब हमने गाइडलाइंस का अध्ययन किया तो हमें एहसास हुआ कि यह पुल बाढ़ में डूब जाएगा ।   इसलिए, हमने कम से कम तीन वैकल्पिक मार्गों की पहचान की। आज, मुझे विश्वास है कि हम किसी भी अप्रिय घटना के लिए तैयार हैं और जानते हैं कि क्या करना है।''

India’s Women Dam Engineers

भारत की महिला बांध इंजीनियर 

बांध पेशेवरों का एक नया पूल बनाना

बांध प्रबंधन एक जटिल कार्य है, इसलिए परियोजना ने बांध पेशेवरों के एक नए पूल के निर्माण का भी समर्थन किया है। इस प्रकार, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रूड़की में और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलुरु में बांध सुरक्षा में एक नया पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम आरंभ किया गया है।

यह कार्यक्रम संरचनात्मक डिजाइन से लेकर सुरक्षा, अवसादन, भूवैज्ञानिक, भूकंपीय और पर्यावरणीय मुद्दों के साथ-साथ स्‍थाई पर्यटन के विकास तक बांध प्रबंधन के कई पहलुओं को शामिल करता है।

"पहली बार, अकादमिक संस्थानों को चुनौतियों का अध्ययन करने, अनुसंधान करने और बांध की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए समाधान तैयार करने के लिए शामिल किया गया है।" आईआईटी रूड़की के प्रोफेसर एन के गोयल ने कहा। आईआईटी रूड़की भारत का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कॉलेज, जिसकी स्थापना लगभग एक सदी पहले गंगा नहर के निर्माण के लिए इंजीनियरों और सर्वेक्षणकर्ताओं को प्रशिक्षित के लिए की गई थी।

सभी ने कहा, बेहतर बांध प्रबंधन और मजबूत सुरक्षा उपाय भारत के बांधों को अपनी पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम बनाएंगे, बेहतर सिंचाई सुनिश्चित करेंगे, बाढ़ को नियंत्रित करेंगे, भूजल को रिचार्ज करने में मदद करेंगे और नदियों में अधिक स्‍थाई  प्रवाह की अनुमति देंगे।